अंधविश्वास के चलते सामाजिक “बहिष्कार” का दंश झेल रहा है गरीब परिवार,,,,,,,,,
बूढ़ी मां के साथ न्याय की उम्मीद में पहुंचा कलेक्टर द्वार,,,,,,,,,,
बिलासपुर/बिल्हा विकास खंड मुद्दीपार गांव का एक अमानवीय घटना सामने आई है मामला सामाजिक बहिष्कार को लेकर सामने आया है पूरे परिवार का गांव से गुजर-बसर बंद कर दिया गया है आज भारत डिजिटल देश के नाम से जाना जाता है ऐसे डिजिटल देश के लोगों के साथ ऐसी घटना सामने अगर आ रही है तो कहां से डिजिटल देश होगा आज भी हमारा देश में ग्रामीण इलाकों में अंधविश्वास से भरी जिंदगी जी रहे है आज भी कुछ गांव में गांव की परम्परा के तरीके से नहीं चलने पर उस परिवार का गुजर-बसर बंद करने के नियम जारी है बहिष्कार मलतब “ब्लैकलिस्टिंग” जो हम आजकल अपने मोबाइलों में किसी के नंबर को करते है बस यही डिजिटल हैं हमारे देश की यह अवधारणा बन गई है किसी व्यक्ति या समूह को अछूत या अवांछनीय बताकर उसके खिलाफ लेबल लगाना और चेतावनी देना ,दूसरों को उन व्यक्तियों और समूहों के साथ बातचीत करने से रोकती है, छत्तीसगढ़ में आज भी कुछ जिलों के गांव में यह अवधारणा बनी हुई है जैसे बिल्हा विकासखंड के मुद्दीपार जिसमें एक ग्रामीण परिवार इन दिनों समाजिक कुप्रथा का शिकार का हो गया है। इस परिवार की गलती सिर्फ इतनी है,कि उसने अपने बेटे का विवाह अपने गोत्र के ही एक लडकी से कर दिया। इसके बाद उनके पूरे परिवार को सामाजिक बहिष्कार की सजा सुना दी गई जिससे इनका पूरा परिवार कई तरह की समस्याओं से काफी दिनो से जूझ रहा है। समाज के लोग उनसे दूरी बना चुके है हाल यह है। जीवन यापन के लिए गांव में ही खोली उनकी दुकान बंद होनी की कगार पर है, समाज के लोग ग्राम वासियों को उनके दुकान से समान खरीदने नही देते है। यही नहीं उन्हें मानसिक रुप से अनावश्यक प्रताड़ित किया जा रहा है। जिससे परेशान होकर व्यक्ति अपनी बूढ़ी मां के साथ कलेक्टर के द्वार में न्याय लगाने पहुंचा है। जिस पर पीड़ित प्रेमदास बंजारे ने आरोप लगाते हुवे बताया कि सरपंच और गांव के ही भंडारी ने मिलकर सामाजिक बहिष्कार किया है। और उनसे रोटी बेटी का रिश्ता तोड़ दिया है। सभी सामाजिकजनो को इनसे रिश्ता तोड़ने के लिए कहा गया है।
अब देखना होगा क्या शासन प्रशासन इस मुद्दे को कितनी गंभीरा से लेता है?