July 16, 2025 10:32 pm

“CMHO की कुर्सी पर ‘अनुभवहीनता’ का कब्जा:

“CMHO की कुर्सी पर ‘अनुभवहीनता’ का कब्जा: परविक्षा अवधि में जूनियर डॉक्टर को मिली जिले की कमान, नियमों की उड़ी धज्जियाँ!”

Shakti/शक्ति जिले में स्वास्थ्य प्रशासन का मजाक,एक ऐसा फैसला जिसने पूरे स्वास्थ्य विभाग में भूचाल ला दिया है। ऐसा लगता है कि अब अनुभव और वरिष्ठता का कोई मोल नहीं रह गया है, क्योंकि शक्ति जिले में एक परविक्षा अवधि वाली जूनियर डॉक्टर को सीधे मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी (CMHO) जैसे उच्च और जिम्मेदारी से भरे पद पर बैठा दिया गया है।

यह मामला है डॉक्टर पूजा अग्रवाल का, जिनकी नियुक्ति अगस्त 2022 में हुई थी। अभी तक वे अपनी परविक्षा अवधि भी पूरी नहीं कर पाई हैं, लेकिन इसके बावजूद उन्हें जिले की स्वास्थ्य व्यवस्था का सबसे बड़ा पद सौंप दिया गया है। स्वास्थ्य विभाग और शासन की यह अनोखी “कृपा” न केवल नियमों के खिलाफ है, बल्कि इससे यह सवाल भी उठता है कि क्या अब किसी भी बिना अनुभव वाले अधिकारी को केवल राजनीतिक संरक्षण के दम पर महत्वपूर्ण प्रशासनिक पद दिए जा सकते हैं?

क्या नियम ताक पर रख कर राजनीति हावी है?

स्वास्थ्य विभाग की नियमावली के अनुसार, किसी भी नव नियुक्त चिकित्सक को ग्रामीण या अनुसूचित क्षेत्रों में कम से कम तीन वर्षों तक सेवा देना अनिवार्य होता है। इसी के बाद उनकी परविक्षा अवधि समाप्त होती है और वे स्थायी रूप से किसी पद के लिए पात्र माने जाते हैं। इसके अलावा, परविक्षा अवधि में किसी डॉक्टर को किसी सेक्टर का भी प्रभार नहीं सौंपा जाता, तो फिर क्यों डॉक्टर पूजा अग्रवाल को सीधे CMHO क्यों बना दिया गया? क्या इसके पीछे भी राजनीतिक षड्यंत्र है?

क्या वरिष्ठता कोई मायने नहीं रखती?

शक्ति जिले में कई वरिष्ठ और अनुभवी चिकित्सा अधिकारी वर्षों से कार्यरत हैं। ये अधिकारी वर्षों की सेवा, अनुभव और कठिनाई भरे कार्य क्षेत्र में काम कर चुके हैं। ऐसे में उन्हें दरकिनार कर एक जूनियर डॉक्टर को जिले की स्वास्थ्य व्यवस्था का मुखिया बनाना स्वास्थ्य विभाग के नियमों और प्रशासनिक गरिमा का सीधा-सीधा उल्लंघन है।

CMHO का पद: जिम्मेदारी और जवाबदेही का केंद्र!

मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी का पद केवल एक टाइटल नहीं है, बल्कि यह पद पूरे जिले की स्वास्थ्य योजनाओं के क्रियान्वयन, बजट आवंटन और अनुशासन से जुड़ा होता है। CMHO को शासन द्वारा करोड़ों रुपये का बजट दिया जाता है, जिसके सही उपयोग की जिम्मेदारी उन्हीं की होती है। यदि किसी प्रकार की वित्तीय अनियमितता या प्रशासनिक गलती होती है, तो जवाबदेही भी उन्हीं की होती है।

अब सवाल यह है कि क्या एक अनुभवहीन और परविक्षा अवधि में कार्यरत डॉक्टर इस तरह की बड़ी जिम्मेदारी निभा पाएगी? अगर कल को किसी योजना में भ्रष्टाचार या कुप्रबंधन उजागर होता है, तो इसका दोष किसके सिर जाएगा? डॉक्टर पूजा अग्रवाल के या फिर उन अफसरों का जिन्होंने उन्हें यह पद सौंपा?

