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September 10, 2025 12:58 pm

CG News”कलम की क्रांति: गरियाबंद में गूंजा सन्नाटा! पत्रकारों ने डाला ‘कलम बंद’ का ताला — जब तक सहायक माइनिंग अधिकारी रोहित साहू पर कार्रवाई नहीं, तब तक जनसंपर्क भी मौन!”

CG News”कलम की क्रांति: गरियाबंद में गूंजा सन्नाटा! पत्रकारों ने डाला ‘कलम बंद’ का ताला — जब तक सहायक माइनिंग अधिकारी रोहित साहू पर कार्रवाई नहीं, तब तक जनसंपर्क भी मौन!”

Gariyaband/छत्तीसगढ़ का गरियाबंद जिला इन दिनों पत्रकारिता की एक ऐतिहासिक लड़ाई का गवाह बन रहा है।जहां कल तक समाचारों की गूंज थी, वहां आज सन्नाटा पसरा है। संवादहीनता का सैलाब बह रहा है, और इसकी वजह है पत्रकारों का वह अभूतपूर्व निर्णय, जो प्रशासन की नींद हराम कर चुका है — “कलम बंद आंदोलन!”

 “अब नहीं उठेगी कलम, जब तक नहीं हटेगा रोहित साहू!”

10 जून 2025 को गरियाबंद जिले के सभी पत्रकारों ने एकजुट होकर अपनी सबसे बड़ी ताक़त – “कलम” – को एक हफ्ते के लिए विराम देने का एलान किया।
इस अभूतपूर्व कदम का कारण है एक ऐसा काला दिन, जब जनसेवा की उम्मीद रखने वाले पत्रकारों को अपनी जान की सलामती की लड़ाई लड़नी पड़ी।

गरियाबंद जिला का मामला अवैध रेत खनन से जुड़ा हुआ है। खबरों के अनुसार, पत्रकार जब इस गोरखधंधे की सच्चाई उजागर करने पहुंचे, तो उन पर न केवल अभद्रता की गई, बल्कि शारीरिक रूप से भी हमला किया गया। ये हमला किसी अनपढ़ गुंडे ने नहीं, बल्कि प्रशासन की जिम्मेदारी संभाल रहे माइनिंग सहायक अधिकारी रोहित साहू की ओर से संरक्षण प्राप्त लोगों द्वारा किया गया, ऐसा पत्रकारों का आरोप है।

जनसंपर्क विभाग ठप, सरकारी प्रचार पर विराम!
गरियाबंद जिला के प्रेस जगत में मानो सन्नाटा सा छाग़या सा हो चाहे वह इलेक्ट्रॉनिक मीडिया हो ,प्रिंट मीडिया,यूट्यूब चैनल एवं न्यूज पोर्टलों द्वारा गरियाबंद और जिले की सभी पत्रकार एकता संस्थाओं ने स्पष्ट घोषणा कर दी है –

“जब तक रोहित साहू को हटाया नहीं जाता, तब तक कोई भी पत्रकार सरकारी योजनाओं की खबरें नहीं छापेगा, न ही प्रेस विज्ञप्तियों को कवरेज दी जाएगी। हमारी कलम बंद है, और शासन की चमक भी।”

इस निर्णय के बाद से जिला प्रशासन सकते में है:- 

गरियाबंद जिला के जनसंपर्क कार्यालयों के दरवाज़े तो खुले हैं, लेकिन ना कोई कवरेज हो रही, ना ही कोई योजना सुर्खियों में आ पा रही। शासन की लाखों की योजना अब जनता तक नहीं पहुंच पा रही है, क्योंकि उन्हें ज़मीन से जोड़ने वाले वही पत्रकार इस समय चुप हैं।

पत्रकारों का आक्रोश: “कितनी देर तक सहें अन्याय?”पत्रकारों ने सामूहिक रूप से जो बयान जारी किया है, वह बेहद तीखा और स्पष्ट है:

“हम न शासन के गुलाम हैं, न पूंजीपतियों के कठपुतली। हम वो हैं जो सत्ता और जनता के बीच पुल बनाते हैं। लेकिन जब उसी पुल को तोड़ने की कोशिश होती है, तो आवाज़ बुलंद करना ही धर्म बन जाता है।”

“हम पर हमला केवल एक व्यक्ति पर नहीं, लोकतंत्र के चौथे स्तंभ पर हमला है!”

