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July 22, 2025 6:09 pm

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एक हज़ार की रिश्वत, बर्बाद हुआ जीवन… लेकिन 26 साल बाद मिली जीत! थानेदार की मौत के बाद पत्नी ने जीता इंसाफ़ का महासंग्राम”

“एक हज़ार की रिश्वत, बर्बाद हुआ जीवन… लेकिन 26 साल बाद मिली जीत! थानेदार की मौत के बाद पत्नी ने जीता इंसाफ़ का महासंग्राम”

Bilaspur/महासमुंद जिला के जिस इंसाफ़ के लिए एक पत्नी ने पूरे 26 साल संघर्ष किया, वो आज जाकर पूरा हुआ। रिश्वत के झूठे आरोप में फंसे एक ईमानदार थानेदार की मौत हो गई, लेकिन उसकी पत्नी ने हार नहीं मानी। न हारी हिम्मत, न झुकी आत्मा… और आखिरकार छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने फैसला सुनाकर यह साबित कर दिया कि सच भले देर से सामने आए, लेकिन वह दबता नहीं।

यह कहानी है थाना प्रभारी गणेशराम शेंडे की, जिनपर मात्र ₹1,000 की रिश्वत लेने का आरोप लगाया गया था। यह मामला 1990 में शुरू हुआ, लेकिन न्याय का सूरज 2024 में उगा — और वो भी तब, जब गणेशराम इस दुनिया में नहीं थे। उनकी पत्नी ने यह लड़ाई अकेले लड़ी, अदालतों के धूलभरे गलियारों में उम्मीद की लौ लेकर घूमती रही… और अंत में अपने पति की बेगुनाही साबित कर दी।

क्या है पूरा मामला?

साल था 1990, जब छत्तीसगढ़ मध्यप्रदेश का हिस्सा था। महासमुंद जिले के बसना थाना अंतर्गत थुरीकोना गांव में मारपीट का मामला दर्ज हुआ। शिकायतकर्ता जैतराम साहू ने सहनीराम, नकुल और भीमलाल साहू के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करवाई।
इस केस की जांच तत्कालीन थाना प्रभारी गणेशराम शेंडे कर रहे थे। तीनों आरोपियों को गिरफ्तार कर उसी दिन मुचलके पर रिहा भी कर दिया गया।

लेकिन दो दिन बाद, आरोपियों में से एक भीमलाल साहू ने रायपुर लोकायुक्त एसपी को शिकायत दी कि गणेशराम ने उन्हें रिहा करने के बदले ₹1,000 की रिश्वत ली।
लोकायुक्त ने कार्रवाई करते हुए थाना प्रभारी को रंगे हाथों पकड़ने का दावा किया और फिर उनके खिलाफ केस दर्ज हो गया।

न्याय की राह और मौत का अंधेरा!

1999 में ट्रायल कोर्ट ने गणेशराम को दोषी ठहराते हुए 3 साल की सज़ा और ₹2,000 का जुर्माना सुनाया। गणेशराम ने फैसले के खिलाफ छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट में अपील की।लेकिन इसी साल 1999 में ही उनकी मौत हो गई।
कोई और होता तो शायद इस मुकदमे की फाइल हमेशा के लिए बंद हो जाती, लेकिन उनकी पत्नी ने लड़ाई जारी रखी।

एक पत्नी का अद्भुत साहस!

जिस महिला ने अपना पति खो दिया, उसने सिर्फ दुख नहीं सहा — उसने अपने पति की प्रतिष्ठा को दोबारा स्थापित करने का प्रण लिया।वो हर सुनवाई में पहुंचती, दस्तावेज़ जुटाती, वकीलों के सवालों का सामना करती। ना किसी राजनीतिक ताकत का सहारा, ना ही आर्थिक बल… बस एक ईमानदार पति की याद और उसकी सच्चाई की शक्ति।वर्ष दर वर्ष बीतते गए, लेकिन न तो कोर्ट की प्रक्रिया थमी, और न ही इस बहादुर महिला का विश्वास।

कोर्ट का फैसला—सच को मिली जीत!

2024 में छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने यह ऐतिहासिक फैसला सुनाया, जिसमें उन्होंने निचली अदालत के फैसले को निरस्त कर दिया।
कोर्ट ने कहा—

“जिस रिश्वत की मांग का आरोप लगाया गया है, उसका कोई औचित्य नहीं है। आरोपियों को पहले ही रिहा कर दिया गया था, और जमानत मिलने के बाद रिश्वत मांगने का दावा निराधार है।”

साथ ही यह भी स्पष्ट किया गया कि भीमलाल साहू खुद भी एक पक्ष से जुड़ा था और उसने भी शिकायत की थी, जिस पर कार्यवाही न होने से वह थानेदार से नाराज़ था। इसी नाराज़गी में शिकायत की गई थी, जो दुर्भावना से प्रेरित थी।

कोर्ट में छलक पड़े आंसू!

फैसले के बाद गणेशराम की पत्नी ने कहा—

“मेरे पति पर जो आरोप लगाए गए थे, वे झूठे थे। उन्होंने पूरी ईमानदारी से ड्यूटी निभाई थी। उन्हें बदनाम कर दिया गया, मानसिक यातना दी गई, जिससे वो टूट गए और चले गए। लेकिन मैंने ठान लिया था कि जब तक उनके नाम से कलंक नहीं हटेगा, मैं नहीं रुकूंगी।”

उनकी आंखों में आंसू थे, लेकिन वो आंसू दुख के नहीं, बल्कि संतोष और विजय के थे।

व्यवस्था पर सवाल, लेकिन उम्मीद कायम!

इस मामले ने एक बार फिर हमारी न्याय प्रणाली की धीमी प्रक्रिया पर सवाल खड़े किए हैं। क्या एक हजार रुपये की कथित रिश्वत के लिए किसी की पूरी जिंदगी और फिर मौत तक का इंतजार न्याय कहलाता है?लेकिन यह कहानी यह भी दिखाती है कि आम इंसान भी, अगर संकल्प मजबूत हो तो व्यवस्था को झुका सकता है।

अब क्या आगे?

गणेशराम की पत्नी चाहती हैं कि सरकार उनके पति को मरणोपरांत सम्मानित करे और ऐसे अफसरों की जांच हो जिन्होंने झूठे आरोपों में फंसाने की साज़िश रची थी।
वो कहती हैं—

“न्याय अब मिला है, लेकिन यह अंत नहीं, अब मेरा लक्ष्य है कि उन्हें समाज से वह सम्मान मिले जो उनसे छीन लिया गया था।”

यह कहानी सिर्फ एक केस की नहीं है—यह संघर्ष, आस्था और सच्चाई की जीत की कहानी है।
जहां रिश्वत के आरोपों से एक परिवार बर्बाद हुआ, वहीं एक पत्नी की हिम्मत ने उस पर लगे कलंक को मिटा दिया।

एक हज़ार की रिश्वत ने जो छीना, उसे 26 साल बाद सच्चाई ने लौटा दिया।
अब यह न्याय, सिर्फ एक फैसला नहीं, बल्कि हजारों लोगों के लिए उम्मीद की लौ है।

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