“महासमुंद कृषि विभाग में अटैचमेंट बना भूचाल: ‘जितेंद्र पटेल’ पर अधिकारियों की कृपा को लेकर सभी ग्रामीण कृषि विस्तार अधिकारी हड़ताल पर!”
उप संचालक कार्यालय के बाहर ‘संघर्ष’ का बिगुल, मांग पूरी न होने तक जारी रहेगा आंदोलन,,,,
Mahasamund/महासमुंद जिले के कृषि विभाग में आज उस समय हड़कंप मच गया जब जिले में पदस्थ सभी ग्रामीण कृषि विस्तार अधिकारियों ने एकजुट होकर अनिश्चितकालीन हड़ताल पर जाने की घोषणा कर दी। यह हड़ताल किसी सामान्य मांग को लेकर नहीं, बल्कि विभाग के ही एक अधिकारी जितेंद्र पटेल के कथित अभद्र व्यवहार और भ्रामक जानकारी के खिलाफ बगावत के रूप में शुरू हुई है।
कृषि कार्यालय के बाहर सुबह से ही सैकड़ों की संख्या में कृषि विस्तार अधिकारी तख्तियां और बैनर लेकर पहुंचे। इन सभी ने छत्तीसगढ़ कृषि स्नातक शासकीय कृषि अधिकारी संघ के बैनर तले सरकार और विभाग के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। उनके नारों से पूरा परिसर गूंज उठा —
“हम पर अत्याचार अब नहीं सहेंगे!”
“जितेंद्र पटेल को हटाओ — मानसिक उत्पीड़न बंद कराओ!”
क्या है पूरा मामला!
हड़ताल पर उतरे ग्रामीण कृषि विस्तार अधिकारियों ने उप संचालक कृषि को सौंपे ज्ञापन में गंभीर आरोप लगाए हैं। उनके मुताबिक, जितेंद्र पटेल जो विगत 12 वर्षों से ग्रामीण कृषि विस्तार अधिकारी के रूप में उप संचालक कृषि कार्यालय महासमुंद में पदस्थ हैं,जबकि उनकी मूल पदस्थापना पिथौरा में है लेकिन उच्च अधिकारियों की कृपा दृष्टि से वह महासमुंद में उप संचालक जिला कार्यालय में चिपक कर बैठे हुएं है उनके द्वारा लबे समय से मैदानी कर्मचारियों के साथ अभद्र व्यवहार, भ्रामक जानकारी फैलाने और वरिष्ठ अधिकारियों का हवाला देकर दबाव बनाने का काम कर रहे हैं।
कर्मचारियों का कहना है कि अटैचमेंट में बैठे पटेल का रवैया न केवल अपमानजनक है, बल्कि इससे पूरे विभाग का कार्य वातावरण भी बिगड़ चुका है। कई कर्मचारियों ने पहले भी इसकी लिखित शिकायतें की थीं, लेकिन विभागीय कार्रवाई के नाम पर अब तक सिर्फ आश्वासन ही मिला।
“मानसिक रूप से परेशान किया जा रहा है” — संघ!
छत्तीसगढ़ कृषि स्नातक शासकीय कृषि अधिकारी संघ के जिलाध्यक्ष ने प्रेस को बताया,
“हमने कई बार इस विषय में शिकायत की, लेकिन कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया। जितेंद्र पटेल द्वारा बार-बार कर्मचारियों से अभद्र भाषा में बात करना, काम में बाधा डालना और उप संचालक का नाम लेकर दबाव बनाना अब बर्दाश्त के बाहर हो गया है। हमारे कर्मचारी मानसिक रूप से परेशान हैं। जब तक उन्हें उनके मूल पदस्थापना स्थल पर वापस नहीं भेजा जाता, हम किसी भी कीमत पर काम पर नहीं लौटेंगे।”
उन्होंने साफ कहा कि यह हड़ताल सिर्फ एक व्यक्ति के खिलाफ नहीं, बल्कि “दमनकारी कार्यशैली” के खिलाफ है।
किसान सेवाएं ठप — ग्रामीणों में चिंता बढ़ी!