प्रेस कॉन्फ्रेंस: पत्रकारों की हुंकार 11 जून को हुई एक प्रेस वार्ता में गरियाबंद जिले के वरिष्ठ पत्रकारों ने स्पष्ट रूप से मांग रखी —

• माइनिंग सहायक अधिकारी रोहित साहू को तत्काल हटाया जाए,

• पत्रकारों पर हमले में लिप्त सभी आरोपियों को गिरफ्तार किया जाए,

• प्रशासन माफियाओं को संरक्षण देना बंद करे,

• पत्रकार सुरक्षा कानून को तत्काल प्रभाव से लागू किया जाए,

सोशल मीडिया पर हुआ वायरल:-

“#PenDownGariaband”सोशल मीडिया पर भी इस आंदोलन की लहर दौड़ चुकी है।

• #PenDownGariaband ट्रेंड कर रहा है, और न केवल स्थानीय, बल्कि राज्य स्तरीय पत्रकार संगठनों से भी समर्थन मिल रहा है।

रायपुर, बिलासपुर, राजनांदगांव जैसे जिलों से पत्रकारों ने एक स्वर में गरियाबंद के साथ एकजुटता प्रकट की है।

प्रशासन की चुप्पी बनी रहस्य!
गरियाबंद जिला में इतने बड़े जनसंचार बहिष्कार के बावजूद जिला प्रशासन की ओर से अब तक कोई ठोस प्रतिक्रिया सामने नहीं आई है।
कलेक्टर कार्यालय में हलचल तो ज़रूर है, लेकिन किसी ने भी सार्वजनिक रूप से बयान नहीं दिया है।
इसे लेकर जनता भी सवाल उठा रही है –

“क्या प्रशासन दोषियों को बचा रहा है? या फिर मामला दबाने की कोशिश हो रही है?”

पीछे की परतें: कौन है माइनिंग सहायक रोहित साहू?
गरियाबंद जिला के माइनिंग सहायक अधिकारी रोहित साहू पर पहले भी रेत खनन के मामलों में लापरवाही और संदिग्ध भूमिका के आरोप लगे हैं। सूत्रों के अनुसार, स्थानीय माफियाओं से सांठगांठ के गंभीर संदेह हैं।लेकिन न तो कभी विभागीय जांच हुई, न ही उच्च अधिकारियों ने कोई कदम उठाया।

https://jantakitakat.com/2025/06/13/cg-suspend-newsकानून-के-रक्षक-ने-रची-ज़/

इस बार मामला गरियाबंद की सड़कों से लेकर सोशल मीडिया तक आग बन चुका है, और अगर अब भी कोई कार्रवाई नहीं हुई, तो यह आग और भी फैल सकती है।

लोकतंत्र की रक्षा या चुप्पी का अंधेरा खेल?
पत्रकारों का यह ऐतिहासिक ‘कलम बंद आंदोलन’ यह बताने के लिए काफी है कि

• पत्रकारिता केवल समाचार नहीं, बल्कि संघर्ष भी है।

• अगर कलम ही डरकर बैठ जाए, तो फिर सच कौन बोलेगा?

यह लड़ाई केवल गरियाबंद के पत्रकारों की नहीं, पूरे राज्य के लोकतंत्र की है।पत्रकारों की यह चुप्पी असल में एक क्रांति है।जब तक दोषियों पर कार्रवाई नहीं होती, तब तक ये चुप्पी बहुत कुछ कह रही है –
“हम झुकेंगे नहीं, हम बिकेंगे नहीं, हम लिखेंगे… मगर न्याय के बाद!”

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