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September 10, 2025 3:50 pm

CG:गरियाबंद शिक्षा पर ग्रहण: बच्चे तरस रहे ज्ञान को, शिक्षक सजा रहे अफसरों की मेज़!” स्कूलों से नदारद शिक्षक, गरियाबंद के कार्यालयों में अफसरों की तरह डोल रहे! 

CG:गरियाबंद शिक्षा पर ग्रहण: बच्चे तरस रहे ज्ञान को, शिक्षक सजा रहे अफसरों की मेज़!”

स्कूलों से नदारद शिक्षक, गरियाबंद के कार्यालयों में अफसरों की तरह डोल रहे! 

गरियाबंद। छत्तीसगढ़ के गरियाबंद में शिक्षा विभाग का एक बड़ा मामला सामने आ रहा है एक ओर मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय प्रदेश की शिक्षा व्यवस्था को सुदृढ़ और गुणवत्तापूर्ण बनाने में जुटे हैं, वहीं दूसरी ओर गरियाबंद जिले में उनकी इस मुहिम को उनके ही विभाग के कुछ शिक्षक पलीता लगा रहे हैं। मुख्यमंत्री स्वयं शिक्षा विभाग की कमान संभालते हुए ‘गुणवत्ता वर्ष’ के तहत स्कूलों में शिक्षा स्तर सुधारने के लिए योजनाएं बना रहे हैं, लेकिन ज़मीनी हकीकत इससे कोसों दूर है।

गरियाबंद जिले के स्कूलों में पढ़ाने वाले कई शिक्षक अपने मूल कर्तव्यों को छोड़ जिला कार्यालयों की शोभा बन गए हैं। जिन हाथों में बच्चों के भविष्य को संवारने की जिम्मेदारी होनी चाहिए, वे हाथ फाइलें उठाए कलेक्टर और डीईओ दफ्तरों में अफसरों के दायें-बायें घूमते नजर आ रहे हैं। कुछ तो ऐसे भी हैं जिन्होंने वर्षों से चॉक और ब्लैकबोर्ड को देखा तक नहीं।

शिक्षकों के अफसर बनने की ये कैसी होड़?

सरकार ने शिक्षा में सुधार के उद्देश्य से शिक्षकों का युक्तियुक्तकरण किया, लेकिन गरियाबंद में इसका लाभ उल्टा उठा लिया गया। यहां पर दर्जनों शिक्षक अपने पदस्थापन स्कूलों से गायब होकर वर्षों से कार्यालयीन कार्यों में लगे हुए हैं। उनका असली काम—बच्चों को पढ़ाना—धूल खा रहा है।

 नियमों की खुलेआम धज्जियां:- महेश राम पटेल, व्याख्याता, हाईस्कूल दर्रीपारा – वर्तमान में प्रभारी बीईओ, मैनपुर। सुप्रीम कोर्ट और शासन ने स्पष्ट किया है कि व्याख्याताओं को बीईओ नहीं बनाया जा सकता। फिर भी नियमों की अनदेखी करते हुए उन्हें बीईओ की कुर्सी पर बैठा दिया गया है। यह न सिर्फ अवैध है, बल्कि शिक्षा व्यवस्था के साथ बड़ा खिलवाड़ भी है।

बुद्धविलास सिंह, व्याख्याता, हाईस्कूल छुरा –

फिलहाल सहायक संचालक, समग्र शिक्षा माध्यमिक, कलेक्ट्रेट गरियाबंद। चुनाव के दौरान डीईओ के फर्जी हस्ताक्षर प्रकरण में इनके खिलाफ शिकायत दर्ज हुई थी, पर कार्यवाही के नाम पर शून्य। वर्षों से फाइलों में उलझे बैठे हैं, जबकि कक्षा की ओर मुड़कर देखना भी शायद भूल चुके हैं।

श्याम चंद्राकर, व्याख्याता, संस्कृत, हाईस्कूल नागाबूढ़ा – अब सहायक सांख्यिकी अधिकारी, जिला शिक्षा कार्यालय। बिना किसी वैध योग्यता के सांख्यिकी पद पर पदस्थ हैं। खेलगढ़ भ्रष्टाचार मामले में इनका नाम पहले से ही चर्चित है और विभागीय जांच जारी है। फिर भी कार्यालय में डटे हुए हैं।

मनोज केला, प्रधानपाठक – आजकल समग्र शिक्षा कार्यालय में निर्माण फाइलों के विशेषज्ञ बन बैठे हैं। स्कूल में बच्चों को पढ़ाना तो जैसे उनकी ड्यूटी रही ही नहीं।

भूपेन्द्र कुमार सोनी, प्रधानपाठक – वर्षों से स्कूल से गायब, समग्र शिक्षा कार्यालय में लेखापाल बनकर सेवा दे रहे हैं। यह कैसी गुणवत्ता लाएंगे शिक्षा में?

