CG”पूछता है गरियाबंद:शिक्षा या तमाशा” जो शिक्षा की बुनियाद पर बन बैठा है प्रशासनिक तमाशा!”
जिलें में शिक्षक हैं या अफसर?जो जिला कार्यालय को बना बैठे है “घोंसला”,,,,,,,,
गरियाबंद /छत्तीसगढ़ के गरियाबंद जिला में एक ओर स्कूलों में गूंजती खाली कक्षाओं की सिसकी, दूसरी ओर दफ्तरों में घूमते तथाकथित ‘शिक्षक अफसर’ — गरियाबंद में शिक्षा विभाग की युक्तियुक्तकरण प्रक्रिया अब खुद ही सवालों के कटघरे में खड़ी हो गई है।
“ये शिक्षक हैं या अफसर?” — यह सवाल अब केवल :- गरियाबंद में चाय की दुकानों या सोशल मीडिया तक सीमित नहीं है, बल्कि जिले के हजारों छात्रों, अभिभावकों और शिक्षकों की चिंता का विषय बन गया है।
गरियाबंद में जहां शिक्षा के मंदिर में होना चाहिए था ज्ञान का दीपक, वहां जल रहा है प्रशासनिक दंभ का अंधकार। और ये सब हो रहा है उस ‘युक्तियुक्तकरण’ प्रक्रिया के नाम पर, जिसे लाया गया था व्यवस्था सुधारने के लिए।
गरियाबंद में स्कूल खाली, दफ्तर भरे – कौन सुनेगा शिक्षा की पुकार?
गरियाबंद में स्कूलों की हालत यह है कि कई जगह गणित, विज्ञान, अंग्रेजी जैसे महत्वपूर्ण विषयों के शिक्षक वर्षों से स्कूल के बजाय जिला कार्यालय, विकासखंड संसाधन केंद्रों या अन्य विभागीय कुर्सियों पर कब्जा जमाए फेवीकोल जोड़ के साथ चिपक के बैठे हैं। लेकिन विभागीय रिकॉर्ड में इनका पद ‘भरापूरा’ दिखाया गया है।
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गरियाबंद में एक माध्यमिक स्कूल के प्रधानपाठक ने नाम न छापने की शर्त पर बताया, “हमारे यहां विज्ञान का शिक्षक 2018 से कार्यालय में संलग्न है। बच्चों की पढ़ाई बाधित है, लेकिन फाइलों में उसका नाम आज भी हमारे स्कूल की सूची में जुड़ा है। कोई नया शिक्षक इसलिए नहीं आ सकता, क्योंकि पद रिक्त नहीं है।”
“अतिशेष” वो शिक्षक जो पढ़ा रहे हैं, और”उपयुक्त” वो जो दफ्तरों में हैं!
गरियाबंद में नाटकीय दृश्य यह भी है कि जो शिक्षक विद्यालयों में नियमित रूप से बच्चों को पढ़ा रहे हैं, उन्हें युक्तियुक्तकरण की प्रक्रिया में “अतिशेष” बता दिया गया है। ऐसे शिक्षकों को जबरन अन्य स्कूलों में स्थानांतरित किया जा रहा है, जबकि जो वर्षों से स्कूल का मुँह नहीं देखे, उन्हें ‘स्थिर’ और ‘अमूल्य’ बताया जा रहा है।
गरियाबंद में शिक्षकों में गुस्सा है, भ्रम है और निराशा भी। एक उच्च माध्यमिक शिक्षक ने तंज कसते हुए कहा, “लगता है पढ़ाने से ज्यादा जरूरी हो गया है अफसरों की चहेती कुर्सी पकड़ना। ज्ञान नहीं, गिनती देखी जा रही है।”
गरियाबंद में विशेष शिक्षक ही बने काउंसलिंग के ‘ ‘विशेषाधिकार’ अधिकारी!