क्या राजनीतिक संरक्षण है वजह?

डॉक्टर पूजा अग्रवाल की नियुक्ति को लेकर शक्ति जिले की गलियारों में राजनैतिक हलचल हो गई है सिर्फ आम चर्चाओं में एक ही सवाल गूंज रहा है—क्या इस नियुक्ति के पीछे कोई “ऊँची पहुँच” है? क्या यह नियुक्ति योग्यता और अनुभव के आधार पर हुई है या फिर किसी राजनेता या उच्च पदस्थ अधिकारी के दबाव में? ये सवाल सिर्फ जनता नहीं, बल्कि विभाग के भीतर भी कानाफूसी का विषय बन चुके हैं।

स्थानांतरण नीति पहले से सवालों के घेरे में!

सिर्फ डॉक्टर पूजा की नियुक्ति ही नहीं, बल्कि स्वास्थ्य विभाग की स्थानांतरण नीति भी पहले से सवालों के घेरे में है। नियमों के अनुसार ग्रेड-03 के कर्मचारियों का संभाग से बाहर स्थानांतरण नहीं किया जा सकता, फिर भी इस बार कई कर्मचारियों का स्थानांतरण संभाग पार करते हुए कर दिया गया है। आखिर विभाग अपने ही नियमों को क्यों तोड़ रहा है? क्या यह भी किसी खास योजना या दबाव का हिस्सा है?

विभाग और सरकार की चुप्पी रहस्यमयी!

पूरे मामले में शासन और स्वास्थ्य विभाग की चुप्पी और भी अधिक संदेह उत्पन्न करती है। न तो इस निर्णय की कोई स्पष्ट वजह बताई गई है, न ही वरिष्ठ डॉक्टरों को इस नियुक्ति को लेकर विश्वास में लिया गया है। यह चुप्पी इस ओर इशारा कर रही है कि कुछ “गंभीर और असामान्य” जरूर है, जिसे पर्दे के पीछे छुपाया जा रहा है।

अब शक्ति की जनता और स्वास्थ्य सेवाओं का क्या होगा?

एक जिले की स्वास्थ्य व्यवस्था केवल डॉक्टरों या दवाओं से नहीं चलती, बल्कि यह कुशल नेतृत्व और अनुभव पर टिकी होती है। यदि स्वास्थ्य विभाग की बागडोर किसी अनुभवहीन अधिकारी के हाथों में सौंप दी जाए, तो आमजन की स्वास्थ्य सुविधाओं का स्तर गिरना तय है। इससे ना सिर्फ जनहित प्रभावित होगा बल्कि सरकार की छवि भी खराब हो सकती है।

क्या करेंगे शासन और स्वास्थ्य मंत्री?

अब यह देखना होगा कि शासन इस मामले में क्या रुख अपनाता है। क्या वे अनुभव और नियमों को प्राथमिकता देते हुए इस निर्णय को पलटते हैं? या फिर राजनीतिक दवाब के आगे घुटने टेककर एक जूनियर डॉक्टर को जिले की CMHO की कुर्सी पर बैठे रहने देते हैं?

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फिलहाल, शक्ति जिले की जनता और स्वास्थ्य विभाग के कर्मचारी बस यही जानना चाहते हैं—क्या योग्यता की जगह अब सिर्फ पहुंच ही काबिलियत का मापदंड बन गई है? क्योंकि कि यह पहला मामला है इसके पहले भी चाहे वह नेत्र राज्य नोडल से लेकर कुछ जिलों में जूनियर CMHO बैठा कर रखे थे जिसका परिणाम उनकी हुई शिकायतों से मिला।

शक्ति जिले की जनता पूछ रही है क्या स्वास्थ्य मंत्री छत्तीसगढ़ की स्वास्थ्य व्यस्था बनना चाहते है या बिगाड़ना?

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