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September 10, 2025 12:58 pm

CG Big Breaking”रेत माफिया के रहमोकरम पर प्रशासन! — चुप्पी की कीमत चुकाई खनिज अधिकारी ने, प्रवीण चंद्राकर निलंबित… अब होगा ‘रेत राज’ का पर्दाफाश!”

CG Big Breaking”रेत माफिया के रहमोकरम पर प्रशासन! — चुप्पी की कीमत चुकाई खनिज अधिकारी ने, प्रवीण चंद्राकर निलंबित… अब होगा ‘रेत राज’ का पर्दाफाश!”

रायपुर, 15 जून 2025।छत्तीसगढ़ में रेत माफियाओं के बढ़ते दुस्साहस पर अब सरकार ने सख्त तेवर अपनाना शुरू कर दिया है। जिले में खनिज विभाग की आंख मूंद नीति और माफियाओं से मिलकर चल रही ‘खामोश डीलिंग’ का भंडाफोड़ उस वक्त हुआ जब राजनांदगांव जिले के खनि अधिकारी प्रवीण चंद्राकर को तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया गया। कारण? अवैध रेत खनन और परिवहन पर प्रभावी नियंत्रण न करना और समय रहते प्रकरणों में कोई सख्त कदम न उठाना।

यह निलंबन उस आग की पहली चिंगारी है, जो आने वाले दिनों में रेत माफियाओं के साम्राज्य को भस्म कर सकती है। सरकार की ओर से जारी आदेश में स्पष्ट किया गया है कि श्री चंद्राकर की भूमिका संदिग्ध पाई गई है और उन्होंने न तो कार्रवाई की, न ही जिम्मेदारी का निर्वहन। निलंबन की अवधि में उनका मुख्यालय संचालनालय, भौमिकी तथा खनिकर्म, रायपुर नियत किया गया है। यानी अब वो फील्ड से हटाकर कागज़ों में कैद रहेंगे।

‘सुनहरा रेत’, लेकिन स्याह साजिश!

राजनांदगांव जिले में बीते कुछ महीनों से रेत के अवैध खनन की शिकायतें लगातार सामने आ रही थीं। गाँव-गाँव, नदी-नालों और जंगलों में रातों-रात जेसीबी गाड़ियाँ चलती रहीं, और अधिकारी चैन की नींद सोते रहे। ना माफियाओं पर केस दर्ज हुए, ना ही रॉयल्टी वसूली का कोई रिकॉर्ड सामने आया।

कहने को तो खनिज अधिकारी की ज़िम्मेदारी होती है कि वह न सिर्फ खनन गतिविधियों की निगरानी करे बल्कि यदि कोई अवैध गतिविधि हो रही हो तो तत्काल कार्रवाई करे। मगर श्री चंद्राकर के कार्यकाल में मानो रेत के इस अवैध कारोबार को ‘नजरअंदाज करने का लाइसेंस’ मिल गया था।

प्रशासनिक सख्ती या जनता का दबाव?
यह निलंबन आदेश ऐसे समय पर आया है जब विपक्ष और जनसंगठनों ने सरकार पर आरोप लगाए थे कि वह अवैध खनन में लिप्त अधिकारियों को संरक्षण दे रही है। आए दिन हो रहे धरना-प्रदर्शन, सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे वीडियो और मीडिया की लगातार रिपोर्टिंग ने सरकार को मजबूर कर दिया कि अब वह एक्शन में आए।

राजनांदगांव के आम नागरिकों और पर्यावरण:- राजनांदगांव के कार्यकर्ताओं ने खनिज विभाग की भूमिका पर लंबे समय से सवाल खड़े किए थे। नदी किनारे बसे गांवों में पानी की सतह नीचे गिर रही है, जैव विविधता खतरे में है, लेकिन रेत का कारोबार फल-फूल रहा था। चौंकाने वाली बात ये रही कि कई बार शिकायतें सीधे खनि अधिकारी तक पहुंची, परंतु कार्रवाई के नाम पर केवल मौन!

कौन हैं प्रवीण चंद्राकर?

खनिज अधिकारी प्रवीण चंद्राकर का नाम पहले भी विवादों में रह चुका है। सूत्रों की मानें तो यह पहला मौका नहीं है जब उन पर आरोप लगे हों  यहां तक उन पर कुछ खदानों में रॉयल्टी की गड़बड़ी और नीलामी प्रक्रिया में पारदर्शिता की कमी को लेकर आरोप लगे थे। हालांकि उस समय मामला दबा दिया गया था। लेकिन इस बार उनके खिलाफ आरोप इतने मजबूत थे कि सरकार को निलंबन का कठोर कदम उठाना पड़ा।

रेत माफिया बनाम राज्य सरकार – शुरू हो चुका है ‘रेत युद्ध’?
राजनांदगांव की यह घटना सिर्फ एक अधिकारी का निलंबन नहीं है, यह संकेत है कि सरकार अब रेत माफिया के खिलाफ खुली जंग का ऐलान कर रही है। मुख्यमंत्री ने भी हाल ही में रेत खनन में पारदर्शिता लाने के लिए राज्य स्तरीय टास्क फोर्स गठित करने की बात कही थी।

वर्तमान में छत्तीसगढ़ में रेत की माँग इतनी अधिक है कि इसे ‘सफेद सोना’ कहा जाने लगा है। लेकिन यह सफेद सोना, काले कारोबार की जड़ बनता जा रहा है। नक्सल प्रभावित क्षेत्रों से लेकर शहरी इलाकों तक, हर जगह अवैध रेत खनन का नेटवर्क फैला है।

अब जबकि एक जिम्मेदार अधिकारी पर गाज गिरी है, उम्मीद की जा रही है कि यह कार्रवाई केवल शुरुआत है। आने वाले दिनों में और भी अधिकारियों पर कार्रवाई हो सकती है।

भविष्य की राह क्या होगी?

सरकार को अब यह सुनिश्चित करना होगा कि जो भी अधिकारी फील्ड में हैं, वह न सिर्फ अपनी जिम्मेदारी समझें बल्कि आमजन के प्रति जवाबदेह भी रहें। यदि ऐसे ही अधिकारी संरक्षण पाते रहे तो नदियाँ सुख जाएँगी और प्रशासन की साख भी।

प्रवीण चंद्राकर का निलंबन उन सभी अधिकारियों के लिए चेतावनी है, जो आज भी माफियाओं के साथ सांठगांठ कर पद का दुरुपयोग कर रहे हैं। अब देखना होगा कि क्या यह निलंबन किसी बड़े बदलाव की शुरुआत है या एक और ‘मीडिया स्टंट’ बनकर रह जाएगा।

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प्रशासनिक लापरवाही की चादर अब हट रही है, और उसके नीचे छिपी कालिख एक-एक कर उजागर हो रही है। यदि यही रफ्तार रही, तो रेत माफियाओं का राज बहुत जल्द इतिहास बन सकता है। मगर सवाल यह है—क्या सरकार उस ‘इतिहास’ को लिखने का साहस रखती है?

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