“जिस दिन बेटी केक काटती… उसी दिन चिता पर सजा जन्मदिन — पिता ने चिता पर काटा केक, रो पड़ा पूरा मुक्तिधाम”
कवर्धा में दर्दनाक सड़क हादसे के बाद बेटी के जन्मदिन पर हुआ अंतिम संस्कार, हृदय विदारक दृश्य ने सबको रुला दिया!
kawardha /कभी सोचा नहीं था कि जिस दिन बेटी मोमबत्तियाँ फूंकेगी, उसी दिन उसे मुखाग्नि देनी पड़ेगी… ये शब्द थे उस टूटे-बिखरे पिता के, जिसने अपनी 14 वर्षीय बेटी अदिति (आदित्री) भट्टाचार्य के जन्मदिन पर मुक्तिधाम में खड़ा होकर दिल पर पत्थर रख चिता के सामने जन्मदिन का केक काटा। ऐसा दृश्य जिसने वहां मौजूद हर आंख को नम कर दिया, हर दिल को झकझोर दिया। यह कोई फिल्मी दृश्य नहीं, बल्कि ज़िंदगी का वो कड़वा सच था, जो छत्तीसगढ़ के कवर्धा में एक बाप के जीवन में हमेशा के लिए दर्द बनकर दर्ज हो गया।
बर्थडे पर ही सजी बेटी की अर्थी!
मंगलवार को अदिति का जन्मदिन था। लेकिन नियति को कुछ और ही मंजूर था। चिल्फी थाना क्षेत्र के अकलघरिया के पास रविवार शाम बोलेरो और ट्रक की आमने-सामने की भिड़ंत में मां-बेटी की मौके पर ही मौत हो गई। हादसा इतना भीषण था कि बोलेरो के परखच्चे उड़ गए। अस्पताल में शव को लाने के बाद 43 घंटे तक बिना फ्रीजर रखे शव पड़े रहे, जिससे परिजनों का दुख और गहरा गया।
मंगलवार को जब कवर्धा के लोहारा रोड मुक्तिधाम में मां परम भट्टाचार्य और बेटी अदिति का अंतिम संस्कार हुआ, तो पूरा मुक्तिधाम सिसक उठा। बेटी की चिता के पास पिता ने वही केक रखा, जिसे जन्मदिन पर काटना था। पिता ने कांपते हाथों से मोमबत्ती जलाई और बेटी की याद में केक काटा। वहां मौजूद सैकड़ों लोग फूट-फूटकर रो पड़े।
43 घंटे तक लावारिस से पड़े रहे शव, अस्पताल प्रशासन पर उठे सवाल!
हादसे में पांच लोगों की मौत हुई और पांच लोग घायल हुए। मृतकों में परम भट्टाचार्य (46 वर्ष), अदिति भट्टाचार्य (14 वर्ष), पोपी बर्मन (48 वर्ष), अन्वेषा सोम (41 वर्ष), अजय कुशवाहा (ड्राइवर) शामिल थे। ये सभी कोलकाता निवासी थे और कान्हा केसली से लौटते समय बोलेरो में सवार थे। ट्रक और बोलेरो की टक्कर इतनी तेज़ थी कि बोलेरो बुरी तरह चकनाचूर हो गया।
दुर्घटना के बाद बोड़ला अस्पताल में शवों को 24 घंटे तक बिना फ्रीजर और बिना बर्फ के खुले कमरे में रखा गया। अस्पताल परिसर में दुर्गंध और संक्रमण का खतरा फैल गया, लेकिन किसी अधिकारी की नज़र इस दर्दनाक लापरवाही पर नहीं पड़ी। 43 घंटे बाद जाकर पोस्टमार्टम हुआ और परिजनों को शव सौंपे गए।
“फोन पर बोली थी — पापा इस बार बड़ा वाला केक चाहिए…”!
