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September 10, 2025 8:30 pm

“जब भगवान बन जाए पैसा: देखिए कैसे CCF प्रभात मिश्रा और उनके ‘सारथी’ सूरज मिश्रा ने सिस्टम को बनाया खिलौना, रच डाली भ्रष्टाचार की अभूतपूर्व कथा!

“जब भगवान बन जाए पैसा: देखिए कैसे CCF प्रभात मिश्रा और उनके ‘सारथी’ सूरज मिश्रा ने सिस्टम को बनाया खिलौना, रच डाली भ्रष्टाचार की अभूतपूर्व कथा!”

बिलासपुर/छत्तीसगढ़ वन विभाग में  भ्रष्टाचार की जो तस्वीरें अब तक छिपी हुई थीं, वे धीरे-धीरे सामने आ रही हैं। इन परतों को अगर ठीक से खोला जाए, तो यह स्पष्ट हो जाएगा कि किस तरह मुख्य वन संरक्षक (CCF) प्रभात मिश्रा ने विभाग को अपनी निजी कमाई का अड्डा बना लिया है—और इस काम में उनका सबसे भरोसेमंद सहयोगी है डिप्टी रेंजर सूरज मिश्रा, जो उनके कथित रिश्तेदार भी बताए जाते हैं।

ये कैसा रिश्ता, रसूख और रिश्वत की त्रिकोणीय राजनीति:- CCF प्रभात मिश्रा की कार्यशैली को लेकर विभागीय गलियारों में लंबे समय से चर्चाएं हैं। कहा जाता है कि वे अपने रसूख और पद का उपयोग कर नियमों को तोड़ते हैं, अपने मनचाहे अधिकारियों को लाभ पहुंचाते हैं और जो अधिकारी उनके इशारों पर न चले, उनके खिलाफ जांच, नोटिस और निलंबन जैसे हथियारों का उपयोग करते हैं।

उनका कथित डायलॉग —“मेरा सिर्फ एक ही भगवान है और वो पैसा है…”अब पूरे विभाग में चर्चा का विषय बन चुका है।

उनके सहयोगी डिप्टी रेंजर सूरज मिश्रा को “सारथी” की उपाधि दी गई है, क्योंकि वे न केवल प्रभात मिश्रा की वसूली अभियान का नेतृत्व करते हैं बल्कि अवैध कार्यों को अंजाम तक पहुंचाने में भी अहम भूमिका निभाते हैं।

सांठगांठ का पर्दाफाश:- तस्करी, बजट और ब्लैकमेलिंग का नेटवर्क अवैध कटाई और लकड़ी तस्करी सूरज मिश्रा के माध्यम से जंगलों से कीमती लकड़ी कटवाई जाती है। हाल ही में एक ऐसी ही तस्करी का मामला उजागर हुआ जिसमें लकड़ी से बने दरवाजों की अवैध ढुलाई की जा रही थी। यह सामान कथित रूप से प्रभात मिश्रा के करीबी को भेजा जा रहा था, लेकिन बीच में पुलिस और उड़नदस्ता टीम  की गिरफ्त में आ गया।

हफीज खान का निलंबन और 5 लाख की डील:- 

आरोप है कि सूरज मिश्रा को सोढ़ी सर्किल में डिप्टी रेंजर बनाने के लिए पूर्व डिप्टी रेंजर हफीज खान को CCF प्रभात मिश्रा ने साजिश के तहत निलंबित करवा दिया। उनकी बहाली के लिए मंत्री के PA के माध्यम से संपर्क किया गया, लेकिन कथित रूप से 5 लाख रुपये की मांग की गई थी।CCF प्रभात मिश्रा अपने पद के नशे पर इतना चूर हो चुके हैं कि उनके द्वारा माननीय न्यायालय के आदेश को भी दरकिनार कर दिया।मैं ही रहा में ही प्रजा का खेल खेला जा रहा है बिलासपुर वृत्त पर!

 

वन बल प्रमुख श्री निवास राव एवं वन विभाग की ACS अधिकारी के इनके कारनामे बखूभी संज्ञान होने पर भी कोई प्रतिक्रिया सामने नहीं आ रही है इससे स्पष्ट होता है कि प्रभात मिश्रा को इनका बेजोड़ गठबंधन है जिससे उनके सभी कार्यनामों को अनदेखा किया जा रहा है क्या वाकई प्रभात मिश्रा को भ्रष्टाचार  करने के लिये संरक्षण दिया जा रहा है ?

