महासमुंद धान बोनस घोटाला: कलेक्टर के आदेश की उड़ रही धज्जियाँ – 22 लाख की सरकारी राशि का गबन, जांच ठंडे बस्ते में!
Mahasamund/जिले की धरती पर एक ऐसा भ्रष्टाचार उजागर हुआ है जिसने शासन और प्रशासन की कार्यप्रणाली पर गहरे सवाल खड़े कर दिए हैं।जिसने प्रशासनिक कार्यप्रणाली और शासन व्यवस्था की नींव तक को हिला दिया है। लहंगर उपार्जन केंद्र में किसानों के नाम पर ट्रस्ट और उसके पदाधिकारियों ने करोड़ों की बोनस राशि को फर्जी तरीके से हड़पने का संगठित खेल खेला है। इस खेल में जहां मंदिर ट्रस्ट, समिति प्रभारी और बैंक प्रबंधक,कंप्यूटर ऑपरेटर, पटवारी तक की मिलीभगत सामने आई है, वहीं शासन को सीधा 22 लाख रुपए की वित्तीय क्षति हुई है।
जिलाधीश महासमुंद के आदेश के बावजूद इस प्रकरण को हल्के में लिया जा रहा है। शिकायत क्रमांक 220/शिका/2025 दिनांक 21/07/2025 में विस्तार से दर्ज तथ्यों के अनुसार, लहंगर उपार्जन केंद्र (पंजीयन क्रमांक 868) में वर्ष 2023-24 के दौरान बड़े पैमाने पर धान खरीदी में कूटरचना कर बोनस राशि व्यतिगत खातों में डाली गई।
सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि महासमुंद कलेक्टर द्वारा जांच के लिए जारी आदेश को एक माह से अधिक समय बीत जाने के बाद भी जिम्मेदार जांच अधिकारियों ने ठंडे बस्ते में डाल दिया है। जबकि नियम यह था कि 7 दिनों के भीतर जांच पूरी कर रिपोर्ट प्रस्तुत की जानी चाहिए थी।लेकिन आज दिवस तक जांच ठंडे बस्ते में जाती दिख रही है।
घोटाले का चेहरा – लहंगर उपार्जन केंद्र!
वर्ष 2023-24 की धान खरीदी में लहंगर उपार्जन केंद्र (पंजीयन क्रमांक 868) से जुड़े दस्तावेजों ने जो तस्वीर सामने रखी, वह हैरान करने वाली है।
1. गंधेश्वरनाथ श्री महादेव मंदिर सिरपुर (खसरा न. 462, रकबा 8.2400)खरीदी राशि 2,39,887.20,
भुगतान: दाऊलाल चंद्राकर के खाते में दाऊलाल चंद्राकर वर्तमान गंधेश्वर मंदिर ट्रस्ट सिरपुर के अध्यक्ष भी है!
नियम: राशि मंदिर ट्रस्ट के खाते में जानी चाहिए थी।यहां बोनस सीधे व्यक्तिगत खाते में डालकर शासन को धोखा दिया गया।
2. बेनुरम बेलाल उर्फ लक्ष्मण खड़सा (खसरा नं.110/5, रकबा 0.1700) खरीदी राशि: ₹2,61,697/-
भुगतान: सरस्वती/रमेश के खाते में जबकि किसान स्वयं भूमि स्वामी था। बोनस फर्जी तरीके से हड़प लिया गया।
3. कनक, डेहरा, फेहरा, कार्तिक और अन्य खड़सा (खसरा नं.224, 537, 541 आदि)खरीदी राशि: ₹1,62,309/-
भुगतान: हेमंत चंद्राकर दौलत के खाते में भूमि स्वामी अलग, भुगतान किसी और के खाते में!
4. प्रभु गढ़सिवनी (खसरा नं.2778/2, 3552/2, 4220, 4295/2, 4296) खरीदी राशि:59,605/-
भुगतान: नवीन कुमार/दौलत के खाते में!
सीधे-सीधे नियम तोड़कर लाभ उठाया गया।
5. गंधेश्वरनाथ मंदिर ट्रस्ट सिरपुर (खसरा नं.195, 199, 225 आदि, रकबा 27.57)भुगतान: 10,00,000/-
लाभार्थी: तोषण कुमार सेन/खोर बहराराम सेन खड़सा!मात्र 0.22 रकबा जमीन दर्ज थी, लेकिन पूरे ट्रस्ट की जमीन पर बोनस हड़प लिया गया।
6. राधाकृष्णा मंदिर सिरपुर (खसरा नं. 103, 137 139 आदि, रकबा 9.1900) खरीदी राशि: 4,31, 723.60/-
भुगतान: रामेश्वर वैष्णव पिता माधो दास सिरपुर के खाते में! जबकि यह भूमि मंदिर ट्रस्ट की थी। बोनस का दुरुपयोग हुआ।
“22 लाख तो सिर्फ शुरुआत है… 5 साल का हिसाब खुला तो करोड़ों का घोटाला उजागर होगा!”
