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September 10, 2025 3:56 pm

CG – बीजापुर में 24 हार्डकोर माओवादी ने थामी विकास की राह, बंदूकें छोड़ थामा लोकतंत्र का हाथ”,,,,,,

CG – बीजापुर में 24 हार्डकोर माओवादी ने थामी विकास की राह, बंदूकें छोड़ थामा लोकतंत्र का हाथ”,,,,,,

CG – छत्तीसगढ़ के बीजापुर जिले में गुरुवार का दिन ऐतिहासिक बन गया, जब बंदूक थामे 24 हार्डकोर माओवादी ने आत्मसमर्पण कर हिंसा की राह छोड़ने का साहसिक निर्णय लिया। कुल 87 लाख 50 हजार रुपये के इनामी इन उग्रवादियों ने समाज की मुख्यधारा में लौटकर विकास की राह पर चलने का संकल्प लिया। यह आत्मसमर्पण राज्य सरकार की आत्मसमर्पण एवं पुनर्वास नीति 2025 और ‘नियद नेल्ला नार योजना’ के तहत एक बड़ी सफलता के रूप में देखा जा रहा है।

इन 24 माओवादियों में से 20 के सिर पर ₹50,000 से लेकर ₹10 लाख तक के इनाम घोषित थे। वर्षों से सुरक्षाबलों और आम नागरिकों के लिए खतरा बने ये माओवादी अब पुनर्वास योजनाओं के तहत समाजसेवा और आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनने की दिशा में आगे बढ़ेंगे।

मुख्यमंत्री की दृढ़ घोषणा: लाल आतंक का समूल नाश तय:- इस मौके पर छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री विष्णु देव साय ने राजधानी रायपुर में प्रेस को संबोधित करते हुए कहा, “प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के मार्गदर्शन में हम मार्च 2026 तक देश और प्रदेश से लाल आतंक का समूल नाश करने को लेकर प्रतिबद्ध हैं। बीजापुर में हुआ यह आत्मसमर्पण उसी निर्णायक यात्रा का एक महत्त्वपूर्ण पड़ाव है।”

उन्होंने आगे कहा, “अब माओवादी भी यह समझ चुके हैं कि हिंसा का मार्ग अंतहीन विनाश की ओर ले जाता है। यह बहुत संतोषजनक संकेत है कि वे अब आत्ममंथन कर रहे हैं और लोकतंत्र में भरोसा जता रहे हैं। हम इन आत्मसमर्पित साथियों को दोबारा समाज से जोड़ने में कोई कसर नहीं छोड़ेंगे।”

माओवादियों सरकार की नीति और माओवादियों का बदला नजरिया:- छत्तीसगढ़ सरकार की आत्मसमर्पण एवं पुनर्वास नीति 2025 को नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में बड़ी सफलता मिल रही है। ‘नियद नेल्ला नार योजना’, जिसका अर्थ होता है “नया उजाला लाओ”, के तहत आत्मसमर्पण करने वालों को सुरक्षा, आर्थिक सहायता, शिक्षा, प्रशिक्षण और रोजगार के अवसर दिए जा रहे हैं। बीजापुर जिले में यह पहली बार हुआ है जब इतनी बड़ी संख्या में हार्डकोर माओवादी ने सामूहिक रूप से आत्मसमर्पण किया है।

गृह विभाग के अनुसार, इन नक्सलियों में कई ऐसे हैं जो जनमिलिशिया कमांडर, एरिया कमेटी सदस्य, और डीएकेएमएस अध्यक्ष जैसे खतरनाक पदों पर रह चुके हैं। इनका आत्मसमर्पण माओवादी न केवल सुरक्षाबलों की रणनीतिक सफलता है, बल्कि यह दिखाता है कि नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में सरकार की योजनाएं अब जमीनी स्तर पर असर दिखा रही हैं।

स्वीकृति और पुनर्जन्म की राह पर कदम:- बीजापुर कप्तान ने बताया कि आत्मसमर्पण करने वाले सभी माओवादी का मेडिकल परीक्षण कराया गया है और उन्हें पुनर्वास शिविरों में स्थानांतरित किया गया है। यहां उन्हें मानसिक परामर्श, स्वरोजगार का प्रशिक्षण और सरकारी योजनाओं की जानकारी दी जा रही है। कुछ को पहले ही सिलाई, कढ़ाई, कृषि और निर्माण कार्यों में रोजगार मिल चुका है।

इनमें से एक आत्मसमर्पितआत्मसमर्पित माओवादी ने कहा, हमने बहुत गलतियां की हैं। हमें लगा था कि हम लोगों के हक के लिए लड़ रहे हैं, लेकिन यह रास्ता सिर्फ खून और विनाश की ओर जाता है। अब हम बच्चों को पढ़ाना चाहते हैं, खेतों में हल चलाना चाहते हैं।

एक नई सुबह की दस्तक:- विशेषज्ञों का मानना है कि यह आत्मसमर्पण माओवादी न केवल सुरक्षा दृष्टिकोण से बल्कि सामाजिक रूपांतरण की दृष्टि से भी मील का पत्थर साबित हो रहा है। नक्सलवाद से प्रभावित क्षेत्रों में जब सरकार विकास, स्वास्थ्य, शिक्षा और रोजगार की सुविधाएं ले जाती है, तब ही ये बदलाव संभव होते हैं।

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राज्य के गृह मंत्री ने बताया कि आने वाले महीनों में अन्य जिलों में भी नक्सली आत्मसमर्पण की ऐसी घटनाएं सामने आ सकती हैं। “हम न केवल बंदूक छोड़ने को प्रेरित कर रहे हैं, बल्कि उन्हें यह भी दिखा रहे हैं कि विकास और गरिमा के साथ जीने का एक वैकल्पिक रास्ता मौजूद है।”

राजनीतिक और सामाजिक प्रतिक्रियाएं:-

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह आत्मसमर्पण मोदी सरकार की कठोर आंतरिक सुरक्षा नीतियों और छत्तीसगढ़ सरकार की संवेदनशील पुनर्वास नीति का संयुक्त परिणाम है। विपक्ष ने भी इस घटनाक्रम का स्वागत किया है, लेकिन यह भी कहा है कि सरकार को आत्मसमर्पण के बाद पुनर्वास और सामाजिक समावेशन में विशेष सतर्कता बरतनी चाहिए।

संघर्ष से समाधान की ओर:-बीजापुर की इस घटना ने यह स्पष्ट कर दिया है कि हिंसा और आतंक का कोई भविष्य नहीं होता। माओवादी जो कभी बंदूकें उठाए जंगलों में घूमते थे, वे अब खेती, कारीगरी और समाज सेवा की बात कर रहे हैं। छत्तीसगढ़ सरकार और सुरक्षाबलों की यह जीत केवल रणनीतिक नहीं, बल्कि मानवीय और संवेदनशील भी है।

जब माओवादी बंदूक छोड़ कलम, हल और हथौड़ा थामते हैं, तो यह संकेत है कि भारत का लोकतंत्र न केवल जीवित है, बल्कि हर विरोध को संवाद में बदलने की क्षमता भी रखता है।

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