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September 10, 2025 3:56 pm

माँ-बाप की गोद सूनी, सिस्टम ने छीनी आखिरी उम्मीदें: सिलसिला डूबकांड में दो मासूमों की मौत के बाद स्वास्थ्य विभाग पर गिरी गाज,,,,,,,BMO और मेडिकल ऑफिसर को एक साथ पकड़ाया गया निलंबन का फरमान,,,,,

माँ-बाप की गोद सूनी, सिस्टम ने छीनी आखिरी उम्मीदें: सिलसिला डूबकांड में दो मासूमों की मौत के बाद स्वास्थ्य विभाग पर गिरी गाज,,,,,,,BMO और मेडिकल ऑफिसर को एक साथ पकड़ाया गया निलंबन का फरमान,,,,,

बतौली, छत्तीसगढ़/”माँ, अब सूरज कब घर आएगा?” — ये सवाल अब कभी नहीं पूछा जाएगा। क्योंकि सूरज और जुगनू अब कभी लौटकर नहीं आएंगे। दो मासूम, दो चचेरे भाई — सूरज और जुगनू — 18 मई की दोपहर डबरी में नहाने गए थे, लेकिन डूबकर हमेशा के लिए आंखें मूंद लीं। गांव में मातम पसरा है और हर आँख नम है।

इंसानियत का खुलेआम गिरवी रख दियें :- इस दर्दनाक हादसे से भी ज्यादा पीड़ा तब हुई, जब इन मासूमों की मौत पर सिस्टम का बेरहम चेहरा सामने आया। मौत के बाद जब परिजन बच्चों के शव पोस्टमॉर्टम के लिए रघुनाथपुर प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र ले गए, तो डॉक्टरों ने कथित रूप से 20 हजार रुपये की मांग कर दी। इतना ही नहीं, शवों को घर ले जाने के लिए वाहन तक मुहैया नहीं कराया गया। एक तरफ दो परिवार गहरे सदमे में डूबे थे, और दूसरी ओर सिस्टम उन्हें और गहरे घाव दे रहा था।

आक्रोश फैलने के बाद मिला निलंबन का फरमान:- इस घटना के बाद जब प्रदेशभर में आक्रोश फैला, तब जाकर प्रशासन ने हरकत में आने की जहमत उठाई। स्वास्थ्य सचिव के निर्देश पर कलेक्टर ने बड़ी कार्रवाई करते हुए धौरपुर के BMO डॉ. राघवेंद्र चौबे को निलंबित कर दिया है। साथ ही, रघुनाथपुर अस्पताल में पदस्थ मेडिकल ऑफिसर डॉ. अमन जायसवाल को भी तत्काल प्रभाव से हटा दिया गया है।

गौरतलब है कि यह हादसा बतौली विकासखंड के अंतर्गत आने वाले ग्राम सिलसिला के घोड़ा झरिया टोला में हुआ। 5 वर्षीय जुगनू और 4 वर्षीय सूरज अपने परिजनों के साथ डबरी में नहाने गए थे, लेकिन खेलते-खेलते गहराई में चले गए और डूब गए। जब तक लोगों को समझ आता, तब तक बहुत देर हो चुकी थी।

परिजनों ने तुरंत बच्चों को अस्पताल पहुंचाया, लेकिन वहां डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया। इसके बाद शुरू हुआ सिस्टम का अमानवीय चेहरा दिखाने का सिलसिला। आरोप है कि पोस्टमॉर्टम के लिए 10-10 हजार रुपये की मांग की गई, और शव ले जाने के लिए कोई एंबुलेंस या वाहन उपलब्ध नहीं कराया गया।

•क्या सिस्टम इतना हैवान हो जाएगा?

•क्या सुशासन तिहार सिर्फ दिखावा है?

•क्या स्वास्थ्य मंत्री सिर्फ दौरे के नाम पर प्रचार प्रसार कर रहे है? क्या स्वास्थ्य मंत्री जी स्वास्थ्य विभाग के ऐसे मामलों को कितनी गंभीरता से लेंगे?  

इस हृदयविदारक घटना ने पूरे प्रदेश को झकझोर कर रख दिया है। एक ओर राज्य सरकार गरियाबंद जैसे इलाकों में “धरती आबा संतृप्तिकरण शिविर” लगाकर विकास का बिगुल बजा रही है, वहीं दूसरी ओर ग्रामीण अंचलों में स्वास्थ्य सेवाओं की यह हकीकत सामने आ रही है, जो विकास की जमीनी सच्चाई पर सवाल खड़े करती है।

गांव में मातम पसरा हुआ है, और हर कोई पूछ रहा है — “क्या मासूमों की मौत की कीमत 20 हजार है?” दो परिवार उजड़ गए, लेकिन इस घटना ने पूरे सिस्टम को कटघरे में खड़ा कर दिया है।

अब देखना यह होगा कि प्रशासनिक कार्रवाई सिर्फ दिखावा साबित होती है या वास्तव में ग्रामीण स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार आता है। फिलहाल तो सिलसिला गांव के लोग बस यही कह रहे हैं —जिन्हें दर्द से सहारा देना चाहिए था, उन्होंने ही जख्म बेच दिए।”

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