Mp News-शहडोल की पंचायत बनी ‘ड्राई फ्रूट चौपाल’, अफसरों ने उड़ाए 13 किलो मेवे – कांग्रेस ने साधा जोरदार निशाना!
Shahdol/एक तरफ देश में जल संकट गहराता जा रहा है, दूसरी तरफ मध्य प्रदेश के शहडोल जिले में जल संरक्षण के नाम पर ऐसी जलविहारी चौपाल लगाई गई, जो किसी शाही दावत से कम नहीं थी। ग्राम पंचायत की बैठक में सूखे मेवों की बारिश हो गई—यथार्थ रूप में नहीं, लेकिन खर्चे के कागज़ों में जरूर।
शहडोल जिले की गोहपारू जनपद पंचायत के अंतर्गत आने वाली भदवाही ग्राम पंचायत में जल संरक्षण के उद्देश्य से “जल चौपाल” का आयोजन किया गया। उद्देश्य था ग्रामीणों को जल के महत्व के बारे में जागरूक करना। लेकिन यह चौपाल खुद एक ‘विलास चौपाल’ बन गई, जहाँ न तो पानी बचा, न ही पैसा।
अफसरों की ‘ड्राई फ्रूट पार्टी’!
सरकारी दस्तावेजों में दर्ज आंकड़ों ने पूरे प्रदेश को चौंका दिया है। बताया गया कि इस एक दिन की पंचायत बैठक में 5 किलो काजू, 5 किलो बादाम, 3 किलो किशमिश, 30 किलो नमकीन, 20 बिस्कुट पैकेट, 6 किलो दूध, 5 किलो शक्कर और 2 किलो घी तक की खपत दर्शाई गई है। ऐसा लग रहा था जैसे यह कोई पंचायती बैठक नहीं, बल्कि किसी नेता की बारात की तैयारी हो।
ग्रामीणों का कहना है कि “हमसे तो पानी के बारे में एक शब्द तक नहीं पूछा गया। अफसर आए, बैठे, खाए-पीए और चले गए। सब दस्तावेजों में कुछ और ही दिखाया गया है।”
कांग्रेस का हमला – “यह जल चौपाल नहीं, घोटाला चौपाल है!”
इस मामले पर कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष जीतू पटवारी ने जमकर हल्ला बोला है। उन्होंने कहा, “बीजेपी सरकार के अधीन विभागों में 50% से कम कमीशन नहीं लिया जाता। यह जल संरक्षण नहीं, भ्रष्टाचार का नया मॉडल है। जनता प्यास से मर रही है और ये लोग ड्राई फ्रूट्स की पार्टी मना रहे हैं।”
पटवारी ने आगे तंज कसते हुए कहा, “अब शायद मंत्रालय में भी मीटिंग मेन्यू पहले तय होता है, एजेंडा बाद में।”
उन्होंने शहडोल के अधिकारियों पर सीधा आरोप लगाते हुए इस पूरे आयोजन की जांच की मांग की है। उनका कहना है कि यह मामला सिर्फ एक पंचायत तक सीमित नहीं है, प्रदेश की अन्य पंचायतों में भी इसी तरह के “कागजी आयोजन” हो रहे हैं, जिनका मकसद सिर्फ खर्च दिखाकर पैसे हड़पना है।
पंचायत सचिव बोले – “ये सब अनुमोदित था!”
जब इस मामले में पंचायत सचिव से सवाल पूछा गया तो उन्होंने कहा, “सभी खर्चे उचित प्रक्रिया से किए गए हैं। जो मेहमान आए थे, उनके सत्कार हेतु कुछ चीजें ली गईं थीं।“
लेकिन सवाल यह उठता है कि क्या जल संरक्षण की बैठक में 13 किलो ड्राई फ्रूट्स व 30 किलो नमकीन जैसे आइटम जरूरी थे? क्या ये योजनाएं सिर्फ अफसरों की “दावत चौपाल” बनकर रह गई हैं?
जनता में आक्रोश, सोशल मीडिया पर हंगामा!
जैसे ही यह खबर बाहर आई, सोशल मीडिया पर इसकी जोरदार निंदा शुरू हो गई। ट्विटर पर #DryFruitChaupal ट्रेंड करने लगा। एक यूजर ने लिखा,
“गाँव में पानी नहीं, लेकिन काजू-बादाम जरूर पहुंच रहे हैं!”
एक अन्य यूजर ने व्यंग्य किया, “शहडोल में जल नहीं, जलन की जरूरत है—भ्रष्टाचार से!”
ग्रामीण क्षेत्रों में पहले से ही पंचायत फंड के दुरुपयोग की शिकायतें सामने आती रही हैं। यह मामला उन तमाम सवालों को फिर जिंदा कर गया है, जो वर्षों से अनसुने पड़े थे—क्या वास्तव में ग्रामीण विकास योजनाओं का पैसा विकास में लग रहा है या अफसरों की थाली में?
असली सवाल – पानी बचा या पैसा बहा?
इस जल चौपाल में अगर 13 किलो सूखे मेवे और अन्य सामग्री का खर्च किया गया, तो यह सोचने वाली बात है कि कितना धन वास्तव में जल संरक्षण पर खर्च हुआ? क्या जल संरक्षण की इस मुहिम ने कोई वास्तविक परिवर्तन लाया, या यह सिर्फ कागजों पर जल-बचाने की स्क्रिप्ट थी?
बीजेपी का बचाव!
इस मुद्दे पर बीजेपी नेताओं ने कहा कि कांग्रेस सिर्फ राजनीति कर रही है। एक नेता ने कहा, “पंचायतों को अपनी जरूरत के अनुसार सामग्री खरीदने की स्वतंत्रता है। यह विषय बहुत छोटा है, इसे तूल दिया जा रहा है।”
‘सूखे मेवों’ में बहा ‘जल संरक्षण’ का उद्देश्य!
जब देश का आम नागरिक जल की एक-एक बूँद को बचाने में जुटा है, तब सरकार के अफसर अगर जल संरक्षण के नाम पर ड्राई फ्रूट पार्टी मना रहे हों, तो यह न केवल भ्रष्टाचार है, बल्कि जनता के साथ धोखा भी है। यह मामला सिर्फ शहडोल तक सीमित नहीं रहना चाहिए, बल्कि पूरे प्रदेश की पंचायत बैठकों की पारदर्शिता पर गंभीर सवाल उठाता है।
क्या अब सरकारी योजनाओं की असली पहचान बहीखातों में दर्ज ‘बादाम-काजू’ बनकर रह जाएगी?
प्रदेश की जनता यह जानना चाहती है—“सरकार जल बचा रही है या जल में घोटाले को बहा रही है?”