शिकायतकर्ता का कहना है कि यह सिर्फ वर्ष 2023-24 का आंकड़ा है। यदि बीते 5 वर्षों की बोनस राशि और टोकन नंबरों की गहन जांच की जाए तो करोड़ों रुपए के गबन का राजफाश होगा।
नियमों के अनुसार –
•ट्रस्ट, स्कूल विकास समितियाँ, निजी संस्थान और सरकारी महाविद्यालय बोनस के दायरे में नहीं आते।
•लेकिन, लहंगर समिति प्रभारी, कंप्यूटर ऑपरेटर और बैंक अधिकारियों की सांठगांठ से ट्रस्ट की जमीनों पर बोनस राशि व्यक्तिगत खातों में डलवाई गई।
•यह सीधा-सीधा भ्रष्टाचार और आपराधिक कूटरचना (फर्जीवाड़ा) का मामला है।
“जिलाधीश का आदेश ठंडे बस्ते में क्यों?”
सबसे बड़ा सवाल यही है कि जब शिकायत कलेक्टर महासमुंद और संभागीय उपायुक्त तक पहुँची, तो भी कार्रवाई क्यों नहीं हुई?
•क्या जांच अधिकारी इस मामले को दबाने में लगे हैं?
•क्या किसी राजनीतिक संरक्षण के कारण जांच को हल्के में लिया जा रहा है?
•क्या यह ‘बड़ा घोटाला’ सिर्फ छोटे कर्मचारियों तक सीमित रहेगा या बड़े नाम भी सामने आएंगे?
जिलाधीश के आदेश के बावजूद जांच की गति शून्य है। यह स्थिति सवाल खड़े करती है कि शासन की 22 लाख रुपए की राशि का नुकसान आखिर किसकी जिम्मेदारी है?
“शिकायत में स्पष्ट मांगें”:शिकायत पत्र में साफ लिखा गया है कि –
•जिले स्तर पर एक संयुक्त विशेष टीम गठित की जाए, जिसमें उपायुक्त सहकारिता, मार्फेड अधिकारी (DMO), राजस्व अधिकारी और नोडल अधिकारी शामिल हों।
•विगत 5 वर्षों की बोनस भुगतान प्रक्रिया की जांच की जाए।
•सभी संदिग्ध खातों और टोकन नंबरों की सूची तैयार कर राशि की वसूली की जाए।
•दोषियों पर एफआईआर दर्ज कर आपराधिक कार्रवाई की जाए।
“कानूनी रूप से मामला कितना गंभीर?”कानून विशेषज्ञों का मानना है कि –
•यह प्रकरण धोखाधड़ी,कूटरचना जालसाजी, सरकारी धन का गबन के तहत आता है।
•यह सिर्फ आर्थिक अपराध नहीं बल्कि शासन के विश्वासघात की श्रेणी में भी आता है।
“सिरपुर पर्यटन नगरी में चर्चा का विषय”!
लहंगर उपार्जन केंद्र के आसपास के गांवों में यह मामला अब जन-चर्चा का विषय बन चुका है।कई किसान कहते हैं – “हम लोग टोकन कटवाने के लिए लाइन में खड़े रहते हैं और बोनस के लिए महीनों तक चक्कर लगाते हैं। लेकिन बड़े लोग ट्रस्ट की जमीन के नाम पर लाखों रुपए बोनस हड़प जाते हैं।”
वहीं, कुछ ग्रामीणों का आरोप है कि यह घोटाला कई सालों से चल रहा है और स्थानीय अधिकारी आँख मूंदे बैठे हैं।
“अब आगे क्या?”यदि इस मामले की जांच ईमानदारी से होती है तो –
•22 लाख का घोटाला सिर्फ एक झलक साबित होगा।
•संभव है कि करोड़ों रुपए का बोनस घोटाला सामने आए।
•दोषी अधिकारियों और बैंक कर्मचारियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई होगी।
लेकिन अगर जांच टालमटोल का शिकार हुई, तो यह प्रकरण भी प्रदेश के अन्य घोटालों की तरह फाइलों में दब जाएगा और शासन को करोड़ों का नुकसान उठाना पड़ेगा।
महासमुंद जिले का यह मामला सिर्फ 22 लाख रुपए के गबन का नहीं है। यह प्रशासन की कार्यप्रणाली, भ्रष्टाचार की गहराई और शासन आदेशों की अनदेखी का जीता-जागता उदाहरण है।अब सवाल यही है कि –
• क्या कलेक्टर महासमुंद और संभागीय उपायुक्त इस पर सख्त कदम उठाएंगे?
•या फिर यह मामला भी “जांच जारी है” कहकर ठंडे बस्ते में डाल दिया जाएगा?
जनता की निगाहें अब सीधे प्रशासन पर टिकी हैं।


