NHM हड़ताल का 17वाँ दिन –“आश्वासनों का गुब्बारा, मांगों का हल कहाँ?” – सिर मुंडाकर शासन को दी चेतावनी!
Raipur/छत्तीसगढ़ की स्वास्थ्य सेवाओं की रीढ़ कहे जाने वाले राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (NHM) के कर्मचारी बीते 17 दिनों से अपनी 10 सूत्रीय मांगों को लेकर अनिश्चितकालीन हड़ताल पर डटे हुए हैं। प्रदेश की 6,239 स्वास्थ्य संस्थाएँ प्रभावित हो चुकी हैं, हजारों मरीज इलाज से वंचित हैं, लेकिन सरकार अब भी “सुनवाई का नाटक” कर रही है। कर्मचारियों का गुस्सा इस कदर बढ़ चुका है कि उन्होंने सिर मुंडवाकर शासन-प्रशासन को करारा संदेश दिया है।
“24 घंटे के काले अल्टीमेटम का जवाब – मुंडन कर विरोध”!
शासन ने कर्मचारियों को 24 घंटे का अल्टीमेटम देते हुए नौकरी से निकालने की धमकी दी थी। इसे कर्मचारियों ने “काला आदेश” करार देते हुए सिर मुंडवाकर विरोध किया। उनका कहना है कि यह सिर्फ रोष नहीं बल्कि 20 सालों से झेले जा रहे शोषण के खिलाफ बगावत का प्रतीक है।
स्वास्थ्य भवन का घेराव – वार्ता रही नाकाम!
हड़ताली कर्मचारियों ने कल राजधानी रायपुर स्थित स्वास्थ्य भवन का घेराव किया। नारों, पोस्टरों और मानव श्रृंखला के बीच वे अपनी मांगों को बुलंद कर रहे थे। लेकिन प्रशासनिक अफसर सिर्फ “समझाइश और टालमटोल” का राग अलापते रहे। वार्ता में कोई ठोस परिणाम न निकलने पर कर्मचारियों ने साफ कर दिया – “अब पीछे हटना मुमकिन नहीं, आदेश चाहिए, आश्वासन नहीं।”
“मौखिक आश्वासन से भरोसा टूटा”!
कर्मचारियों का आरोप है कि शासन बार-बार यह कहकर भ्रम फैला रहा है कि पाँच मांगें मान ली गईं। लेकिन न तो कोई लिखित आदेश है और न ही ग्रेड-पे पर स्पष्ट निर्णय।
एक कर्मचारी नेता ने कहा – “कागज पर मुहर लगाने से सरकार क्यों डर रही है? क्या हमारी मांगें मानना इतना कठिन है?”
“मोदी की गारंटी कहाँ गई?”
•कर्मचारियों ने सवाल उठाया कि प्रधानमंत्री की “गारंटी” का क्या हुआ?
•“जब चुनाव के समय हमसे वादे किए गए थे, तो अब उन्हें निभाने में इतनी देर क्यों?” यह सवाल अब आंदोलन का नारा बन चुका है।
आंदोलन में उबाल – “जरूरत पड़ी तो और उग्र होंगे”!
17वें दिन भी कर्मचारियों का हौसला टस से मस नहीं हुआ है। धरना स्थलों पर नुक्कड़ नाटक, व्यंग्यात्मक पोस्टर और प्रतीकात्मक विरोध ने आंदोलन को धार दे दी है। कर्मचारी चेतावनी दे रहे हैं कि अगर सरकार ने लिखित आदेश जारी नहीं किया तो आने वाले दिनों में आंदोलन और उग्र रूप लेगा।
उनका साफ कहना है – “स्वास्थ्य सेवाओं के चरमराने की जिम्मेदारी हमारी नहीं, सरकार की होगी।”
10 सूत्रीय मांगें – 20 साल से अधूरी
कर्मचारियों की मुख्य मांगें इस प्रकार हैं –
• सेवाओं का नियमितीकरण,
• पब्लिक हेल्थ कैडर की स्थापना,
• ग्रेड-पे निर्धारण,
• 27% वेतन वृद्धि,
• कार्य मूल्यांकन में पारदर्शिता,
• नियमित भर्ती में आरक्षण,
• अनुकंपा नियुक्ति,
• मेडिकल और अन्य अवकाश की सुविधा,
• सेवा अवधि के आधार पर पदोन्नति,
• संविदा कर्मियों को स्थाई लाभ,
कर्मचारियों का आरोप है कि इन मांगों पर दो दशक से सिर्फ आश्वासन मिल रहे हैं, लेकिन आज तक ठोस कार्रवाई नहीं हुई।
“स्वास्थ्य सेवाएँ ठप – जिम्मेदार कौन?”
हड़ताल के चलते दवा वितरण, टीकाकरण, ग्रामीण क्षेत्रों की स्वास्थ्य सुविधाएँ, यहाँ तक कि गर्भवती महिलाओं और बच्चों की देखभाल भी प्रभावित हो रही है। मरीज भटक रहे हैं, लेकिन कर्मचारी दो टूक कह रहे हैं –
“हम मजबूरी में हड़ताल कर रहे हैं। अगर जनता को तकलीफ हो रही है तो उसकी जिम्मेदारी शासन-प्रशासन की है।”
कर्मचारी संघ की अपील – “हम स्वास्थ्य की रीढ़, हमारी मांगें क्यों अधर में?”कर्मचारी संघ का कहना है –
“जब हम रात-दिन प्रदेश की स्वास्थ्य व्यवस्था संभाल सकते हैं, तो हमारी मांगों को संभालने में सरकार को इतनी परेशानी क्यों?”
उनका आरोप है कि सरकार ने स्वास्थ्य सेवाओं को मजबूत करने का जो वादा किया था, वह महज जुमला साबित हो रहा है।
प्रदेशव्यापी एकजुटता – ‘अबकी बार आर-पार’!
नारायणपुर से लेकर रायपुर तक कर्मचारी एकजुट होकर सड़कों पर उतर चुके हैं। हर जिले में आंदोलन की गूँज सुनाई दे रही है। सभी का एक ही संदेश है –
“जब तक लिखित आदेश नहीं, तब तक हड़ताल जारी।”
17 दिन बीत चुके हैं, लेकिन समाधान दूर-दूर तक नजर नहीं आ रहा। सरकार और कर्मचारियों के बीच जंग अब प्रतिष्ठा का प्रश्न बन चुकी है। सवाल यही है – क्या शासन कर्मचारियों की 20 साल पुरानी मांगों को लिखित आदेश में बदल पाएगा, या फिर यह आंदोलन और उग्र होकर स्वास्थ्य सेवाओं को पूरी तरह पंगु बना देगा?
कर्मचारियों का ऐलान गूंज रहा है –“आश्वासन नहीं, आदेश चाहिए… वरना आंदोलन जारी रहेगा!”