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September 10, 2025 3:50 pm

CG”गाँवों की पढ़ाई ‘अधूरी किताब’, शहरों में ‘शिक्षकों की भरी पड़ी भीड़’,,,,,”राजनांदगांव के ग्रामीण स्कूलों में शिक्षा बदहाल – युक्तियुक्तकरण बन सकता है समाधान!

CG”गाँवों की पढ़ाई ‘अधूरी किताब’, शहरों में ‘शिक्षकों की भरी पड़ी भीड़’,,,,,”राजनांदगांव के ग्रामीण स्कूलों में शिक्षा बदहाल – युक्तियुक्तकरण बन सकता है समाधान!

रायपुर/छत्तीसगढ़ राजनांदगांव जिला के ग्रामीण क्षेत्र के बच्चों की आँखों में सपने हैं, लेकिन उनके स्कूलों में शिक्षक नहीं। शहरों में शिक्षक हैं, लेकिन छात्रों की जरूरत से ज्यादा! ऐसे में सवाल उठता है – क्या शिक्षा का अधिकार केवल आंकड़ों तक सीमित रह गया है? क्या शिक्षक केवल पोस्टिंग के मोहरे बनकर रह गए हैं?

छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव जिले के ग्रामीण अंचलों में शिक्षा व्यवस्था आज एक गंभीर संकट से जूझ रही है। शासकीय विद्यालयों में शिक्षकों की भारी कमी के कारण न सिर्फ पढ़ाई बाधित हो रही है, बल्कि परीक्षा परिणाम भी भयावह स्थिति में पहुँच गए हैं। शिक्षा का वह मंदिर, जहाँ बच्चों का भविष्य गढ़ा जाना चाहिए, आज वहाँ सन्नाटा है – क्योंकि वहाँ शिक्षक नहीं हैं।

छत्तीसगढ़ में शिक्षा का उजाला तभी फैलेगा, जब हर गाँव के स्कूल में ज्ञान का दीपक जलाया जाएगा।
गाँव के बच्चे भी सपने देखते हैं – बस ज़रूरत है एक शिक्षक की, जो उन्हें राह दिखाए।

घोटिया का भयावह सच: तीन शिक्षक, सौ से ऊपर छात्र:- 

शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय, घोटिया (विकासखंड डोंगरगढ़) – यहाँ कक्षा 10वीं एवं 12वीं के कुल 103 विद्यार्थी दर्ज हैं। लेकिन दुर्भाग्यवश, यहाँ स्वीकृत 11 पदों में से केवल 3 ही व्याख्याता कार्यरत हैं, जबकि बाकी 8 पद खाली पड़े हैं।
इस भयावह शिक्षक-अभाव का असर सीधे परीक्षा परिणामों पर पड़ा है –
कक्षा 10वीं का परिणाम: मात्र 27.27%
 • कक्षा 12वीं का परिणाम: 66.66%

क्या हम इन बच्चों को दोष दे सकते हैं? जब शिक्षक ही नहीं होंगे तो पढ़ाई किससे होगी?

शहर में शिक्षा का ‘ओवरडोज’: जहाँ छात्र कम, शिक्षक ज्यादा:- अब अगर नज़र डालें शहरी स्कूलों की ओर – तो एक अलग ही तस्वीर सामने आती है। ठाकुर प्यारेलाल शासकीय पूर्व माध्यमिक विद्यालय, राजनांदगांव में केवल 84 विद्यार्थियों के लिए 10 शिक्षक पदस्थ हैं, जबकि आवश्यकता मात्र 4 शिक्षकों की है।
यह असंतुलन न केवल संसाधनों की बर्बादी है, बल्कि ग्रामीण छात्रों के साथ एक प्रकार का अन्याय भी।

शिक्षकों का ‘असंतुलन’ बना सबसे बड़ा संकट:- 

जिले में शिक्षक पदस्थापन की यह असमानता दर्शाती है कि युक्तियुक्तकरण की न केवल आवश्यकता है, बल्कि यह अब शिक्षा की गुणवत्ता बचाने की अंतिम उम्मीद बन गई है।
युक्तियुक्तकरण यानी छात्रों की संख्या, विषय की आवश्यकता और स्कूल के स्तर के अनुसार शिक्षकों का समुचित एवं न्यायसंगत वितरण।

