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October 16, 2025 2:42 pm

मानदेय का मूक आंदोलन – अब गरजेगी आंगनबाड़ी की आवाज़!”!

मानदेय का मूक आंदोलन – अब गरजेगी आंगनबाड़ी की आवाज़!”!“सात दिन की मोहलत… उसके बाद महासमुंद में सड़कों पर उतरेगा आक्रोश”

Mahasamund/सरायपाली ब्लॉक के केदुवा सेक्टर में आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं का सब्र अब टूटने की कगार पर है। तीन माह से लगातार मानदेय कटौती से त्रस्त कार्यकर्ताओं ने अब खुली चेतावनी दे दी है – “सात दिन में हमारा मानदेय लौटाओ, नहीं तो आंदोलन तय है!”

इस चेतावनी की गूंज सोमवार को जिला मुख्यालय में सुनाई दी, जब केदुवा सेक्टर की दर्जनों आंगनबाड़ी कार्यकर्ता अपने सिर पर बैनर, हाथों में तख्ती और आंखों में आक्रोश लिए कलेक्टर कार्यालय पहुंचीं। उनका कहना था कि “हमने बच्चों का भविष्य सँवारा, गर्भवती माताओं को संभाला, लेकिन हमारा ही हक छीन लिया गया।”

कटौती की कहानी – और भीतरी सच्चाई!
जुलाई, अगस्त और सितंबर — तीन महीनों का पसीने से कमाया हुआ मानदेय बिना किसी ठोस कारण के काट लिया गया। कार्यकर्ताओं के अनुसार, सुपरवाइजर वर्षा अग्रवाल ने यह कहते हुए रकम रोक दी कि “हितग्राहियों का KYC (FRS) समय पर पूरा नहीं हुआ।”

लेकिन जमीनी सच्चाई कुछ और है। ग्रामीण इलाकों में नेटवर्क की समस्या, हितग्राहियों की अनुपस्थिति और मोबाइल ओटीपी की दिक्कतों के कारण यह प्रक्रिया समय पर पूरी नहीं हो सकी। कार्यकर्ताओं का सवाल है — “जब नेटवर्क नहीं चलता, तो क्या हम आसमान से सिग्नल लाएँ?”

उन्होंने आगे बताया कि जिला मुख्यालय से पहले ही स्पष्ट निर्देश जारी किए गए थे कि जिन हितग्राहियों का KYC पूरा नहीं हो पाया है, उन्हें भी योजना का लाभ दिया जाएगा। इसके बावजूद सुपरवाइजर ने न केवल मानदेय काटा बल्कि कार्यकर्ताओं से अभद्र भाषा में बात कर अपमानित किया।

एक कार्यकर्ता ने कहा —
“ सुपरवाइजर वर्षा अग्रवाल हमको कहती है कि ‘अन्य विभागों का काम करती हो उनसे मानदेय नहीं मांगती हो और हमारा शिकायत करती हो।’ इस प्रकार वर्षा अग्रवाल को कार्यकर्ताओं को नहीं बोलना चाहिए क्योंकि अन्य विभाग भी शासन के विभाग है इस तरह के कथन कार्यकर्ताओं के मनोबल को तोड़ता है”

हम चुप नहीं रहेंगे!” – गरजीं कार्यकर्ता!
कलेक्टर को सौंपे गए ज्ञापन में कार्यकर्ताओं ने तीन स्पष्ट मांगें रखी हैं —
काटा गया मानदेय तुरंत बहाल किया जाए।
•सुपरवाइजर वर्षा अग्रवाल की मनमानी और पक्षपातपूर्ण रवैये की जांच की जाए।
•भविष्य में ऐसी घटनाओं से बचने के लिए स्पष्ट दिशा-निर्देश जारी किए जाएं।

उन्होंने कहा कि यदि अगले 7 दिनों में कार्रवाई नहीं की गई, तो वे जिला एवं ब्लॉक मुख्यालयों का घेराव करेंगी।
“अब हमारे सब्र का बांध टूट चुका है। अगर हमारा हक नहीं मिला, तो हम आंदोलन की राह चुनेंगे!”

आंगनबाड़ी – सेवा की सच्ची रीढ़!
इन कार्यकर्ताओं की भूमिका समाज के सबसे निचले स्तर तक पहुँचने वाली योजनाओं की रीढ़ मानी जाती है।वे न केवल बच्चों को पौष्टिक आहार और शिक्षा देती हैं, बल्कि मातृ-शिशु स्वास्थ्य की निगरानी से लेकर सरकारी योजनाओं की अंतिम डिलीवरी तक उनका अहम योगदान है।

फिर भी, महिनों की मेहनत का मानदेय रोका जाना, उनके आत्मसम्मान पर चोट है।प्रदेश अध्यक्ष सुधा रात्रे ने कहा —
“यह सिर्फ तीन कार्यकर्ताओं का मामला नहीं है, यह पूरे सिस्टम की विफलता है। अगर अब भी जिला प्रशासन नहीं जागा, तो ब्लॉक से लेकर जिला मुख्यालय तक   बड़ा आंदोलन खड़ा होगा।”

महिलाओं का आक्रोश प्रशासन के द्वार तक!
कलेक्टर कार्यालय के बाहर जब दर्जनों आंगनबाड़ी कार्यकर्ता “हमारा हक हमें दो” के नारे लगा रही थीं, तो माहौल बिजली की तरह गूंज उठा।सड़क से लेकर दफ्तर तक अफसरों के चेहरे पर तनाव साफ नजर आया।कलेक्टर को दिए गए ज्ञापन की प्रतिलिपि जिला कार्यक्रम अधिकारी और परियोजना अधिकारी सरायपाली को भी सौंपी गई।

ज्ञापन देने वालों में सुधा रात्रे (प्रदेश अध्यक्ष), सुलेखा शर्मा (जिला अध्यक्ष), छाया हिरवानी, हाजरा खान, धनमती बघेल, रंभा जगत, रूपा भारती, विमला सोनी, पूर्णिमा ठाकुर, सुल्ताना खान, अंजू चंद्राकर, रागिनी चंद्राकर, सुशीला हरपाल समेत कई कार्यकर्ता उपस्थित रहीं।उनकी एकजुटता यह संदेश दे रही थी कि “अब चुप्पी नहीं, जवाब चाहिए।”

प्रशासन के लिए चुनौती:अब सारा ध्यान जिला प्रशासन की ओर है।

क्या वे इन कार्यकर्ताओं की पीड़ा को समझेंगे या मामले को कागजी जांच में दबा देंगे?
•जिले के अन्य ब्लॉकों की कार्यकर्ता भी इस घटना पर नजर रखे हुए हैं।
•अगर कार्रवाई में ढिलाई हुई, तो यह चिंगारी पूरे जिले में बड़ा आंदोलन बन सकती है।

अंतिम चेतावनी – 7 दिन का अल्टीमेटम!
ज्ञापन के अंत में कार्यकर्ताओं ने साफ लिखा है —

“यदि सात दिनों के भीतर मानदेय बहाल नहीं किया गया, तो सरायपाली से लेकर महासमुंद तक सड़कों पर उतरकर हम आंदोलन करेंगे। प्रशासन तैयार रहे, क्योंकि यह आवाज़ अब दबने वाली नहीं।”

महासमुंद की सड़कों पर अब एक नई गूंज है —
“हम आंगनबाड़ी हैं, हमारी पहचान मेहनत से है… अगर हक छीना गया, तो आंदोलन से जवाब देंगे!”

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