बजट आवंटन में कमीशनखोरी:- प्रभात मिश्रा पर आरोप है कि वे बजट समान रूप से वितरित नहीं करते, बल्कि जिस DFO से अधिक कमीशन मिलता है उसे प्राथमिकता देते हैं। वे कहते हैं—“कौन देखता है किस मद का क्या काम होना चाहिए? जो चाहो कर लो।” यह कथन दर्शाता है कि वे अपने अधीनस्थ अधिकारियों को भी नियमों को तोड़ना सिखाते हैं।

CR (गोपनीय प्रविष्टि) में दबाव और वसूली:
कई कर्मचारियों ने आरोप लगाया है कि CR में नकारात्मक एंट्री डालने या उसे हटाने के नाम पर पैसों की मांग की जाती है।CR एक ऐसा मुद्दा है जिससे छोटे छोटे कर्मचारियों की जिंदगी दाव में लग जाती है

पोस्टिंग और जांच के नाम पर वसूली:- ट्रांसफर पोस्टिंग, पुराने मामलों को रफा-दफा करने और जांच की धमकी देकर रेंजरों व SDO से भी वसूली की जाती है। सीधे शब्दों में सिस्टम को अपने लाभ के लिए मोड़ने वाला गठजोड़!

CCF प्रभात मिश्रा और सूरज मिश्रा का संबंध केवल रिश्तेदारी या कार्यालयी नहीं है, बल्कि यह एक ऐसा सिस्टमेटिक गठजोड़ बन चुका है, जिसने विभागीय प्रणाली को भीतर से खोखला कर दिया है। आदेश, नोटिस, बजट, पोस्टिंग—हर प्रक्रिया में ‘मुनाफा’ प्राथमिकता बन चुका है।

 

अपने अधीनस्थ अधिकारी और कर्मचारियों के पास सत्ता पार्टी की धौंस:- प्रभात मिश्रा अक्सर अपने निकटवर्ती अधिकारियों और कर्मचारियों से खुलकर यह कहते नजर आते हैं कि उनका संबंध RSS और भारतीय जनता पार्टी के शीर्ष नेतृत्व से व्यक्तिगत और घरेलू स्तर पर संबंध जुड़ा है। मुझे कोई छू नहीं सकता!”जिंदगीभर RSS और BJP के लिए काम किया, उसी का फल है जो बिलासपुर CCF की कुर्सी मिली।”और यही कारण है कि उन पर कोई कार्रवाही नहीं हो पाती, चाहे उन पर कितनी भी गंभीर शिकायत क्यों न हो।मेरा कोई कुछ भी नहीं बिगाड़ सकता प्रभात मिश्रा की धमकी भरी शैली मैं शासन का आदमी हूँ!जब वे किसी गंभीर विभागीय या कानूनी फंदे में फंसते नजर आते हैं, तो वे खुलेआम यह कहते सुने जाते हैं!ACB और EOW में मेरे रिश्तेदार अमरेश मिश्रा हैं, वहाँ से कुछ नहीं होगा।”

पुलिस में कई IG और SP मेरे मित्र हैं।”

•वन विभाग में तो हम बजट का 5.25% तो देते ही हैं, और जरूरत पड़ी तो 10% तक चला जाएगा।

शिकायत की चिंता नहीं, पर्टिकुलर काम का 10-20% हिस्सा दे देंगे।

और अगर फिर भी कुछ बड़ा हुआ तो राजनाथ जी तो हैं ही, ब्रह्मास्त्र की तरह!

•कुर्सी पर बैठे व्यक्ति का सत्ता और सिस्टम पर विश्वास या अहंकार क्यों?

