CG News-कचरा नहीं, ‘कंचन’ है ये छिलका”:रायपुर के कृषि नवाचार से किसानों को मिलेगा लाखों का मुनाफा, कोको पीट बना कमाई का नया मंत्र!
Raipur/इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय, रायपुर के अंतर्गत संचालित स्वामी विवेकानंद कृषि अभियांत्रिकी एवं प्रौद्योगिकी महाविद्यालय में एक ऐसा चमत्कारी नवाचार सामने आया है, जो छत्तीसगढ़ ही नहीं, पूरे देश के किसानों की किस्मत पलट सकता है। अब जो चीजें अब तक ‘कचरा’ समझ कर जलाई जाती थीं, वही अब ‘सोनामूल्य’ दे सकती हैं।
हम बात कर रहे हैं नारियल के छिलकों की – जो मंदिरों, बाजारों और गलियों में यूं ही फेंके जाते थे, लेकिन अब इन्हीं छिलकों से बन रहा है कोको पीट, जो मिट्टी रहित खेती का नया आधार बनता जा रहा है।
इस क्रांति के सूत्रधार हैं डॉ. आर.के. नायक, जो वर्षों से जैविक अपशिष्टों पर शोध कर रहे हैं। उन्होंने एक विशेष मशीन विकसित की है, जो नारियल के छिलकों को न केवल प्रोसेस करती है, बल्कि उनसे ऐसा उत्पाद निकालती है, जिसकी कीमत सुनकर कोई भी चौंक जाए।
जहां कच्चा छिलका 2 रुपये किलो बिकता है, वहीं प्रोसेस्ड कोको पीट 400 रुपये प्रति किलो तक बिक रही है!
मिट्टी नहीं, अब कोको पीट में उगेंगे पौधे!
डॉ. नायक बताते हैं कि नारियल छिलके से पहले रेशा और बुरादा निकाला जाता है। यही बुरादा जब मशीन में प्रोसेस होकर कोको पीट बनता है, तो वह शहरी खेती (Urban Farming), किचन गार्डन और हाइड्रोपोनिक्स जैसी आधुनिक विधाओं में मिट्टी का विकल्प बन जाता है।
इसकी सबसे बड़ी खासियत है कि यह पौधों को सीधे पोषण देता है, जिससे उर्वरक की बर्बादी नहीं होती। यही कारण है कि देशभर के शहरी इलाकों में इसकी मांग तेजी से बढ़ रही है।
कम लागत, ज़्यादा मुनाफा – किसानों के लिए तैयार है चमत्कारी मशीन!
कॉलेज द्वारा तैयार की गई यह मशीन हर घंटे 20 क्विंटल नारियल छिलकों को प्रोसेस कर सकती है। मशीन की लागत करीब 2.75 लाख रुपये है और इसे ट्रैक्टर से पीटीओ के जरिए कहीं भी ले जाया जा सकता है – यानी गांव-गांव जाकर छिलके को प्रोसेस करने की सुविधा।
इस मशीन से किसान को तुरंत तैयार प्रोडक्ट – रेशा और कोको पीट – मिल जाता है, जिससे उद्योग का समय और श्रम दोनों की बचत होती है।
बाजार में जबरदस्त मांग – स्टार्टअप के लिए सुनहरा अवसर!
आज शहरी लोग अपनी गृह वाटिका में मिट्टी की जगह कोको पीट का ही उपयोग कर रहे हैं। अमेजन, फ्लिपकार्ट और अन्य ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर कोको पीट की भारी डिमांड है।
जिस 2 रुपए प्रति किलो कच्चे छिलके से बना कोको पीट 400 रुपये किलो में बिक रहा है, सोचिए – 100 किलो से ही 40,000 तक की कमाई संभव है।
डॉ. नायक के मुताबिक, यह नवाचार कम पूंजी में कृषि आधारित स्टार्टअप शुरू करने वालों के लिए वरदान साबित हो सकता है।
प्रशिक्षण भी देगा विश्वविद्यालय!
इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय इस तकनीक को आम किसानों तक पहुंचाने के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम, तकनीकी मार्गदर्शन और स्टार्टअप सहयोग देने के लिए तैयार है।
यह न सिर्फ एक मशीन है, बल्कि कृषि आधारित नवाचार की शुरुआत है – एक ऐसा युग, जहां कचरे से कमाई होगी, और किसान आत्मनिर्भर बनेंगे।
डॉ. नायक कहते हैं –“नारियल का छिलका सिर्फ एक अपशिष्ट नहीं, बल्कि एक अनदेखा खजाना है। किसान इसे समझें और उठाएं इस अवसर का लाभ। यह सिर्फ खेती नहीं, एक उद्यम है!”
छत्तीसगढ़ की धरती से निकला यह नवाचार!
छत्तीसगढ़ की धरती से निकला यह नवाचार अब राष्ट्रीय स्तर पर क्रांति ला सकता है। ‘कचरा नहीं, अवसर है’ – इस सोच से जो किसान आगे बढ़ेंगे, वे अब सिर्फ फसल के नहीं, बल्कि नवाचार और आत्मनिर्भरता के भी खेतीकार बनेंगे।
अब मंदिरों और गलियों के किनारे बिखरे नारियल छिलके, किसानों की किस्मत बदलेंगे।
यह केवल एक मशीन नहीं – यह किसानों के आर्थिक उत्थान की चाबी है!
अब छिलका बोलेगा – और बोलेगा मुनाफे की भाषा में!