बच्ची के पिताजी ने भर्राई आवाज़ में बताया — “दो दिन पहले अदिति से फोन पर बात हुई थी। उसने कहा था कि इस बार जन्मदिन पर बड़ा वाला केक चाहिए और नए कपड़े भी लेने जाना है… कौन जानता था कि उसी दिन मुक्तिधाम में बैठकर मैं उसका जन्मदिन मनाऊंगा।”
जैसे ही पिता ने केक उठाया और बेटी की चिता के पास रखा, माहौल में सन्नाटा छा गया। कुछ देर तक कोई बोल नहीं सका। केवल सिसकियों और रोने की आवाज़ गूंज रही थी। मुक्तिधाम में उपस्थित हर व्यक्ति के लिए वह क्षण किसी बुरे सपने से कम नहीं था।
शहर में पसरा मातम, कोलकाता में भी गूंजा हादसे का दर्द!
हादसे के बाद कोलकाता से परिजन कवर्धा पहुंचे। दो शवों को कोलकाता रवाना किया गया जबकि मां और बेटी का अंतिम संस्कार कवर्धा में ही किया गया। जैसे ही चिता में अग्नि दी गई, पूरा मुक्तिधाम भावनाओं के सैलाब में डूब गया।
इस दृश्य को जिसने भी देखा, उसका हृदय द्रवित हो उठा। लोगों की आंखों से आंसू थमने का नाम ही नहीं ले रहे थे। शहर में मातम का माहौल छा गया। सोशल मीडिया पर भी यह दर्दनाक दृश्य वायरल हो गया और हजारों लोगों ने संवेदना व्यक्त की।
सीएमएचओ ने मानी कमी, मांगी रिपोर्ट!
जिले में शव संरक्षण की बदतर स्थिति पर कवर्धा के सीएमएचओ ने स्वीकार किया कि व्यवस्था बहुत सीमित है। उन्होंने सभी ब्लॉक बीएमओ से रिपोर्ट तलब की है और कहा है कि हर ब्लॉक अस्पताल में फ्रीजर यूनिट और मार्चुरी कक्ष की व्यवस्था की जाएगी।
हादसे के बाद स्वास्थ्य विभाग हरकत में आया और शव संरक्षण व्यवस्था की समीक्षा शुरू कर दी गई। अगले सप्ताह जिला स्तरीय बैठक में इस पर विस्तृत चर्चा की जाएगी।
घायलों की स्थिति अब सामान्य!
हादसे में घायल अरनदीप दास (10 वर्ष), मुनमुन बेग (42 वर्ष), रिताभास सरकार (17 वर्ष), अद्रिका भट्टाचार्य (18 वर्ष) और सुप्रीति मांझी (19 वर्ष) का कवर्धा जिला अस्पताल में इलाज जारी है। डॉक्टरों के अनुसार सभी की स्थिति अब सामान्य है।
“अदिति अब नहीं… लेकिन उसकी मुस्कान हमेशा रहेगी”!
मुक्तिधाम में अदिति की सहेलियां भी पहुंची थीं। वे ज़ोर-ज़ोर से रोते हुए कह रही थीं — “अदिति अब नहीं रही… लेकिन उसकी हंसी हमेशा हमारे साथ रहेगी।” उनके इन शब्दों ने वहां मौजूद हर व्यक्ति की आंखें फिर से नम कर दीं।
समाप्ति नहीं — एक दर्द की शुरुआत!
यह कहानी एक हादसे की नहीं, एक बाप के बिखर जाने की कहानी है। वो बाप जिसने बेटी के जन्मदिन पर उसे मुखाग्नि दी। वो जन्मदिन जो कभी हंसी से भरा होता था, अब हर साल उसकी आंखों में दर्द बनकर लौटेगा।
कवर्धा की इस घटना ने एक बार फिर सवाल खड़े कर दिए हैं — क्या हमारी आपदा और स्वास्थ्य व्यवस्था ऐसे हादसों के लिए तैयार है? क्या शव संरक्षण जैसी बुनियादी सुविधाओं की कमी अब भी जारी रहेगी?
मुक्तिधाम में उस रात केवल चिता ही नहीं जली थी… एक पिता का संसार भी राख हो गया था।