अबूझमाड़ में मची हलचल, बस्तर की धरती पर टूटा नक्सली आतंक का किला!”
नारायणपुर/बीजापुर में18 जुलाई की सुबह बस्तरके घने जंगलों में गूंजे गोलियों के धमाके, जो महज़ मुठभेड़ नहीं, बल्कि नक्सली नेटवर्क के एक बड़े हिस्से का अंत साबित हुए। सुरक्षाबलों ने नारायणपुर जिले के अबूझमाड़ क्षेत्र में छह खूंखार नक्सलियों को मार गिराया, जिनमें चार महिलाएं भी शामिल थीं। इन पर कुल ₹48 लाख का इनाम घोषित था। यह ऑपरेशन बरसात के कठिन मौसम में भी सुरक्षा बलों की दृढ़ इच्छाशक्ति और रणनीतिक कौशल का प्रतीक बनकर उभरा।
नक्सलियों का ‘बेस्ट प्लाटून’ – अब इतिहास!
मारे गए सभी नक्सली न केवल प्रशिक्षित थे बल्कि माओवादी संगठन की सुरक्षा व्यवस्था की रीढ़ माने जाते थे। इनमें सबसे खतरनाक नाम था —राहुल पुनेम उर्फ लच्छू पुनेम, PLGA प्लाटून नंबर-1 का कमांडर।यह वही कमांडर था जो माओवादी टॉप लीडरों को एक स्थान से दूसरे स्थान तक सुरक्षित एस्कॉर्ट करने का काम करता था। उसके साथ मारे गए अन्य नक्सली थे —
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उंगी टाटी,
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मनीषा,
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टाटी मीना उर्फ सोमरी,
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हरीश उर्फ कोसा,
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कुड़ाम बुधरी,
ये सभी नक्सली PLGA यानी पीपुल्स लिबरेशन गुरिल्ला आर्मी की प्लाटून नंबर-1 के सदस्य थे, जिन्हें संगठन का “बेस्ट फाइटिंग यूनिट” कहा जाता था। हर एक के सिर पर ₹8 लाख का इनाम था।
जंगल में छिपा था आतंक, जवानों ने घुसकर किया खात्मा!
सुरक्षा एजेंसियों को खुफिया सूचना मिली थी कि ये नक्सली किसी बड़ी मूवमेंट या साजिश की तैयारी में हैं। इसके बाद एक विशेष ऑपरेशन की योजना बनी।बारिश की मार, कीचड़ से लथपथ रास्ते, पहाड़ियों की चुनौती, लेकिन भारतीय सुरक्षाबलों ने हार नहीं मानी। 18 जुलाई को तड़के परिया-काकुर गांव के जंगल में ऑपरेशन शुरू हुआ और कुछ ही घंटों में बुलेट्स की गूंज ने बस्तर की खामोशी तोड़ दी।सुरक्षाबलों ने स्नाइपर राइफल, AK-47, INSAS, SLR और भारी मात्रा में विस्फोटक सामग्री बरामद की। यह संकेत था कि माओवादी किसी बड़े हमले की फिराक में थे।
मुठभेड़ या निर्णायक युद्ध?
इस एनकाउंटर को महज एक कार्रवाई नहीं, बल्कि “नक्सलवाद के विरुद्ध निर्णायक प्रहार” माना जा रहा है। नारायणपुर के पुलिस अधीक्षक रॉबिनसन गुरिया ने इसे माओवादियों के लिए ‘साइकोलॉजिकल सेटबैक‘ बताया।
“हम बस्तर से नक्सलवाद को समाप्त करने के निर्णायक चरण में प्रवेश कर चुके हैं।”
– रॉबिनसन गुरिया, एसपी, नारायणपुर
उन्होंने साफ कहा कि अब जो नक्सली भ्रमित हैं, उन्हें आत्मसमर्पण कर देना चाहिए वरना उन्हें उसी रास्ते पर चलना होगा, जो राहुल पुनेम और उसके साथियों का आखिरी रास्ता बन गया।
अबूझमाड़ में टूटा ‘आतंक का अभेद्य कवच’!
अबूझमाड़ लंबे समय से माओवादियों का सेफ जोन माना जाता रहा है। यहां के दुर्गम जंगल, ट्राइबल बस्तियां और संचार व्यवस्था की सीमित पहुंच ने माओवादियों को वर्षों तक पनाह दी। लेकिन अब स्थिति बदल रही है।सुरक्षा बलों ने इन जंगलों में कदम-कदम पर सर्च ऑपरेशन और इंटेलिजेंस नेटवर्क मजबूत किया है। यह मुठभेड़ उस रणनीति की सफलता का सबूत है।
नक्सली नेटवर्क में खलबली!
सूत्रों के मुताबिक, इस मुठभेड़ के बाद नक्सलियों के भीतर भारी खलबली मची है। राहुल पुनेम जैसा प्रशिक्षित कमांडर और चार महिला सदस्य माओवादी नेटवर्क की सबसे भरोसेमंद कड़ी माने जाते थे। उनके मारे जाने से न केवल संगठन को मानसिक आघात पहुंचा है, बल्कि उनकी संचालन क्षमता और मोमेंट रणनीति को भी गहरा झटका लगा है।
जनता को राहत, लेकिन सतर्कता जरूरी!
स्थानीय ग्रामीणों के अनुसार, वे वर्षों से इस इलाके में नक्सली गतिविधियों से त्रस्त थे। गांवों में हर समय डर और खौफ का माहौल था। लेकिन अब उन्होंने राहत की सांस ली है।
“पहली बार ऐसा लग रहा है कि नक्सली हार रहे हैं और हम जीत रहे हैं।”
– एक स्थानीय ग्रामीण, नाम गुप्त रखा गया
आत्मसमर्पण या अंधकार?
छत्तीसगढ़ सरकार और पुलिस बार-बार कहती रही है कि माओवादियों के पास अब दो ही रास्ते हैं —
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आत्मसमर्पण करके सम्मानजनक जीवन चुनें
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या फिर सुरक्षाबलों की गोलियों से बिछाए गए रास्ते पर चलकर मृत्यु स्वीकार करें
बस्तर अब विकास चाहता है, बंदूक नहीं। स्कूल, सड़क, स्वास्थ्य और सम्मान — यह है नया सपना, और सुरक्षाबलों ने इन सपनों की रक्षा के लिए हर कदम उठा रखा है।18 जुलाई को नारायणपुर के परिया-काकुर जंगल में जो हुआ, वह छत्तीसगढ़ के नक्सल विरोधी अभियान के इतिहास में एक निर्णायक अध्याय बन गया। यह केवल 6 नक्सलियों की मौत नहीं, बल्कि एक खतरनाक मानसिकता की हार है।बस्तर की धरती अब धीरे-धीरे उस खौफ के साये से बाहर निकल रही है, जिसने दशकों से उसके भविष्य को बंधक बना रखा था।
बस्तर बोलेगा, बंदूकें नहीं – अब विकास की बात होगी, ना कि विद्रोह की आवाज!