“सलाकार”: एक रॉ एजेंट, दो कालखंड, और उपमहाद्वीप की किस्मत — जासूसी थ्रिलर ने मचाई सनसनी!
8 अगस्त को JioCinema पर रिलीज़ हुई “सलाकार” सीरीज ने दर्शकों को रोमांच, रहस्य और देशभक्ति के भावों में डुबो दिया है। फारुक कबीर द्वारा निर्देशित यह जासूसी थ्रिलर उन अनकही कहानियों की परतें खोलती है जो भारत-पाकिस्तान के छाया युद्ध और परमाणु हथियारों की होड़ से जुड़ी हैं।
दो कालखंड, एक मिशन: अधीर दयाल की गुप्त गाथा!
““सलाकार” की कहानी दो समयरेखाओं में समानांतर चलती है — 1978 और 2025। दोनों समयों में एक नाम केंद्रीय भूमिका निभाता है — अधीर दयाल, एक जांबाज़ रॉ एजेंट, जो देश की रक्षा के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार है।
1978 में अधीर को पाकिस्तान के कहुटा स्थित एक गुप्त परमाणु संयंत्र को निष्क्रिय करने की जिम्मेदारी सौंपी जाती है। यह मिशन केवल एक गुप्त कार्रवाई नहीं, बल्कि पूरा उपमहाद्वीप बचाने की लड़ाई है। अधीर अपनी जान हथेली पर लेकर पाकिस्तान की सरहद के भीतर कदम रखता है।
2025 में अधीर अब एक उम्रदराज़, शांत और छाया में जीने वाला व्यक्ति है। लेकिन इतिहास का एक अधूरा अध्याय फिर से दस्तक देता है। एक नई साजिश, एक नया दुश्मन, और एक बार फिर अधीर को मैदान में उतरना पड़ता है — इस बार न केवल अपने देश, बल्कि पूरे दक्षिण एशिया के भविष्य के लिए।
अभिनय का महासंग्राम: नवीन कस्तूरिया की जबरदस्त वापसी!
नवीन कस्तूरिया ने अधीर दयाल के किरदार में संवेदनशीलता और सख्ती का बेहतरीन संतुलन दिखाया है। एक युवा, जोश से भरे रॉ एजेंट से लेकर एक थके हुए लेकिन फिर भी सजग योद्धा तक का सफर उन्होंने बारीकी से निभाया है।
मौनी रॉय, जो सीरीज में एक पत्रकार और अधीर की रहस्यमयी सहयोगी के रूप में नजर आती हैं, ने दर्शकों को अपने अभिनय से चौंका दिया। उनका किरदार जितना ग्लैमरस है, उतना ही गूढ़ और जटिल भी।
मुकेश ऋषि और अश्वथ भट्ट जैसे अनुभवी कलाकारों ने भी अपने-अपने किरदारों में गहराई और विश्वसनीयता डाली है। खासकर अश्वथ भट्ट का किरदार एक ऐसे शातिर मास्टरमाइंड का है जो इतिहास को फिर से लिखने की जुगत में है।
निर्देशन और पटकथा: फारुक कबीर की शानदार कूटनीति!
निर्देशक फारुक कबीर ने इस जासूसी थ्रिलर को न सिर्फ एक रोचक कहानी की तरह पेश किया है, बल्कि इसे ऐतिहासिक सच्चाई से प्रेरित बनाकर और भी प्रभावशाली बना दिया है। उनकी शैली तेज़, कटिंग और भावनाओं से लबालब है।
हालाँकि कुछ समीक्षक इस बात की ओर इशारा करते हैं कि 1978 के दृश्यों में यथार्थवाद और बारीकी की कमी रही है। फिर भी, पटकथा की कसावट और कैमरा वर्क ने इन खामियों को बहुत हद तक ढक दिया है।
समीक्षकों की राय: जब दिल और दिमाग दोनों थम जाएँ!
• “सलाकार वह सीरीज है जो भारत की खुफिया एजेंसियों की परछाइयों में छुपे हीरो को सामने लाती है।”
• “नवीन कस्तूरिया ने अपने करियर का सबसे परिपक्व और दमदार किरदार निभाया है।”
• “मौनी रॉय ने अपनी भूमिका से दर्शकों को स्तब्ध कर दिया।”
• “कुछ तकनीकी त्रुटियों के बावजूद, ‘सलाकार’ एक प्रभावशाली और अनदेखा पक्ष पेश करती है।”
विषय की गंभीरता: केवल मनोरंजन नहीं, एक चेतावनी!
भारत-पाकिस्तान के बीच की राजनीतिक खींचतान, परमाणु हथियारों की होड़, जासूसी की दुनिया और एक अनसुनी लड़ाई, यह सब “सलाकार” को केवल एक वेब सीरीज नहीं, बल्कि एक जरूरी अनुभव बनाता है। यह सीरीज उस अनदेखे युद्ध की दास्तान है जो कूटनीतिक मंचों के पीछे, जासूसी गलियारों में लड़ा गया।
5 एपिसोड्स, एक सांस में देखने लायक!
सिर्फ 5 एपिसोड्स में गूंथी गई यह सीरीज हिंदी भाषा में उपलब्ध है और JioCinema पर 8 अगस्त से स्ट्रीम की जा रही है। इसकी कसी हुई कहानी, रहस्यमयी किरदार और देशभक्ति से भरी थीम ने इसे एक वॉच-ऑन-डिमांड सीरीज बना दिया है।
जब देश की रक्षा ही एकमात्र धर्म हो!
“सलाकार” सिर्फ एक सीरीज नहीं, बल्कि उन अज्ञात वीरों को श्रद्धांजलि है, जिन्होंने बिना पहचान, बिना तालियों के देश के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर किया। अधीर दयाल का किरदार हमें याद दिलाता है कि असली देशभक्त वो होते हैं जो बिना दिखावे के काम करते हैं।
यदि आप जासूसी, थ्रिल, और देशभक्ति के मिश्रण से भरी कहानी देखना चाहते हैं — तो “सलाकार” आपके लिए एक परफेक्ट चॉइस है।
“सलाकार”: जब साज़िश इतिहास से भी पुरानी हो, और उसका हल सिर्फ एक रॉ एजेंट के पास हो!”