प्रभात मिश्रा के ऐसे कथित दावों से यह स्पष्ट होता है कि वे विभागीय और राजनीतिक सिस्टम पर इतना मजबूत पकड़ महसूस करते हैं कि उन्हें किसी भी जांच, आरोप या शिकायत का भय नहीं है। यह रवैया न सिर्फ प्रशासनिक जवाबदेही पर प्रश्न खड़ा करता है, बल्कि भ्रष्टाचार की जड़ों में सत्ता और रसूख के गठजोड़ को उजागर करता है।

जब एक वरिष्ठ अधिकारी खुद को “छूने से परे” समझने लगे और संस्थागत भ्रष्टाचार को संरक्षण मिलने लगे, तो ऐसे में विभागीय व्यवस्था और जनहित दोनों खतरे में पड़ जाते हैं। प्रभात मिश्रा जैसे अधिकारियों की गतिविधियों की स्वतंत्र और उच्च स्तरीय जांच अब बेहद आवश्यक हो गई है।

https://jantakitakat.com/2025/05/16/सोंढी-जंगल-से-उठी-तस्करी-क/

इसी तरह के राजनीतिक बोल, पकड़ और रिस्तेदारों का दम भरने वाले अधिकारी  DFO अशोक पटेल जोकि आज हवालात की हवा खा रहे है उनकी  कहानी से सीख लें CCF प्रभात मिश्रा!

छत्तीसगढ़ वन विभाग में ऐसे कई उदाहरण हैं जहाँ अधिकारी अपने राजनीतिक रसूख, उच्चस्तरीय संपर्क और कथित रिश्तेदारियों के दम पर खुद को अजेय मान बैठते हैं। बिलासपुर के CCF प्रभात मिश्रा जिस तरह खुद को ‘छूने से परे’ बताकर व्यवस्था को चुनौती देते नजर आते हैं, वैसा ही एक उदाहरण पूर्व में सुकमा के DFO रहे अशोक पटेल का भी सामने आया था।

•DFO अशोक पटेल कहते फिरते थे ‘‘मैंने पूरा सिस्टम बांध रखा है

•उनके भाई किसी जिले के SP हैं व कई मित्र पुलिस में बड़े पोस्ट में हैं,

•विधायक दिनेश पटेल सहित बहुत से विधायक उनके रिश्तेदार हैं,

•पूर्व कलेक्टर और वर्तमान मंत्री माननीय ओ.पी. चौधरी से उनका पारिवारिक संबंध है,

•सेवानिवृत्त CCF नायक उनके मार्गदर्शक हैं,

•और विभागीय प्रमुख PCCF व्ही. श्रीनिवास राव के नाम का भी वे खुलेआम उपयोग करते थे।

•वे अक्सर कर्मचारियों और शिकायतकर्ताओं को धमकाते हुए कहते थे—“मुझे कोई हाथ नहीं लगा सकता।”

जब भ्रष्टाचार सामने आया, कोई नहीं आया बचाने:-  सच्चाई सामने आई और आरोप लगे कि उन्होंने सुकमा के आदिवासियों के तेंदूपत्ता बोनस की रकम को गबन किया है, तब न तो कोई रिश्तेदार, विधायक काम आया, न SP भाई, न मंत्री और न ही वनबल प्रमुख।

•ACB की छापेमारी हुई,

•विभागीय निलंबन हुआ,

•और गिरफ्तारी भी हो गई हवालात की हवा खा रहे है DFO साहब !

DFO अशोक पटेल का उदाहरण वन विभाग के हर अधिकारी के लिए चेतावनी है। प्रभात मिश्रा कर्मकांड कर रहे है तो उसमें सत्ता को क्यों बदनाम किया जा रहा है? क्या सत्ता पक्ष को बदनाम करने में उनकी कोई सुनियोजित कोई चाल है?

प्रभात मिश्रा द्वारा किये जा रहे भ्रष्टाचार के खिलाफ निष्पक्ष, स्वतंत्र और समयबद्ध जांच क्यों नहीं की जा रही है? 

•क्या वाकई में प्रभात मिश्रा इतनी ऊंची पकड़ रखते है जिससे उनके खिलाप इतने समाचार लगने के बाद भी शासन और प्रशासन चुप्पी साधे बैठा है?

•यदि इन मामलों की पूरी छानबीन हुई तो यह निश्चित है कि न केवल प्रभात मिश्रा और सूरज मिश्रा, बल्कि उनसे जुड़े पूरे नेटवर्क की असलियत सामने आएगी!

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