इस हड़ताल का सीधा असर ग्रामीण अंचलों में किसानों पर पड़ने लगा है। कृषि विस्तार अधिकारी ही खेतों में जाकर फसलों से जुड़ी तकनीकी सलाह, बीज और उर्वरक वितरण, सरकारी योजनाओं की जानकारी तथा कृषि समस्याओं का समाधान करते हैं। हड़ताल शुरू होते ही किसान सेवाएं ठप होने की कगार पर चली जायेगी।
“सरकारी कर्मचारी अगर हड़ताल पर रहेंगे तो किसानों का काम कौन करेगा? 15 नवंबर से धान खरीदी चालू होने वाली है! फसल कटाई का समय नजदीक है और किसानों को बीज, खाद व सलाह की जरूरत रहती है। सरकार को जल्द समाधान निकालना चाहिए।”
प्रशासनिक हलचल तेज!
अब देखना ये होगा कि हड़ताल की खबर मिलते ही जिला प्रशासन एवं कृषि विभाग के उच्च अधिकारियों में क्या हलचल होगी? हालांकि, अब तक किसी भी वरिष्ठ अधिकारी ने आधिकारिक बयान जारी नहीं किया है।
सूत्रों के मुताबिक, विभाग ने इस मसले को लेकर रायपुर मुख्यालय को अवगत करा दिया है। फिलहाल, ‘शांतिपूर्ण समाधान’ की कोशिश की जा रही है, लेकिन कृषि कर्मचारियों का रुख बेहद सख्त बना हुआ है।
एक सूत्रीय मांग पर अडिग कर्मचारी!
संघ ने स्पष्ट किया है कि उनकी हड़ताल किसी लंबी मांग सूची पर आधारित नहीं है, बल्कि सिर्फ एक मांग है —
“जितेंद्र पटेल को उनके मूल पदस्थापना स्थल पर वापस भेजा जाए।”
जिलाध्यक्ष ने कहा,
“हम बातचीत के लिए तैयार हैं, लेकिन किसी भी सूरत में अपनी मांग से पीछे नहीं हटेंगे। यदि सरकार ने इस मुद्दे को गंभीरता से नहीं लिया, तो राज्य स्तर पर भी आंदोलन की रूपरेखा तैयार की जाएगी।”
राज्य स्तर पर गूंज सकता है मामला!
संघ के वरिष्ठ सदस्यों ने संकेत दिया है कि अगर जल्द ही विभाग कोई ठोस निर्णय नहीं लेता, तो इस आंदोलन को राज्यव्यापी हड़ताल में बदला जा सकता है। जिससे छत्तीसगढ़ के सभी जिलों में कृषि सेवाएं प्रभावित होंगी।
इस बीच, स्थानीय प्रशासन भी किसानों की बढ़ती परेशानी को देखते हुए किसी बीच का रास्ता निकालने की कोशिश में है।
क्या होगा आगे?
•विभागीय जांच बैठाने की संभावना।
•बातचीत के लिए मध्यस्थ नियुक्त किया जा सकता है।
•किसानों की समस्या के समाधान के लिए अस्थायी व्यवस्था की जा सकती है।
•यदि मांगें नहीं मानी गईं तो आंदोलन और उग्र हो सकता है।
महासमुंद जिले में यह विवाद अब एक गंभीर विभागीय संकट बन चुका है। एक ओर ग्रामीण किसान फसल के मौसम में सरकारी सेवाओं से वंचित हो रहे हैं, वहीं दूसरी ओर कृषि विभाग के कर्मचारी अपनी मांग पर अडिग हैं। अब देखना होगा कि सरकार इस विवाद को सुलझाने के लिए क्या कदम उठाती है — क्या पटेल पर कार्रवाई होगी या संघर्ष और तेज़ होगा?
“या तो कार्रवाई… या फिर आंदोलन होगा और भी उग्र!” — संघ का ऐलान!