शिक्षा या तमाशा?” — सरकारी स्कूल में ‘दामाद मास्टर’ का खेल, तीन साल से बच्चों की किस्मत से हो रहा मज़ाक!
Bilaspur/बिलासपुर ज़िले के कोटा ब्लॉक के आमागार गांव से एक ऐसा चौंकाने वाला मामला सामने आया है, जिसने छत्तीसगढ़ की सरकारी शिक्षा व्यवस्था की चूलें हिला दी हैं। आमागार प्राथमिक विद्यालय में तीन साल से एक अयोग्य और कथित शराबी व्यक्ति बच्चों को पढ़ा रहा है — और वह कोई शिक्षक नहीं, बल्कि स्कूल में पदस्थ शिक्षक शंकर सिंह कंवर का दामाद है!
असल में सरकारी शिक्षक शंकर सिंह कंवर लकवे से ग्रस्त हैं और ड्यूटी पर नहीं आ सकते। ऐसे में शिक्षा विभाग ने कोई वैकल्पिक शिक्षक नहीं भेजा, बल्कि दामाद साहब ने खुद को स्कूल का “मुख्य मास्टर” बना लिया — और तीन वर्षों से न केवल स्कूल जा रहे हैं, बल्कि बच्चों को पढ़ाने का अभिनय भी कर रहे हैं।
जब शिक्षा बनी तमाशा, और मास्टर बना ‘घर का दामाद’!
इस पूरे घटनाक्रम ने शिक्षा के मंदिर को एक पारिवारिक ड्रामे का मंच बना दिया है।
ग्रामीणों की मानें तो:
• दामाद अक्सर नशे की हालत में स्कूल पहुंचता है।
• बच्चों की पढ़ाई तो छोड़िए, सही से खड़ा भी नहीं हो पाता।
• स्कूल में अनुशासन और पढ़ाई का माहौल खत्म हो गया है।
एक अभिभावक का बयान:
“हमारे बच्चों को पढ़ाने के लिए कोई योग्य शिक्षक नहीं है। दामाद जी बस स्कूल आकर बैठ जाते हैं, कभी-कभी ऊंघते रहते हैं। उन्हें पढ़ाने का कोई अनुभव नहीं है।”
शिक्षा विभाग की चुप्पी: ‘आकर देखता हूं’, कहकर बीईओ ने झाड़ा पल्ला!
जब मामला ब्लॉक शिक्षा अधिकारी (बीईओ) के पास पहुंचा, तो उम्मीद थी कि त्वरित कार्रवाई होगी। लेकिन बीईओ ने केवल इतना कह कर बात टाल दी कि –
“आकर देखता हूं।”
• अब सवाल यह उठता है कि तीन साल तक अधिकारी क्या कर रहे थे?
• क्या स्कूलों की जांच केवल कागजों में ही होती है?
• क्या किसी को यह दिख नहीं रहा कि वहां पढ़ाई की जगह नौटंकी चल रही है?
ग्रामीणों का फूटा ग़ुस्सा: “हमारे बच्चों का भविष्य मत बर्बाद करो!”
गांववालों और अभिभावकों ने एक सुर में शिक्षा विभाग के खिलाफ आवाज़ उठाई है।
कुछ तीखे आरोप:
• “शिकायत करने पर विभाग नोटिस भेजकर औपचारिकता पूरी कर देता है।”
• “ज्यादातर सरकारी शिक्षक अपने बच्चों को निजी स्कूलों में पढ़ाते हैं। खुद को सरकारी स्कूल पर भरोसा नहीं।”
• “सरकार का दावा है कि शिक्षा में सुधार हो रहा है, लेकिन ज़मीनी हकीकत कुछ और ही कहती है।”
तीन साल की चुप्पी… और अब सवालों की बौछार!
•क्या बिना योग्यता और नियुक्ति के कोई स्कूल में पढ़ा सकता है?
•क्या शिक्षा विभाग को यह मालूम नहीं था कि शिक्षक की जगह कौन पढ़ा रहा है?
•बीईओ की निष्क्रियता पर कार्रवाई कब होगी?
•क्या बच्चों की ज़िंदगी इसी तरह मज़ाक बनती रहेगी?
मासूम बचपन के साथ मज़ाक: पढ़ाई नहीं, धोखा!आमागार गांव के बच्चे हर दिन स्कूल आते हैं इस उम्मीद में कि आज कुछ नया सीखेंगे, लेकिन उन्हें जो मिलता है वो है अराजकता, अनपढ़ता और असंवेदनशील व्यवस्था।देश में जहाँ एक ओर राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) लागू कर गुणवत्ता सुधार की बात हो रही है, वहीं ज़मीनी हकीकत कुछ और ही कहानी बयां करती है।
फर्जी शिक्षक दामाद का अब क्या होगा ?
• ग्रामीणों ने इस बार सामूहिक रूप से कलेक्टर से शिकायत करने की ठानी है।
• शिक्षा विभाग से तत्काल निष्पक्ष जांच और वैकल्पिक शिक्षक की नियुक्ति की मांग हो रही है।
• ज़िला शिक्षा अधिकारी (DEO) और BEO की भूमिका पर भी सवाल उठने लगे हैं।
“दामादजी को छुट्टी दो, असली शिक्षक भेजो!”
गांव के लोग अब चुप नहीं बैठेंगे। वे सवाल कर रहे हैं, विरोध कर रहे हैं, और इस बार जवाब मांग रहे हैं।
शिक्षा केवल अधिकार नहीं, बच्चों का भविष्य है — और उसे किसी दामाद की शराबी उपस्थिति की भेंट नहीं चढ़ने दिया जाएगा।
यह कोई फिल्म नहीं, छत्तीसगढ़ की शिक्षा व्यवस्था की कड़वी सच्चाई है।
अब देखना यह है कि यह नाटक कब खत्म होगा, और असली शिक्षक कब मंच संभालेगा?