तेल पर टकराव: EU का भारत की वाडीनार रिफ़ाइनरी पर प्रतिबंध, कच्चे तेल की राजनीति में नया विस्फोट!”
रूसी तेल से बना भारत का भविष्य? प्रतिबंधों की चपेट में नायरा एनर्जी, रिलायंस पर भी संकट के बादल!
नई दिल्ली/ब्रसेल्स:तेल की गंध में अब सिर्फ़ ऊर्जा नहीं, अंतरराष्ट्रीय राजनीति और कूटनीतिक धमक भी घुल गई है। यूरोपीयन यूनियन (EU) ने रूस के ऊर्जा सेक्टर को घेरने के लिए एक बड़ा कदम उठाया है और इसकी चपेट में आई है भारत की प्रमुख कंपनी नायरा एनर्जी लिमिटेड की गुजरात स्थित वाडीनार रिफ़ाइनरी। यह वही रिफ़ाइनरी है जिसमें रूस की सबसे बड़ी तेल कंपनी रोज़नेफ़्ट की लगभग 49% हिस्सेदारी है।
EU के प्रतिबंधों की घोषणा ने भारतीय तेल बाज़ार में भूकंप ला दिया है।
एक झटका जो पूरे तेल व्यापार को हिला गया!
शुक्रवार को यूरोपीय यूनियन ने रूस के खिलाफ 14वें दौर के प्रतिबंधों की घोषणा की। इस बार EU ने केवल रूस को ही नहीं, बल्कि उन कंपनियों और रिफ़ाइनरियों को भी निशाना बनाया है, जो रूसी तेल को प्रोसेस कर यूरोपीय बाज़ार में भेज रही हैं।नायरा एनर्जी, जो भारत की सबसे बड़ी निजी तेल रिफाइनिंग कंपनियों में से एक है, अब सीधे इस वैश्विक टकराव की रेखा पर आ गई है।
इसी के साथ रिलायंस इंडस्ट्रीज़ के लिए भी यह चेतावनी की घंटी है। क्योंकि विश्लेषकों का मानना है कि अगर EU अपने रुख पर अडिग रहता है, तो रिलायंस जैसी कंपनियों को भी यूरोप के मुनाफ़ेदार डीज़ल बाज़ार से बाहर होना पड़ सकता है – या फिर उन्हें रूस से सस्ता कच्चा तेल लेना बंद करना होगा।
EU का उद्देश्य: रूस की कमर तोड़ना, लेकिन असर भारत पर?
EU का मक़सद साफ़ है – रूस को यूक्रेन युद्ध के लिए मिलने वाली आर्थिक ताकत को कमज़ोर करना। लेकिन सवाल उठता है कि जब रूस से 40% तक कच्चा तेल भारत आयात करता है, तब इन प्रतिबंधों का असर सिर्फ़ रूस पर होगा या भारत की अर्थव्यवस्था भी इसकी चपेट में आ जाएगी?
अजय श्रीवास्तव, ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव के प्रमुख, इस मुद्दे पर कहते हैं,
“आज हम नहीं कह सकते कि केवल नायरा प्रभावित होगी। कौन-कौन सी कंपनियाँ कितना रूसी तेल ख़रीद रही हैं, इसका डेटा सरकार के पास है, जनता के पास नहीं। और जब तक यह पारदर्शी नहीं होगा, तब तक हर कंपनी जोखिम में है।”
भारत पर असर: केवल नायरा नहीं, पूरी रणनीति ख़तरे में!
भारत रूस से समुद्री रास्ते से आने वाले 80% रूसी कच्चे तेल का प्रमुख ग्राहक बन चुका है। ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट के अनुसार, रिलायंस और नायरा ने ही इस साल के पहले छह महीनों में कुल मिलाकर 23.1 करोड़ बैरल तेल में से 45% हिस्सेदारी संभाली।
मतलब साफ़ है – इन प्रतिबंधों का असर यदि बढ़ता है, तो केवल नायरा ही नहीं, बल्कि भारत की पूरी रिफ़ाइनिंग और निर्यात रणनीति को दोबारा से सोचना पड़ेगा।
अमेरिका भी मैदान में, भारत पर टैरिफ का खतरा!
जहां एक ओर EU ने अपना रुख सख्त किया है, वहीं दूसरी ओर अमेरिका भी पीछे नहीं है। अमेरिकी कांग्रेस में कुछ सीनेटर एक विधेयक लाने की तैयारी में हैं, जिसके तहत रूस से तेल खरीदने वाले देशों पर 500% टैरिफ लगाया जाएगा।
यह तो एक आर्थिक परमाणु बम जैसा होगा — खासकर भारत जैसे देश के लिए, जो सस्ते रूसी तेल के जरिए अपना तेल आयात बिल कम कर रहा था।
नेटो महासचिव मार्क रूटे ने हाल ही में भारत, ब्राज़ील और चीन से साफ़ कहा था कि वे रूस पर यूक्रेन युद्ध रोकने का दबाव बनाएं, अन्यथा अमेरिकी प्रतिबंधों के लिए तैयार रहें।
नायरा-रोज़नेफ़्ट सौदा अधर में, निवेशकों में घबराहट!
पिछले कुछ हफ्तों से यह चर्चा थी कि रूसी ऊर्जा कंपनी रोज़नेफ़्ट नायरा में अपनी हिस्सेदारी बेचने की तैयारी कर रही है। लेकिन अब EU के प्रतिबंधों के बाद यह सौदा अधर में लटक गया है।
न केवल यह भारत के ऊर्जा क्षेत्र के लिए चिंता की बात है, बल्कि विदेशी निवेशकों को भी झटका लग सकता है, जो भारत को एक स्थिर ऊर्जा बाज़ार के रूप में देख रहे थे।
दो रास्ते, दोनों पर कांटे!
रिलायंस और नायरा जैसे दिग्गजों के सामने अब दो ही विकल्प हैं:
- रूस से सस्ता तेल लेना बंद करें, जिससे रिफाइनिंग मार्जिन गिरेगा और ईंधन महँगा हो सकता है।
- यूरोप को निर्यात रोकें, जिससे मुनाफ़ा कम होगा और व्यापार संतुलन प्रभावित होगा।
दोनों ही रास्तों में भारत की ऊर्जा सुरक्षा और रणनीति को गंभीर झटका लग सकता है।
तेल अब सिर्फ़ ऊर्जा नहीं, कूटनीति भी है!
रूस-यूक्रेन युद्ध का असर अब सिर्फ़ पश्चिम तक सीमित नहीं रहा। भारत, जो अब तक खुद को न्यूट्रल रखने की कोशिश कर रहा था, अब वैश्विक दबावों की सीधी मार झेल रहा है।
EU और अमेरिका की यह नीति भारतीय कंपनियों को रणनीतिक पुनर्विचार के लिए मजबूर करेगी। अब देखना यह है कि भारत सरकार इस भू-राजनीतिक तूफ़ान में तेल की धार में बहता है या रणनीति से किनारा करता है।
आने वाले हफ्तों में यह स्पष्ट होगा कि क्या भारत को ऊर्जा स्वतंत्रता के बदले राजनीतिक स्वतंत्रता की कीमत चुकानी पड़ेगी।
तेल की लहरों पर अब कूटनीति की आँधी है – और भारत उसके बीच में है!