CG Beaking“लहरौद में न्याय की चिंगारी: 70 वर्षीय वृद्धा के आत्मदाह की चेतावनी के बाद खुली एसडीएम की ‘पक्षपात की परतें’ – क्या अब जागेगा प्रशासन?”
Pithoura/जिला महासमुंद के पिथौरा से एक अमानवीय घटना सामने आ रही है एक 70 वर्षीय वृद्धा के क्रंदन ने पूरे प्रशासनिक तंत्र की निष्क्रियता और पक्षपातपूर्ण रवैये को बेनकाब कर दिया है। न्याय की कुर्सी पर बैठकर अन्याय का ताज पहनने वालों का चेहरा बेनकाब हो गया है। जनआक्रोश की लहरें अब उनकी चुप्पी को चीर रही हैं पिथौरा ग्राम लहरौद निवासी प्रतिभा मसीह ने आत्मदाह की चेतावनी देकर शासन-प्रशासन को हिलाकर रख दिया। वजह? ना केवल उनकी जमीन पर अवैध कब्जा, बल्कि स्थानीय एसडीएम की चुप्पी और उल्टा कार्रवाई करने की कोशिश, जिसने पूरे प्रकरण को गरमा दिया है।
शुरुआत: जब न्याय की गुहार बनी अपराध का आरोप!
पिथौरा में 7 मई 2025 को, प्रतिभा मसीह ने लहरौद हल्का में ज़मीन हड़पने और अनियमितताओं की शिकायत सीधे अनुविभागीय अधिकारी (राजस्व) ओंकारेश्वर सिंह को दी। मगर वे न सिर्फ चुप रहे, बल्कि बाद में मामला मीडिया में आते ही उन्होंने प्रतिभा मसीह के खिलाफ ही शासकीय भूमि पर कब्जे का आरोप जड़ दिया!
प्रतिभा मसीह का कहना है – पिथौरा के लहरौद “गांव में 60% लोग वर्षों से शासकीय भूमि पर रहते आ रहे हैं। यदि मेरी ज़मीन पर कार्रवाई होती है, तो पिथौरा की हर शासकीय भूमि पर भी निष्पक्ष कार्यवाही होनी चाहिए। मगर एसडीएम महोदय ने केवल मेरे खिलाफ कदम उठाकर पूरे मामले को उलट दिया।”
भ्रांति फैलाने की साज़िश या ‘विशेष शिक्षिका’ का संरक्षण?
पिथौरा का यह मामला तब और गहराया जब यह सामने आया कि शिक्षिका गंगादेवी ध्रुव, जिनके पक्ष में एसडीएम खड़े नजर आ रहे हैं, पूर्व में अवैध शराब बिक्री के आरोप में जेल जा चुकी हैं। आरोप यह भी है कि वही गंगादेवी ध्रुव ने प्रतिभा मसीह की ज़मीन (खसरा नंबर 657/2, रकबा 0.73 हेक्टेयर) पर कब्जा कर लिया है।
इतना ही नहीं, गांव में खसरा नंबर 86/1 की शासकीय ज़मीन पर 7 डिसमिल कब्जा कर मकान बनाया है, और इसके अलावा दो अन्य भूखंडों पर भी कब्जा है। इसके बावजूद, प्रशासन मौन है – क्या यह लचर प्रशासन है या ‘गुप्त संरक्षण’ का परिणाम?
आत्मदाह से पहले की कड़ियाँ: एक वृद्धा को दो बार घसीटा गया!
पिथौरा के लहरौद निवासी प्रतिभा मसीह ने आत्मदाह की चेतावनी देने के बाद, दिनांक 06 जून को एसडीएम कार्यालय में दो बार उपस्थित होने का आदेश दिया गया। सुबह 10 बजे पहुंचने पर मुझे कड़े शब्दों में कहा गया कि गंगादेवी स्कूल में हैं, और तुम शाम को 3 बजे आना। जब शाम को पहुंचीं, तो कहा गया कि गंगादेवी अस्पताल में भर्ती हैं!
70 वर्षीय महिला जिनकी पैरों की उंगलियां कटी हुई हैं, बार-बार 4 किमी दूर से बुलाने का विभाग का क्या उद्देश्य था? ऑटो-रिक्शा जैसी सुविधा नहीं, सहारा देने वाला कोई नहीं,और फिर भी प्रशासन की अमानवीयता – क्या यही ‘जनकल्याणकारी शासन’ है? क्या यही महतारी वंदन है?
डांट-फटकार और तमतमाहट:ये कैसा प्रशासनिक व्यवहार?
प्रतिभा मसीह का दर्द तब और उभरता है जब वह कहती हैं:- “जब मैंने बताया कि मेरे आने-जाने में कठिनाई है, तो अधिकारी तमतमा गए। मुझ पर चिल्लाए, बुरा व्यवहार किया। मैं डर गई थी, इसलिए आत्मदाह की तारीख से दो दिन पहले ही रायपुर चली गई।”
इस व्यवहार ने पूरे प्रशासनिक अमले को कठघरे में खड़ा कर दिया है। क्या हमारे राजस्व अधिकारी इतने अमानवीय हो सकते हैं कि एक वृद्ध महिला की गुहार को दबा दें?
बड़े सवाल, जिनका जवाब प्रशासन को देना होगा:
• यदि प्रतिभा मसीह की ज़मीन शासकीय थी, तो वर्षों तक प्रशासन चुप क्यों रहा?
• क्यों एसडीएम ओंकारेश्वर सिंह ने शिकायत के बाद स्वतः कोई कार्रवाई नहीं की?
• गंगादेवी ध्रुव के खिलाफ पूर्व आपराधिक रिकॉर्ड होते हुए भी उन्हें संरक्षण क्यों?
• क्या महिला की मानसिक पीड़ा, वृद्धावस्था और विकलांगता का मजाक उड़ाया गया?
• क्यों नहीं जांच के लिए किसी उच्चस्तरीय अधिकारी को नियुक्त किया गया?
जनता की पुकार: निष्पक्ष जांच हो, न्याय हो!
पिथौरा के इस मामले में सिर्फ एक महिला नहीं, पूरा गांव न्याय की उम्मीद में है। यदि शिकायतकर्ता गलत है, तो कानूनी रूप से साबित हो। लेकिन अगर वह सही है और प्रशासन खुद ही पक्षपात कर रहा है, तो यह लोकतंत्र के लिए काला धब्बा है।
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प्रतिभा मसीह ने जिला कलेक्टर से मांग की है कि मामले की निष्पक्ष जांच किसी जिला स्तर के वरिष्ठ अधिकारी से कराई जाए, ताकि सच्चाई सामने आ सके। वे चाहती हैं कि एसडीएम की निष्क्रियता, गंगादेवी के अतिक्रमण, और प्रशासन की मिलीभगत की जड़ तक जांच हों!
• क्या जनता को न्याय मांगने का अधिकार नहीं है?क्या उस वृद्ध महिला के अपमान को जिला कलेक्टर संज्ञान लेंगे या मामला सिर्फ ठंडे बस्ते में जाएगा?
• क्यों न्याय मांगने वालों को अधिकारियों द्वारा या तो दुत्कार मिलता है या फिर आत्मदाह की चेतावनी देकर सुना जाता है?
•क्या यही हमारी संवैधानिक व्यवस्था है? क्या हम इसी न्याय प्रणाली की बात करते हैं जिसमें पीड़ित को ही ‘अपराधी’ बना दिया जाता है?

