“मानदेय में माया का मायाजाल: गाताडीह सेवा सहकारी समिति में फर्जी भुगतान घोटाला, प्रबंधक और बैंक अधिकारी पर गंभीर आरोप”
सारंगढ़-बिलाईगढ़/छत्तीसगढ़ के शांत और सरल माने जाने वाले गाताडीह गांव की फिजाओं में इन दिनों सनसनी फैल गई है। वजह है—सेवा सहकारी समिति पं.क्र.402 में सामने आया एक ऐसा फर्जीवाड़ा, जिसने पूरे जिले को हिला कर रख दिया है। जून और जुलाई माह में मानदेय भुगतान के नाम पर करोड़ों का घोटाला सामने आया है, जिसमें समिति प्रबंधक शैलेश कुमार चंद्रा और अपैक्स बैंक शाखा प्रबंधक (प्राधिकृत अधिकारी) एस.के. साहू की कथित मिलीभगत उजागर हुई है। यह घोटाला न केवल वित्तीय अपराध है, बल्कि व्यवस्था पर करारा तमाचा भी।
भुगतान उन लोगों को, जो कभी कार्यस्थल पर दिखे ही नहीं!
जांच की शुरुआती रिपोर्ट चौंकाने वाली है। समिति के खाते से ऐसे व्यक्तियों को मानदेय भुगतान किया गया, जिनका समिति से न कोई संबंध है, न कार्य। दस्तावेजों की पड़ताल में हस्ताक्षर मिलान में गड़बड़ी, उपस्थिति रजिस्टर में नामों का अभाव और भुगतान प्रक्रिया में भारी अनियमितताएं पाई गईं।
सूत्रों के अनुसार, यह घोटाला योजनाबद्ध तरीके से रचा गया। फर्जी नामों को नियुक्त दिखाकर उनके नाम पर भुगतान पास करवाया गया, और रकम सीधे कथित रूप से आरोपी अधिकारियों के इशारे पर निकाली जाती रही।
विभागीय जांच के आदेश, गठित हुई विशेष जांच समिति!
गयाडीह में जैसे ही यह मामला उजागर हुआ, संबंधित विभागीय अधिकारी ने तत्परता दिखाते हुए तत्काल प्रभाव से जांच के आदेश दिए हैं। एक विशेष जांच समिति का गठन किया गया है,जिसमें समिति के वित्तीय दस्तावेजों, भुगतान फाइलों और बैंक रिकॉर्ड की गहनता से जांच कर रही है। समिति में वरिष्ठ लेखा अधिकारियों के साथ-साथ राजस्व विभाग के प्रतिनिधि भी शामिल थे।
विभागीय सूत्रों का कहना है कि यदि आरोप प्रमाणित होते हैं, तो आरोपियों के खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज कर गिरफ्तारी तक की नौबत आ सकती है।
शिकायत ने खोली पोल, कर्मचारियों ने दी जानकारी
इस फर्जीवाड़े का भंडाफोड़ तब हुआ जब कुछ ईमानदार समिति कर्मचारियों ने भुगतान सूची में अपने अनजान नामों को देखकर उच्चाधिकारियों को शिकायत पत्र सौंपा। साथ ही, उन्होंने यह भी बताया कि कई महीनों से समिति में असामान्य गतिविधियां चल रही थीं, जिनमें नकद लेनदेन के बजाय खातों से सीधे भुगतान किए जाने लगे थे।
शिकायत के बाद दस्तावेजों की जांच शुरू हुई और जैसे-जैसे कड़ियाँ खुलती गईं, यह स्पष्ट हो गया कि यह एक सुनियोजित घोटाला है।
प्रबंधक और शाखा प्रबंधक की ‘चुप्पी’ सबसे बड़ा संदेह!
गयाडीह में जब इस गंभीर मामले पर पत्रकारों ने समिति प्रबंधक शैलेश कुमार चंद्रा और बैंक शाखा प्रबंधक एस.के. साहू से उनका पक्ष जानने की कोशिश की, तो दोनों ने प्रतिक्रिया देने से साफ इनकार कर दिया। दोनों की चुप्पी, न केवल जनता में आक्रोश का कारण बनी है, बल्कि यह इस घोटाले पर बड़ा संदेह भी खड़ा करती है।
स्थानीय ग्रामीणों का कहना है कि समिति के संचालन में पहले भी पारदर्शिता की कमी देखी गई थी, लेकिन अब जाकर असली खेल सामने आया है।
जनता में आक्रोश, हो रही है सख्त कार्रवाई की मांग
गाताडीह सहित आसपास के गांवों में इस खबर के फैलते ही ग्रामीणों में भारी गुस्सा और नाराज़गी देखी जा रही है। आम जनता का कहना है कि जो धन गांव के विकास, खाद-बीज की सुविधा, और किसानों के हक में लगना चाहिए था, वह भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गया।
स्थानीय सरपंच, जनपद सदस्यों और कृषक संगठनों ने कलेक्टर से मांग की है कि पूरे प्रकरण की सीबीआई या ईओडब्ल्यू जांच करवाई जाए, ताकि सच सामने आ सके और दोषियों को कड़ी सजा मिल सके।
जांच रिपोर्ट के आधार पर विभागीय और कानूनी कार्रवाई!
विभागीय अधिकारियों का कहना है कि जांच पूरी होने के बाद जल्द ही कड़ी विभागीय कार्रवाई की जाएगी। यदि घोटाले में शामिल लोगों पर आरोप सिद्ध होते हैं, तो लोकसेवक अधिनियम और भारतीय दंड संहिता की धाराओं के तहत आपराधिक मुकदमा भी दर्ज किया जाएगा।
इसमें धोखाधड़ी, आपराधिक षड्यंत्र, लोकधन की हेराफेरी जैसी गंभीर धाराएं लग सकती हैं। विभाग ने आश्वासन दिया है कि कोई भी दोषी बख्शा नहीं जाएगा, चाहे वह कितना भी प्रभावशाली क्यों न हो।
क्या यह केवल एक ‘आइसबर्ग’ का सिरा है?
विशेषज्ञों का मानना है कि यह घोटाला केवल एक शुरुआत हो सकती है। यदि गाताडीह समिति में ऐसा हुआ है, तो अन्य समितियों में भी इसी प्रकार की गड़बड़ियाँ सामने आ सकती हैं। इस घटना ने पूरे सहकारी व्यवस्था की पारदर्शिता और ईमानदारी पर सवाल खड़े कर दिए हैं।
अब देखना यह है कि जांच कितनी गहराई से होती है, और न्याय का सूरज कब उगता है।