“बिजली से जले सपने!” — हॉफ बिजली बिल योजना पर साय सरकार की ‘कैंची’, मध्यमवर्ग को लगा करारा झटका।
Raipur।छत्तीसगढ़ की राजनीति में एक बार फिर बिजली की गूंज सुनाई दे रही है, पर इस बार राहत की नहीं, नाराजगी की। भूपेश बघेल सरकार की बहुचर्चित हॉफ बिजली बिल योजना पर साय सरकार ने कैंची चला दी है। पहले जहां आम जनता को 400 यूनिट तक बिजली बिल में 50% छूट मिलती थी, अब वो सीमा घटकर सिर्फ 100 यूनिट रह गई है।
सरकार के इस अप्रत्याशित फैसले से लाखों उपभोक्ताओं को गहरा धक्का लगा है। कांग्रेस ने इसे “जन विरोधी और मध्यमवर्ग को कुचलने वाला फैसला” करार दिया है, तो आम जनता गुस्से में है और खुद को ठगा महसूस कर रही है।
क्या थी योजना और अब क्या बदला?
भूपेश बघेल सरकार के कार्यकाल में शुरू हुई हॉफ बिजली बिल योजना एक क्रांतिकारी कदम के रूप में देखी जाती थी। इस योजना के तहत घरेलू उपभोक्ताओं को 400 यूनिट तक के बिजली बिल पर 50% की छूट मिलती थी। लाखों परिवारों को इससे सीधी आर्थिक राहत मिलती रही।
लेकिन अब साय सरकार ने इस सीमा को घटाकर 100 यूनिट कर दिया है। यानी यदि आपकी खपत 101 यूनिट भी हो जाती है, तो आपको पूरा बिल देना होगा – सिर्फ अतिरिक्त यूनिट का नहीं, बल्कि पूरा 101 यूनिट का भी!
“एक साजिश के तहत योजना की हत्या की गई है” — कांग्रेस का आरोप प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष दीपक बैज ने इस फैसले पर तीखी प्रतिक्रिया दी। उन्होंने कहा:
“यह केवल योजना में बदलाव नहीं, बल्कि मध्यमवर्ग के विश्वास की हत्या है। साय सरकार ने केवल 100 यूनिट तक के उपभोक्ताओं को योजना में रखा है, जिससे लाखों उपभोक्ता बाहर हो गए हैं। पहले 400 यूनिट तक हाफ बिल का लाभ था, अब यह नाम मात्र की छूट बनकर रह गया है।”
दीपक बैज ने आगे कहा कि कांग्रेस सरकार ने 44 लाख घरेलू उपभोक्ताओं को इस योजना से जोड़ा था और औसतन हर उपभोक्ता को 40 से 50 हजार रुपये की बचत हुई थी। यह योजना केवल एक सरकारी स्कीम नहीं थी, बल्कि लाखों परिवारों की राहत की सांस थी।
बिजली के दामों में इजाफा – एक और वार!
कांग्रेस ने यह भी आरोप लगाया कि साय सरकार ने पिछले डेढ़ साल में चार बार बिजली के दाम बढ़ाए हैं। घरेलू खपत पर 10 से 20 पैसे प्रति यूनिट, गैर-घरेलू पर 25 पैसे प्रति यूनिट, और कृषि पंपों पर तो 50 पैसे प्रति यूनिट की सीधी वृद्धि की गई है।
दीपक बैज का कहना है कि कुल मिलाकर साय सरकार ने 80 पैसे प्रति यूनिट तक की बढ़ोतरी कर दी है, जो आम उपभोक्ता की जेब पर डाका डालने जैसा है।
कांग्रेस सरकार में मिलती थी रोशनी, अब अंधेरा?
दीपक बैज ने भाजपा पर यह भी आरोप लगाया कि अब छत्तीसगढ़ की जनता को मांग के अनुसार बिजली नहीं मिल रही। शहर से लेकर गांव तक लो वोल्टेज और बार-बार कटौती की समस्या आम हो गई है।
“जब कांग्रेस की सरकार थी, तो हम गर्मी में भी दूसरे राज्यों से बिजली खरीद कर 24 घंटे आपूर्ति करते थे। आज उसी जनता को अंधेरे में जीने को मजबूर किया जा रहा है।”
वोट की गारंटी बनी थी यह योजना, अब जनता कर रही है हिसाब!
2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने इस योजना को प्रमुख चुनावी वादा बनाया था। इस योजना ने उन्हें ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में बड़ी लोकप्रियता दिलाई थी। अब जब योजना में कटौती हुई है, तो विपक्ष इसे ‘विश्वासघात बता रहा है।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि बिजली जैसे मुद्दे से आमजन का सीधा सरोकार होता है। अगर यही नाराजगी बनी रही, तो इसका असर 2028 के चुनाव में साफ दिखाई दे सकता है।
जनता क्या कह रही है?
रायपुर निवासी एक स्कूल टीचर ने बताया,
“मेरे घर में 250 यूनिट की खपत होती है। पहले आधा बिल आता था, अब पूरा देना पड़ेगा। इससे हर महीने 400-500 रुपये का फर्क पड़ेगा।”
एक किसान ने बताया,
“कृषि पंप की बिजली महंगी कर दी गई है। खेती पर पहले ही महंगाई का बोझ है, अब बिजली ने कमर ही तोड़ दी।”
अंत में सवाल यही – क्या सस्ती बिजली केवल एक सपना रह जाएगी?
छत्तीसगढ़ की राजनीति में बिजली फिर से चुनावी हथियार बन चुकी है। कांग्रेस ने मोर्चा खोल दिया है, और सत्तारूढ़ भाजपा सरकार फिलहाल मौन है।
अब देखना यह होगा कि क्या सरकार इस फैसले पर पुनर्विचार करेगी या मध्यमवर्गीय परिवारों को आने वाले महीनों में बिजली के बिल के साथ आक्रोश का करंट भी झेलना पड़ेगा?
जनता पूछ रही है: रोशनी की गारंटी देने वाले अब अंधेरे की जिम्मेदारी लेंगे क्या?