“फुटकर दुकानों तक सिमटी कार्यवाही, थोक कारोबारियों पर रहस्यमयी चुप्पी”: वर्षों से जमे खाद्य एवं ओषधि निरीक्षक पर उठे सवाल!
Gariyaband/जिला प्रशासन की कार्रवाई एक बार फिर सवालों के घेरे में है। बुधवार को राजिम क्षेत्र में खाद्य सुरक्षा विभाग और पुलिस की संयुक्त टीम ने सरप्राइज चेकिंग करते हुए कई फुटकर दुकानों से जर्दायुक्त गुटखा और पान मसाला जब्त किया। कागज़ों में कार्रवाई दर्ज हुई, तस्वीरें खींची गईं और प्रेस नोट जारी कर दिया गया। लेकिन हकीकत यह है कि कार्रवाई वहीं तक सिमट गई जहां से प्रशासन को कोई असली चुनौती नहीं मिलनी थी। छोटे-छोटे दुकानदारों पर डंडा चला, जबकि बड़े और संगठित कारोबारी, जिनके दम पर यह अवैध कारोबार फल-फूल रहा है, उन्हें महज ‘सावधान’ कर दिया गया।
सुप्रीम कोर्ट का आदेश और जिला प्रशासन की विफलता!
गौरतलब है कि वर्ष 2016 में सुप्रीम कोर्ट ने पूरे देश में जर्दायुक्त गुटखे की बिक्री और भंडारण पर प्रतिबंध लगाया था। आदेश साफ था कि इस पर किसी भी स्तर पर ढिलाई नहीं बरती जाएगी। लेकिन आदेश के नौ साल बाद भी जमीनी हकीकत यह है कि जिले की हर गली, हर नुक्कड़ और हर चौक-चौराहे की पान गुमटी पर यह जहर आज भी खुलेआम बिक रहा है। सवाल यह उठता है कि आखिर इतने वर्षों से यह कारोबार किसकी शह पर चल रहा है?
कार्रवाई या नाटक?
बुधवार की कार्रवाई ने इस शक को और गहरा कर दिया है। फुटकर दुकानों पर जो गुटखा मिला, उसमें भी मानक मात्रा से कम जर्दा पाया गया। नतीजतन दुकानदारों को केवल समझाइश देकर छोड़ दिया गया। प्रशासन ने इसे अपनी उपलब्धि बताया, लेकिन लोग पूछ रहे हैं कि अगर वास्तव में कार्रवाई करनी थी तो थोक विक्रेताओं के गोदामों पर क्यों नहीं छापेमारी की गई? क्या कार्रवाई का उद्देश्य कानून का पालन कराना था या सिर्फ यह दिखाना था कि प्रशासन ‘कुछ कर रहा है’?
फुटकर दुकानदारों का दर्द!
छोटे दुकानदारों का कहना है कि वे किसी गुटखा फैक्ट्री के मालिक नहीं हैं। उनके पास जो माल आता है, वही वे बेचते हैं। यही उनके परिवार के जीवन-यापन का साधन है। ऐसे में यदि कोई माल बाजार में आसानी से उपलब्ध है, तो वे उसे क्यों नहीं बेचेंगे? उनका कहना है कि अगर प्रशासन को वास्तव में रोकथाम करनी है, तो स्रोत पर नकेल कसनी होगी, न कि फुटकर विक्रेताओं को बलि का बकरा बनाना चाहिए।
असली खिलाड़ी कौन?
जानकार बताते हैं कि जिले में कुछ नामचीन व्यवसायी हैं, जिनके पास इस अवैध कारोबार का भंडार है। यह कारोबारी अन्य धंधों की आड़ में गुटखा और पान मसाला का अवैध भंडारण करते हैं और जरूरत पड़ने पर फुटकर दुकानदारों तक इसकी सप्लाई करते हैं। सच्चाई यह है कि फुटकर दुकानदारों को भी यह अच्छी तरह पता होता है कि गुटखा कहां मिलेगा। किसी जंगल या राज्य की सीमा पार करने की जरूरत नहीं होती। बस कुछ विशेष दुकानों तक पहुंचो और माल ले आओ। सवाल उठता है कि जब यह जानकारी आम जनता को है तो प्रशासन और खाद्य निरीक्षक को क्यों नहीं है?
संरक्षण का खेल!
सूत्र बताते हैं कि यह कारोबार पूरी तरह से संरक्षण आधारित है। बड़े कारोबारी और सफेदपोश लोगों तक सीधे हाथ डालना प्रशासन के लिए आसान नहीं। लेकिन कानून का डर दिखाने के लिए छोटे दुकानदारों को निशाना बनाना सबसे सरल रास्ता है। यही वजह है कि जिले में हर कुछ महीनों में ‘सरप्राइज चेकिंग’ की खबरें आती हैं, पर असली खिलाड़ी आज भी अछूते हैं।
जनता में गुस्सा और अविश्वास!
लोगों में इस बात को लेकर आक्रोश है कि जिला प्रशासन दोहरी नीति अपना रहा है। जनता पूछ रही है – अगर जर्दायुक्त गुटखा सचमुच प्रतिबंधित है तो यह खुलेआम बिक कैसे रहा है? फुटकर दुकानों पर छोटी-सी कार्यवाही करने से क्या यह जहर बाजार से खत्म हो जाएगा? क्या प्रशासन केवल दिखावा कर रहा है?
बड़ा सवाल:यह पूरा मामला कई गंभीर सवाल खड़ा करता है –
•क्या जिला खाद्य एवं ओषधि निरीक्षक और संबंधित अधिकारी जानबूझकर बड़े कारोबारियों को बचा रहे हैं?
•12 साल से एक ही जगह जमे रहने का रहस्य क्या है?
•क्या प्रशासन की कार्रवाई सिर्फ छोटे दुकानदारों पर गाज गिराने का जरिया बन चुकी है?
•और सबसे बड़ा सवाल – क्या जिले में गुटखा माफियाओं को संरक्षण देने वालों पर कभी कार्रवाई होगी?
गरियाबंद में हुई ताज़ा कार्यवाही ने यह साफ कर दिया है कि कानून और व्यवस्था का पहिया छोटे दुकानदारों पर ही घूमता है, जबकि बड़े और संगठित कारोबारी सुरक्षित रहते हैं। प्रशासन चाहे जितना दावा कर ले, लेकिन जब तक थोक कारोबारियों और संरक्षण देने वाले सफेदपोशों पर कार्रवाई नहीं होगी, तब तक यह खेल चलता रहेगा और छोटे दुकानदार ही बलि का बकरा बनते रहेंगे।