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September 10, 2025 6:18 pm

India News’अंतरिक्ष का अन्नदाता’: जब भारत का बेटा बना अंतरिक्ष में किसान, शुभांशु शुक्ला ने रचा अनोखा इतिहास!

‘अंतरिक्ष का अन्नदाता’: जब भारत का बेटा बना अंतरिक्ष में किसान, शुभांशु शुक्ला ने रचा अनोखा इतिहास!

ह्यूस्टन/बेंगलुरु/आईएसएस:जब किसी ने कहा कि “किसान देश की रीढ़ हैं”, तो शायद उन्होंने कल्पना नहीं की थी कि एक दिन एक भारतीय किसान अंतरिक्ष में फसल उगाएगा! भारत के वीर और विज्ञान के अग्रदूत ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला ने इतिहास के पन्नों में अपनी जगह केवल रॉकेट से नहीं, बीजों से बनाई है। जी हाँ, स्पेस सेंटर का यह ‘मिशन मंगल’ अब बन चुका है ‘मिशन खेती’ — और यह कारनामा रचा गया है अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS) पर।

अंतरिक्ष में भारत का प्रतिनिधित्व कर रहे शुभांशु शुक्ला, Axiom-4 मिशन के तहत अपने 14 दिवसीय अभियान के 12 दिन पूरे कर चुके हैं। विज्ञान की प्रयोगशाला बन चुके इस स्टेशन पर उन्होंने केवल तकनीक और सूक्ष्म गुरुत्वाकर्षण (microgravity) की सीमाएं नहीं परखी, बल्कि वहां ‘मूंग’ और ‘मेथी’ के बीज अंकुरित करके इतिहास रच डाला।

अंतरिक्ष की धरती पर पहला भारतीय किसान!
जहां दुनिया अंतरिक्ष में जीवन खोज रही है, वहीं शुभांशु शुक्ला ने वहां जीवन उगाने का प्रयोग किया है। उनके द्वारा किया गया यह ‘स्प्राउट्स प्रोजेक्ट’ महज़ एक वैज्ञानिक अध्ययन नहीं, बल्कि पृथ्वी के पारंपरिक ज्ञान और अंतरिक्ष की आधुनिकता का मिलन है।

इस प्रयोग का नेतृत्व धरती पर कर रहे हैं – कृषि विज्ञान विश्वविद्यालय, धारवाड़ के रविकुमार होसामणि और IIT धारवाड़ के डॉ. सुधीर सिद्धपुरेड्डी। इनके साथ मिलकर शुभांशु यह देख रहे हैं कि सूक्ष्मगुरुत्वाकर्षण में बीजों की आनुवंशिक संरचना, माइक्रोबायोम और पोषण प्रोफाइल में क्या बदलाव आते हैं।

बीजों में छिपे ब्रह्मांड के राज!
Axiom Space की ओर से जारी बयान में कहा गया कि जब ये बीज पृथ्वी पर लौटेंगे, तो इन्हें कई पीढ़ियों तक उगाकर उनके अंदर आए बदलावों का अध्ययन किया जाएगा। यह भारत और दुनिया के लिए नई खोजों के दरवाजे खोल सकता है। शायद भविष्य में अंतरिक्ष में भी खेती की जा सके — और ये बीज होंगे उस भविष्य के पहले कदम।

शुभांशु बोले – “मैं यहां सिर्फ यात्री नहीं, भारत का वैज्ञानिक दूत हूं”
एक वीडियो संदेश में शुभांशु शुक्ला ने एक्सिओम स्पेस की मुख्य वैज्ञानिक डॉ. लूसी लोव से चर्चा करते हुए कहा,

“हम यहां लगातार प्रयोगों में व्यस्त हैं। माइक्रोग्रैविटी में जैविक प्रक्रियाएं कैसे बदलती हैं, यह समझना बेहद रोमांचक है। इस मिशन से भारतीय वैज्ञानिकों को वैश्विक मंच मिलेगा और नई राह खुलेगी।”

शुभांशु ने कहा कि उन्हें गर्व है कि ISRO अब वैश्विक वैज्ञानिक संस्थानों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम कर रहा है।

स्टेम सेल से लेकर अंतरिक्ष में दिमाग पर असर तक: वैज्ञानिकता की नई परिभाषा किसी किसान की तरह प्रयोगशील और किसी सैनिक की तरह दृढ़, शुभांशु न केवल बीज उगा रहे हैं, बल्कि स्टेम सेल्स, मस्तिष्क पर माइक्रोग्रैविटी के असर और टिश्यू रिकवरी जैसे उच्चस्तरीय प्रयोगों में भी सक्रिय भूमिका निभा रहे हैं। उन्होंने बताया कि स्टेम सेल पर हो रहे प्रयोगों से यह समझने में मदद मिलेगी कि क्या सप्लिमेंट्स लेने से चोटों से रिकवरी में मदद मिलती है या नहीं।

न लौटने की उलटी गिनती शुरू: पृथ्वी पर वापसी जल्द
Axiom-4 मिशन ने 25 जून को नासा के केनेडी स्पेस सेंटर से फाल्कन 9 राकेट से उड़ान भरी थी। यह मिशन अब अपने अंतिम चरण में है और शुभांशु के पृथ्वी पर लौटने की तैयारी शुरू हो चुकी है। अगर मौसम अनुकूल रहा तो वे 10 जुलाई के बाद फ्लोरिडा तट पर लैंड करेंगे। हालांकि, अभी तक NASA ने अनडॉकिंग (अंतरिक्ष स्टेशन से अलग होने) की तारीख घोषित नहीं की है।

‘गगनयात्री’ नहीं, ‘धरती से जुड़ा अंतरिक्ष योद्धा’
जहाँ एक ओर अंतरिक्ष यात्रियों को अक्सर तकनीकी और वैज्ञानिक छवि में देखा जाता है, शुभांशु शुक्ला ने इस परिभाषा को बदल दिया है। वे अंतरिक्ष में किसान की भूमिका में हैं – और यह भारत के लिए केवल एक वैज्ञानिक उपलब्धि नहीं, संस्कृति, विज्ञान और भविष्य का संगम है।

जब धरती पर किसान बीज बोता है, तो वह भविष्य की उम्मीद बोता है। पर जब वही बीज अंतरिक्ष में बोया जाए, तो वह केवल फसल नहीं, सभ्यता की नई कहानी बन जाता है। और इस नई कहानी के नायक हैं – भारत के अंतरिक्ष किसान – ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला।

“धरती से उठे, अंतरिक्ष में फले, और अब बीज बनकर लौटेंगे… भारत का भविष्य!”

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