“महासमुंद की पंचायत राजनीति में भूचाल – कार्ययोजना पर छिड़ी जंग, जुगनू चंद्राकर ने भेदभाव का लगाया बड़ा आरोप”!
Mahasamund/महासमुंद जिले की राजनीति में आज अचानक बड़ा विस्फोट हुआ। 15वें वित्त आयोग की वर्ष 2025–26 की कार्ययोजना को लेकर जिला पंचायत कार्यालय में ऐसा तूफ़ान उठा कि सत्ता–प्रशासन की नींव तक हिल गई। जिला पंचायत सदस्य जागेश्वर जुगनू चंद्राकर ने कार्ययोजना को सीधे–सीधे “भेदभावपूर्ण, अलोकतांत्रिक और विकास विरोधी” करार देते हुए प्रशासन पर तीखे सवालों की बौछार कर दी।
अनुदान राशि का असमान बंटवारा – “न्याय के नाम पर अन्याय”!
भारत सरकार ने महासमुंद जिले को 530.18 लाख रुपये का अनुदान प्रदान किया था। नियमों के मुताबिक इसमें से जिला पंचायत को 10 प्रतिशत राशि का विवेकपूर्ण उपयोग करना था। लेकिन चंद्राकर के अनुसार यह राशि किसी तर्कसंगत योजना या निष्पक्ष सोच से नहीं, बल्कि “पक्षपात और भेदभाव” से बांटी गई।चौंकाने वाले आँकड़े खुद बोलते हैं –
•सरायपाली ब्लॉक – 129.40 लाख रुपये,
•बागबाहरा ब्लॉक – 110.18 लाख रुपये,
•पिथौरा ब्लॉक – 108.40 लाख रुपये,
•महासमुंद ब्लॉक – 97 लाख रुपये,
•बसना ब्लॉक – मात्र 85.20 लाख रुपये,
यदि सभी ब्लॉकों को समान राशि दी जाती तो प्रत्येक को लगभग 106.036 लाख रुपये मिलना चाहिए था। लेकिन हकीकत इसके ठीक विपरीत है।
पिथौरा – बड़ा ब्लॉक, बड़ी उपेक्षा!
जुगनू चंद्राकर का सबसे गंभीर आरोप पिथौरा ब्लॉक की अनदेखी पर है। पिथौरा जिले का सबसे बड़ा और पिछड़ा ब्लॉक है, जिसमें 206 ग्राम पंचायतें और 50 प्रतिशत से अधिक आदिवासी आबादी है। विकास के लिए सबसे अधिक जरूरत इस ब्लॉक को थी, लेकिन योजना में इसे अपेक्षित राशि नहीं दी गई। छोटे और अपेक्षाकृत विकसित ब्लॉकों को प्राथमिकता दे दी गई।
चंद्राकर ने सवाल उठाया –
“क्या यह वित्त आयोग की कार्ययोजना है या फिर राजनीतिक सौदेबाज़ी? क्या आदिवासी बहुल और पिछड़े ब्लॉकों को इस तरह से अनदेखा करना लोकतंत्र है? यदि सबको बराबर मिल सकता है तो भेदभाव क्यों?”
अधूरी बैठक, अधूरा निर्णय!
उन्होंने खुलासा किया कि 2 मई 2025 को जिला पंचायत की सामान्य सभा की बैठक बुलाई गई थी, लेकिन उस बैठक में न तो सदस्यों के हिसाब से और न ही ब्लॉकों के हिसाब से कार्ययोजना बनाई गई। बैठक के नाम पर औपचारिकता निभाई गई और निर्णय अधूरा छोड़ दिया गया।
चंद्राकर के शब्दों में –
“बैठक का मकसद विकास योजना तय करना था, लेकिन वहाँ हुआ केवल भेदभाव का खेल। न किसी सदस्य की राय ली गई, न जनता की ज़रूरत पर चर्चा हुई। यह बैठक पंचायत नहीं, बल्कि अन्याय का दस्तावेज़ थी।”
पत्र लिखकर दी चुनौती!
गंभीरता को देखते हुए चंद्राकर ने पंचायत संचालनालय को पत्र लिखकर माँग की है कि –
•2 मई 2025 की बैठक को शून्य घोषित किया जाए।
•वर्ष 2025–26 के लिए नई कार्ययोजना बनाई जाए।
सभी ब्लॉकों और जिला पंचायत सदस्यों को समान अवसर और समान राशि प्रदान की जाए।
उन्होंने चेतावनी दी –
“यदि हमारी आवाज़ को दबाने की कोशिश की गई तो यह आंदोलन गांव से राजधानी तक जाएगा। विकास कार्य जनता का अधिकार है, किसी का दान नहीं।”
राजनीति में हलचल!
जैसे ही यह मामला सामने आया, पूरे महासमुंद जिले की राजनीति गरमा गई। समर्थक जहाँ चंद्राकर की आवाज़ को गरीब–आदिवासी जनता की सच्ची लड़ाई बता रहे हैं, वहीं सत्ता पक्ष इसे “राजनीतिक नाटक” करार दे रहा है। लेकिन जनता के बीच सवाल गूंजने लगे हैं –
• क्या सचमुच कार्ययोजना में भेदभाव हुआ है?
• यदि सबको बराबर राशि मिल सकती थी तो असमान बंटवारा क्यों?
• क्या यह राजनीति विकास से ऊपर हो चुकी है?
विकास या भेदभाव का दस्तावेज़?
महासमुंद के गली–गली, चौपाल–चौक में अब यही चर्चा है कि “कार्ययोजना विकास का साधन बनी या भेदभाव का हथियार?”। गांव का किसान, मज़दूर और आदिवासी यह जानना चाहता है कि आखिर उनके हिस्से की योजना और पैसा कहाँ चला गया।
संघर्ष अभी बाकी!
जिला पंचायत महासमुंद में उठी यह ज्वाला अब शांत होने वाली नहीं दिखती। जुगनू चंद्राकर का आरोप केवल एक व्यक्ति या ब्लॉक का नहीं, बल्कि पूरे जिले की असमान व्यवस्था का आईना है।
यदि प्रशासन ने समय रहते समान वितरण और पारदर्शिता पर ध्यान नहीं दिया तो यह विवाद केवल पंचायत तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि राजधानी रायपुर तक गूंजेगा और सरकार को जवाब देना पड़ेगा।
महासमुंद की राजनीति अब एक मोड़ पर खड़ी है –
या तो यहाँ नई कार्ययोजना बनेगी, या फिर यहाँ भेदभाव की आग से लोकतंत्र की जड़ें हिलेंगी।