यदि शहरों में अतिरिक्त शिक्षकों को ग्रामीण क्षेत्रों में समायोजित किया जाए, तो न केवल सभी छात्रों को समुचित मार्गदर्शन मिल सकेगा, बल्कि शिक्षकों के कार्यभार का भी संतुलन होगा। इससे सरकारी स्कूलों में शिक्षा का स्तर सुधरेगा और छात्रों का आत्मविश्वास भी बढ़ेगा।

क्या कहती है प्रशासनिक रिपोर्ट?

जिला शिक्षा अधिकारी, राजनांदगांव से प्राप्त जानकारी इस बात की पुष्टि करती है कि जिले भर के ग्रामीण स्कूलों में दर्जनों ऐसे विद्यालय हैं जहाँ शिक्षक स्वीकृत संख्या से बहुत कम हैं। खासकर विज्ञान, गणित और अंग्रेज़ी जैसे विषयों के शिक्षक तो लगभग सभी ग्रामीण क्षेत्रों में नदारद है!

https://jantakitakat.com/2025/05/28/cgगांवों-में-गूंजा-सन्नाटा/

सके विपरीत, कुछ शहरी स्कूलों में विषयवार आवश्यकता से दोगुने शिक्षक पदस्थ हैं, जो या तो अघोषित रूप से ‘आराम’ कर रहे हैं या फिर किसी प्रशासनिक ‘सुविधा’ के तहत वहाँ जमे हुए हैं।

युक्तियुक्तकरण का विरोध क्यों?

छत्तीसगढ़ में जब भी शिक्षकों के युक्तियुक्तकरण की बात होती है, तो कुछ शिक्षकों और संगठनों की ओर से इसका विरोध किया जाता है। उनका तर्क होता है – पारिवारिक कारण, बच्चों की पढ़ाई, या स्वास्थ्य संबंधी मुद्दे।
हालाँकि, विशेषज्ञों का मानना है कि यदि एक सुव्यवस्थित, पारदर्शी और मानवीय आधार पर युक्तियुक्तकरण किया जाए, तो इसका विरोध भी कम होगा और शिक्षा का स्तर भी सुधरेगा।

छत्तीसगढ़ में राज्य सरकार की भूमिका:- 

छत्तीसगढ़ में राज्य सरकार द्वारा शिक्षा के क्षेत्र में ‘नवाचार’ की कई योजनाएँ चलाई जा रही हैं, लेकिन ज़मीनी स्तर पर जब तक शिक्षकों का संतुलन नहीं बैठाया जाएगा, तब तक इन योजनाओं का प्रभाव सीमित ही रहेगा।
ज़रूरत इस बात की है कि सरकार सख्ती से यह सुनिश्चित करे कि जहाँ शिक्षक कम हैं वहाँ उनकी त्वरित पदस्थापना हो और जहाँ आवश्यकता से अधिक हैं, वहाँ से उन्हें समायोजित किया जाए।

अंतिम सवाल: क्या शिक्षा केवल एक आंकड़ा है?

सरकारी रिपोर्टें, बजट, योजनाएँ, विज्ञापन – सबमें शिक्षा की बात होती है। लेकिन जब एक ग्रामीण बच्चा स्कूल आता है और देखता है कि उसके पास पढ़ाने वाला ही नहीं है, तो उसके मन में क्या गुजरती होगी?
शायद वह सोचता होगा –
“शहर में पढ़ने वाले बच्चे मुझसे बेहतर क्यों? क्या मेरा अधिकार कम है?”

समाधान की ओर एक कदम:- अब समय आ गया है कि शिक्षा विभाग, प्रशासन और समाज – सभी मिलकर इस मुद्दे को गंभीरता से लें।
शिक्षकों का युक्तियुक्तकरण प्राथमिकता बने।
 • रिक्त पदों की शीघ्र भर्ती हो।
 • ग्रामीण शिक्षा को ‘दूसरी श्रेणी’ का दर्जा देना बंद किया जाए।
 • शिक्षा को केवल नीति नहीं, प्राथमिकता बनाया जाए।

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