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September 10, 2025 3:53 pm

CG पिथौरा”धान का रहस्य: राइस मिल से गायब सरकारी धान संदिग्ध हालत में मंडी में मिला खेल या सुनियोजित चाल,,,,,,,,,,,,क्या जांच में खुलेगी राइस मिलो की खुलेंगी घोटालों की परतें या की जाएगी लीपापोती!

CG पिथौरा”धान का रहस्य: राइस मिल से गायब सरकारी धान संदिग्ध हालत में मंडी में मिला खेल या सुनियोजित चाल,,,,,,,,,,,,क्या जांच में खुलेगी राइस मिलो की खुलेंगी घोटालों की परतें या की जाएगी लीपापोती!

Mahasmund/ छत्तीसगढ़ के महासमुन्द में धान की राजनीति और भ्रष्टाचार की कहानी अब एक नए मोड़ पर है। महासमुंद जिले के पिथौरा में स्थित एक कृष्णा राइस मिल से अचानक 6000 से अधिक सरकारी धान के कट्टे रहस्यमयी तरीके से गायब हो गए हैं। ये खुलासा उस वक्त हुआ जब खाद्य विभाग और विपणन विभाग के अधिकारियों की संयुक्त टीम निरीक्षण पर पहुंची। जांच में जब सरकारी स्टॉक की पड़ताल की गई, तो धान के हजारों कट्टे नदारद मिले। यह कोई साधारण प्रशासनिक चूक नहीं, बल्कि एक गहरी और सुनियोजित साजिश की ओर इशारा कर रही है।

पिथौरा धान घोटाले की जैसे ही जांच रिपोर्ट जिला कलेक्टर को सौंपी गई, प्रशासन में हड़कंप मच गया। इस घोटाले ने जिले भर में सनसनी फैला दी है। इस पूरे मामले में मिलर्स को शोकॉज नोटिस दिया गया है और उनसे जवाब तलब किया गया है। लेकिन मामला यहीं खत्म नहीं होता – असली नाटक तो तब शुरू हुआ, जब यही गायब हुआ धान पिथौरा मंडी में बिना किसी सरकारी अनुमति के पाया गया।

पिथौरा जांच अधिकारियों के अनुसार, राइस मिल से गायब हुए करीब 6000 धान के कट्टों की मात्रा मंडी में मिलान पर लगभग बराबर पाई गई। यानी जो धान स्टॉक में होना चाहिए था, वो मंडी में गैरकानूनी रूप से पड़ा मिला।

अब सबसे बड़ा सवाल उठता है कि क्या यह पूरी योजना राइस मिलर्स और कुछ भ्रष्ट अधिकारियों की मिलीभगत का नतीजा है?

क्या है ‘धान घोटाले’ की असली पटकथा?
छत्तीसगढ़ में पिछले कुछ वर्षों से धान की खरीदी, भंडारण और मिलिंग को लेकर भ्रष्टाचार के आरोप लगते रहे हैं। लेकिन इस बार महासमुंद जिले से सामने आई यह घटना न केवल प्रशासन की कार्यशैली पर सवाल उठाती है, बल्कि यह भी दर्शाती है कि कैसे कुछ मुनाफाखोर मिलर्स सरकारी अनाज को निजी व्यापार में बदल रहे हैं।

पिथौरा में जांच पर पाया गया कि जिस कृष्णा राइस मिल में सरकारी सीएमआर (Custom Milled Rice) के लिए रखा गया धान होना चाहिए था, वहां वो स्टॉक नहीं मिला। इस पर जब गहराई से जांच की गई तो मिलर्स किसन अग्रवाल द्वारा मंडी परिसर में धान रखे जाने की बात सामने आई – वह भी बिना किसी वैध दस्तावेज के।

सवाल यह उठता है कि क्या मिलर्स किसन अग्रवाल द्वारा मंडी परिसर में धान रखे जाने की अनुमति खाद्य विभाग से की अगर नहीं ली तो खाद्य विभाग क्या कार्यवाही करेगा?