विल्सन पी थामसन, शिक्षक, ब्लॉक छुरा – स्कूल में उपस्थिति का रिकॉर्ड देखने पर वर्षों से शून्य। समग्र शिक्षा कार्यालय में अटैच होकर शिक्षक की बजाय स्थायी बाबू का रोल निभा रहे हैं।

प्रशासन की चुप्पी भी सवालों के घेरे में:- 

गरियाबंद जिला में इन सभी नियुक्तियों और पदस्थापन को देखकर सवाल उठता है कि प्रशासन आंख मूंदे क्यों बैठा है? क्या सरकार की ‘गुणवत्ता वर्ष’ की घोषणा सिर्फ कागजों तक ही सीमित रहेगी? क्या ज़िला शिक्षा अधिकारी को इस व्यवस्था की जानकारी नहीं? या फिर सब कुछ जानबूझकर अनदेखा किया जा रहा है?

कक्षा में शिक्षक नहीं, फिर कैसी शिक्षा गुणवत्ता?

गरियाबंद जिले के स्कूलों में पहले से ही शिक्षकों की भारी कमी है। कई ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षक ना होने के कारण बच्चों की पढ़ाई प्रभावित हो रही है। दूसरी ओर, योग्य और प्रशिक्षित शिक्षक कार्यालयों में बैठकर अफसरों की चाटुकारिता में लगे हुए हैं।

क्या मुख्यमंत्री जी को नहीं जानना चाहिए कि जिन योजनाओं की वे स्वयं निगरानी कर रहे हैं, उनका जमीन पर कितना असर है? क्या शिक्षा विभाग को यह नहीं देखना चाहिए कि शिक्षकों का अटैचमेंट नियमों के अनुरूप है या नहीं?

शिक्षा विभाग में घर बैठे वेतन का खेल:- ऐसे कई शिक्षक हैं जो बिना स्कूल जाए वर्षों से वेतन ले रहे हैं। न तो उनके कार्य की कोई मॉनिटरिंग होती है और न ही उनकी अनुपस्थिति पर कोई कार्रवाई। यह सीधे तौर पर शासन के पैसे और बच्चों के भविष्य दोनों के साथ धोखा है।

समाप्ति नहीं चेतावनी है यह रिपोर्ट:- यह रिपोर्ट किसी व्यक्ति विशेष को निशाना नहीं बनाती, बल्कि उस विकृति की ओर इशारा करती है जो शिक्षा के मंदिरों में धीरे-धीरे फैलती जा रही है। मुख्यमंत्री की मंशा और योजनाएं तभी सार्थक होंगी जब ज़मीनी स्तर पर शिक्षक स्कूलों में होंगे, न कि कार्यालयों में।

क्या गरियाबंद जिला शिक्षा अधिकारी संज्ञान नहीं लेना चाहतें है या जानबूझकर नियमों का उल्लंघन करने वाले शिक्षकों को संरक्षण दे रहे है ?

सवाल ये है कि गरियाबंद में सलंग्न बैठे शिक्षकों की पकड़ इतने ऊपर तक है कि सिस्टम उनके खिलाफ कुछ नहीं कर पा रहा है ?अब देखना यह है कि गरियाबंद जिले में नये  नवेले जिला कलेक्टर महोदय कितना संज्ञान लेते है

ऐसे शिक्षकों को तत्काल स्कूलों में भेजा जाए और नियमों के विरुद्ध पदस्थ अफसरनुमा शिक्षकों के खिलाफ सख्त कार्रवाई हो। वरना ‘गुणवत्ता वर्ष’ एक और दिखावटी अभियान बनकर रह जाएगा।

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