छत्तीसगढ़ में शिक्षक संघों और विरोधी शिक्षकों का कहना है कि इस पूरी प्रक्रिया को वे ही संचालित कर रहे हैं जो स्वयं प्रतिनियुक्ति या संलग्नीकरण पर कार्यालयों में वर्षों से जमे हुए हैं। कई शिक्षक तो इतने ‘विशेष’ हैं कि स्कूल छोड़ने के बाद एक दिन भी कक्षा में नहीं लौटे, फिर भी आज युक्तियुक्तकरण की काउंसलिंग प्रक्रिया में निर्णायक भूमिका निभा रहे हैं।
“यह कैसा न्याय है?” — यह सवाल हर शिक्षक के मन में गूंज रहा है। क्या यही पारदर्शिता है जिसकी बात सरकार और विभाग करते हैं?
शिक्षा के नाम पर ‘ताश का महल’ – कब गिरेगा यह ढोंग?
शिक्षक संघों का यह भी कहना है कि शिक्षा की गुणवत्ता तब तक नहीं सुधरेगी जब तक प्रतिनियुक्त शिक्षकों के पदों को रिक्त मानकर नए शिक्षक नहीं भेजे जाएंगे। साथ ही काउंसलिंग जैसी महत्त्वपूर्ण प्रक्रिया से ऐसे शिक्षकों को दूर रखा जाना चाहिए जो स्वयं शिक्षा कार्य से वर्षों से दूर हैं।
पारदर्शिता या पक्षपात:- “काउंसलिंग में उन्हीं शिक्षकों को शामिल किया जाना चाहिए जो आज भी विद्यालयों में हैं, बच्चों को पढ़ा रहे हैं, न कि उन लोगों को जो खुद वर्षों से अपनी जिम्मेदारी से भागे हुए हैं।” – यह कहना है जिला शिक्षक संघ के अध्यक्ष का।
प्रशासन की चुप्पी संदेहास्पद:- प्रशासन मौन,शिक्षक क्रोधित, विद्यार्थी हतप्रभ इस पूरे मुद्दे पर गरियाबंद जिला प्रशासन की ओर से अब तक कोई स्पष्ट प्रतिक्रिया नहीं आई है। न कोई प्रेस नोट, न ही स्थिति स्पष्ट करने का प्रयास। लेकिन ज़मीनी हकीकत चुप नहीं है – वह चीख-चीख कर कह रही है कि बच्चों की पढ़ाई खतरे में है, शिक्षक हतोत्साहित हैं, और व्यवस्था गहरे असंतुलन की शिकार हो चुकी है।
यदि शीघ्र ही ठोस कदम नहीं उठाए गए, तो जिले में शिक्षा व्यवस्था पूरी तरह चरमरा सकती है। आज नहीं तो कल, शिक्षा विभाग को जवाब देना ही होगा – कब होगी दफ्तर से इन ‘विशेष शिक्षकों’ की बिदाई? कब लौटेंगे ये शिक्षक अपने मूल कर्तव्य – बच्चों को पढ़ाने के लिए?
पूछता है गरियाबंद – यह तमाशा कब रुकेगा?
वक़्त आ गया है कि युक्तियुक्तकरण प्रक्रिया को पुनः पारदर्शी और व्यावहारिक बनाया जाए। जो शिक्षक वर्षों से शिक्षण कार्य से दूर हैं, उन्हें या तो विद्यालयों में वापस भेजा जाए या फिर उनके पदों को रिक्त मानकर योग्य शिक्षकों की नई तैनाती की जाए।
शिक्षा के नाम पर चल रही यह नौटंकी अगर नहीं रुकी, तो सबसे बड़ा नुकसान उस पीढ़ी को होगा जिसे हम “देश का भविष्य” कहते हैं।
गरियाबंद अब पूछ रहा है — “कब तक चलता रहेगा यह ढोंग? शिक्षक हैं या अफसर? शिक्षा बचाओ या सत्ता संभालो?