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पिथौरा में पदस्थ वहीं मंडी सचिव शैलेन्द्र नायक ने कहा कि किसन अग्रवाल ने केवल मौखिक रूप से मंडी में धान रखवाया था और वह भी केवल 15 दिनों के लिए। लेकिन डेढ़ माह बीत जाने के बाद भी न तो धान उठाया गया, न ही कोई आधिकारिक सूचना दी गई। हमारे द्वारा मंडी अधिनियम के तहत उनसे किराया वसूलने की प्रक्रिया शुरू की जा रही है।

महासमुन्द जिला खाद्य अधिकारी अजय यादव ने मामले की गंभीरता को समझते हुए तत्काल पंचनामा तैयार करवाया और जांच रिपोर्ट को जिला कलेक्टर को सौंप दिया है। उन्होंने कहा –

“करीब 6000 कट्टा धान राइस मिल में मौजूद नहीं था। इसकी पुष्टि होने के बाद हमने मिलर्स पर कार्रवाई शुरू कर दी है। पूरी रिपोर्ट उच्च अधिकारियों को भेज दी गई है।”

प्रश्न यह उठता है कि इस ‘नाटक’ के पात्र कौन?
इस पूरे घोटाले में तीन मुख्य पात्र सामने आ रहे हैं:

• राइस मिलर किसन अग्रवाल – जिन पर सरकारी धान के गायब होने और उसे गैरकानूनी रूप से मंडी में रखने का आरोप है।

• राइस मिल का प्रबंधन – जो बिना अनुमति सरकारी धान को यहां-वहां स्थानांतरित कर रहा था।

• संभावित लिप्त अधिकारी – जिनकी मिलीभगत से यह धान स्टॉक बिना किसी रिकॉर्ड के इधर-उधर हुआ।

महासमुन्द जांच एजेंसियों को अब यह पता लगाना है कि मंडी में पड़ा यह धान वास्तव में वही है जो राइस मिल से गायब बताया गया है। अगर यह साबित हो गया, तो यह केवल एक प्रशासनिक मामला नहीं, बल्कि आपराधिक मामला बन सकता है – जिसमें सार्वजनिक धन का दुरुपयोग, धोखाधड़ी और मंडी अधिनियम के उल्लंघन जैसी धाराएं लगाई जा सकती हैं।

महासमुन्द प्रशासन की अग्निपरीक्षा:- 
पिथौरा का अब यह मामला केवल विभागीय जांच तक सीमित नहीं रह गया है। आम जनता के बीच एक गहरा रोष है कि कैसे सरकारी अनाज को कुछ लालची व्यापारी और अफसर मिलकर गायब कर सकते हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में खाद्यान्न संकट की स्थितियों में इस प्रकार के घोटाले जनता की पीड़ा को और भी बढ़ाते हैं।

क्या यह मामला भी दबा दिया जाएगा?
या फिर प्रशासनिक अमला एक मिसाल पेश करेगा?

यह देखना अब दिलचस्प होगा कि जिला कलेक्टर इस मामले में कितनी पारदर्शिता से कार्रवाई करते हैं और दोषियों को किस हद तक सजा मिलती है।

महासमुन्द जिला खाद्य अधिकारी:- 

“हमारी जांच में यह सामने आया है कि राइस मिल में जो धान होना चाहिए था, वह नहीं मिला। इसके लिए हमने कानूनी प्रक्रिया शुरू कर दी है और पूरी रिपोर्ट कलेक्टर को भेज दी गई है।”

पिथौरा मंडी सचिव, पिथौरा:- 

“किसन अग्रवाल ने मौखिक रूप से मंडी में 15 दिन के लिए धान रखा था। लेकिन डेढ़ महीने से धान वहीं पड़ा है। अब मंडी अधिनियम के अनुसार उनसे किराया वसूला जाएगा।”

अब यह देखना है कि क्या पर्दा उठता है या गिरता है?
पिथौरा का यह धान घोटाला एक बड़ा उदाहरण है कि कैसे सरकारी योजनाओं में निजी स्वार्थ और भ्रष्टाचार का घालमेल हो सकता है। पर अब यह प्रशासन पर निर्भर करता है कि वह इस ‘नाटक’ को सत्य, न्याय और पारदर्शिता के मंच पर किस अंजाम तक पहुंचाता है।

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