CG Naxal News“जो कभी IAS को बंधक बनाकर जंगल में फिरा था, आज खुद हथियार डालकर पुलिस के सामने झुका”!
सुकमा/छत्तीसगढ़ के बस्तर के बीहड़ों में आतंक का पर्याव बन चुके 8 लाख के इनामी हार्डकोर नक्सली लोकेश उर्फ पोड़ियाम भीमा ने आखिरकार शनिवार को आत्मसमर्पण कर दिया। 2012 में सुकमा के तत्कालीन कलेक्टर एलेक्स पाल मेनन को अगवा करने वाला यही भीमा था, जिसने पूरे देश को हिला दिया था। इस घटना के 12 साल बाद उसी नक्सली ने अब हथियार डालकर लोकतंत्र के आगे सिर झुका दिया।8 लाख का इनामी हार्डकोर नक्सली‘भीमा’ समेत 23 नक्सलियों का आत्मसमर्पण, 2012 के अपहरण कांड से मचा था देश में हड़कंप!
‘भीमा’ – जो एक समय लाल आतंक का प्रतीक था, आज वह झुका सिर, कांपते हाथों और अपराधबोध से भरी आंखों के साथ पुलिस के सामने खड़ा था।
शनिवार को सुकमा पुलिस के सामने कुल 23 नक्सलियों ने आत्मसमर्पण किया। इनमें से कई बेहद वांछित और खतरनाक नक्सली थे, जिन पर कुल 1.18 करोड़ रुपये का इनाम घोषित था। ये आत्मसमर्पण सिर्फ संख्या का नहीं, बल्कि एक बड़े मनोवैज्ञानिक मोर्चे पर जीत का संकेत है।
2012: जब भीमा बना था ‘जंगल का जल्लाद‘!
21 अप्रैल 2012 की वो दोपहर आज भी सुकमा के लोगों के जेहन में ताजा है। कलेक्टर एलेक्स पाल मेनन, एक ईमानदार और जमीनी अधिकारी, उस दिन मांझीपारा गांव में जल संरक्षण के कार्यों का निरीक्षण करने पहुंचे थे। उसी समय गोलियों की तड़तड़ाहट गूंजी और अफरा-तफरी मच गई।नक्सलियों ने कलेक्टर पर ताबड़तोड़ हमला कर उन्हें अगवा कर लिया। उनके दोनों सुरक्षाकर्मी मौके पर ही शहीद हो गए। कलेक्टर को जंगलों में घुमाया गया, उन्हें 13 दिनों तक बंधक बनाकर रखा गया।
इस किडनैपिंग ने केंद्र और राज्य सरकार की नींद उड़ा दी थी। देशभर में नक्सली मसले पर बहस तेज हो गई। इसके बाद भीमा का नाम देश के मोस्ट वांटेड लिस्ट में शामिल हो गया।
भीमा: एक इतिहास, जो बारूद से लिखा गया!
पोड़ियाम भीमा केवल कलेक्टर अपहरण तक सीमित नहीं था। पुलिस रिकॉर्ड के अनुसार, वह दक्षिण सब जोनल ब्यूरो टीम का कमांडर रह चुका है।
वह 2017 के बुर्कापाल नरसंहार का भी मास्टरमाइंड था, जिसमें 25 से ज्यादा जवान शहीद हुए थे।
साल 2021 की टेकलगुड़ा मुठभेड़ में भी उसकी सक्रिय भूमिका थी।
इस प्रकार भीमा, लाल सलाम की विचारधारा का चेहरा बन चुका था – एक ऐसा चेहरा, जो अब टूट चुका है।
सरेंडर की वजह: बदली नीति, बदला माहौल!
नक्सलियों ने ‘नियद नेल्ला नार’ (आपका अच्छा गांव) योजना और आत्मसमर्पण व पुनर्वास नीति से प्रभावित होकर यह कदम उठाया है।
पुलिस का प्रभाव अब सुदूर आदिवासी क्षेत्रों में भी बढ़ा है।
नक्सलियों की जमीन खिसक रही है – अब ना वैसा जनसमर्थन है, ना वैसा डर।
सिर्फ दो दिनों में बस्तर में कुल 45 नक्सली सरेंडर कर चुके हैं, जिन पर 1.55 करोड़ रुपये का इनाम था।
राज्य सरकार और पुलिस का दावा!
सुकमा पुलिस अधीक्षक के मुताबिक, “यह सिर्फ आत्मसमर्पण नहीं है, यह विश्वास की जीत है।”
सीएम विष्णुदेव साय ने बयान जारी कर कहा, “हमारा उद्देश्य केवल कानून व्यवस्था बनाना नहीं, बल्कि नक्सलियों को मुख्यधारा में लाना भी है। सुरक्षाबलों की मेहनत और विश्वास नीति का यह नतीजा है।”
नारायणपुर में भी झुका लाल आतंक!
शुक्रवार को नारायणपुर में 22 नक्सलियों ने सरेंडर किया था। इन पर कुल 37.50 लाख रुपये का इनाम था। यानी दो दिनों में लाल विचारधारा के 45 अनुयायियों ने हथियार छोड़ दिए – यह सिर्फ प्रशासन नहीं, बल्कि लोकतंत्र की भी विजय है।
भीमा की स्वीकारोक्ति: “अब और खून नहीं…”