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September 10, 2025 6:18 pm

कोरोना योद्धाओं को रैली तक की इजाजत नहीं, क्या ‘स्वास्थ्य मिशन’ अब ‘दमन मिशन’ है?”

कोरोना योद्धाओं को रैली तक की इजाजत नहीं, क्या ‘स्वास्थ्य मिशन’ अब ‘दमन मिशन’ है?”

मैदान का गेट बंद कर अस्थायी जेल बनाकर रोके गए एनएचएम कर्मचारी।

छत्तीसगढ़ की राजनीति और स्वास्थ्य सेवाओं में आज भूचाल सा माहौल है। राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन ()(एनएचएम) के 16,000 से अधिक कर्मचारी, जिनमें रायगढ़ जिले के 550 से ज्यादा स्वास्थ्यकर्मी भी शामिल हैं, अपनी 10 सूत्रीय मांगों के समर्थन में अनिश्चितकालीन हड़ताल पर डटे हैं। लेकिन सवाल यह है कि क्या यह आंदोलन कर्मचारियों का लोकतांत्रिक अधिकार है, या फिर सरकार की नजर में यह अपराध?

पूर्व सूचना देने के बावजूद प्रशासन ने रैली की अनुमति नहीं दी और रामलीला मैदान का गेट बंद कर कर्मचारियों को अंदर ही रोक दिया। मानो मैदान अब प्रदर्शन स्थल नहीं, बल्कि अस्थायी जेल बन गया हो। ये वही कर्मचारी हैं, जिन्होंने कोरोना काल में अपनी जान जोखिम में डालकर राज्य की जनता को बचाया, पर आज उन्हीं को लोकतांत्रिक आवाज उठाने पर कैद कर दिया गया।

स्वास्थ्य सेवाएं पूरी तरह ठप – हड़ताल का असर पूरे प्रदेश पर साफ दिख रहा है।

• ओपीडी सेवाएं बंद,

• इमरजेंसी कक्षों में ताले,

• संस्थागत प्रसव ठप,

• नवजात शिशु वार्ड और पोषण आहार केंद्र खाली

• टीकाकरण, टीबी, मलेरिया, कुष्ठ रोग जांच पूरी तरह बंद,

• ब्लड-शुगर टेस्ट, ट्रूनाट, सीबीनाट और बलगम जांच रुकी,

• नेत्र जांच और स्कूल-आंगनबाड़ी स्वास्थ्य परीक्षण ठप,

ऑनलाइन डेटा एंट्री बंद!

कई ग्रामीण और शहरी स्वास्थ्य केंद्रों में तालाबंदी की स्थिति है। मरीज बेबस होकर लौट रहे हैं। सूत्रों के मुताबिक अब तक इलाज न मिलने से 28 लोगों की मौत हो चुकी है। सवाल उठता है – क्या सरकार इन मौतों की जिम्मेदारी लेगी?

रैली पर रोक, लोकतंत्र पर सवाल!

आज कर्मचारियों ने काले कपड़े और प्रतीक चिन्ह पहनकर विशाल रैली निकालने की कोशिश की। लेकिन जिला भाजपा कार्यालय, महात्मा गांधी की प्रतिमा पर माल्यार्पण और विधायक निवास तक ज्ञापन देने की अनुमति प्रशासन ने नहीं दी। क्या यह लोकतंत्र है, जहां अपनी आवाज उठाने तक पर पाबंदी हो?

शहीद कर्नल विप्लव त्रिपाठी मिनी स्टेडियम में 550 से अधिक कर्मचारी “हमारी भूल – कमल का फूल” जैसे नारों से सरकार को उसकी वादाखिलाफी याद दिला रहे हैं।

वादे हकीकत से कोसों दूर!

मुख्यमंत्री, उपमुख्यमंत्री, स्वास्थ्य मंत्री और वित्त मंत्री ने विधानसभा चुनाव से पहले वादा किया था कि सत्ता में आने के 100 दिनों के भीतर नियमितीकरण के लिए कमेटी बनेगी। लेकिन हकीकत यह है कि 20 महीने गुजर चुके हैं और 160 से अधिक ज्ञापन सौंपे जा चुके हैं, पर कार्रवाई नाम मात्र की भी नहीं हुई।

क्या यह वादे सिर्फ वोट की फसल काटने के लिए किए गए थे? या अब सत्ता की कुर्सी पर बैठते ही कर्मचारियों की आवाज सरकार के लिए बोझ बन गई है?

संघ के नेताओं का आरोप!

प्रदेश अध्यक्ष डॉ. अमित कुमार मिरी, डॉ. रवि शंकर दीक्षित और प्रवक्ता पूरन दास ने कहा,
“मुख्यमंत्री और स्वास्थ्य मंत्री से कई दौर की मुलाकात के बावजूद आदेशों को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया। कर्मचारियों को मजबूरन आंदोलन का रास्ता चुनना पड़ा। क्या सरकार मानती है कि 20 साल का योगदान सिर्फ तालियों तक सीमित था?”

जिला अध्यक्ष शकुंतला एक्का ने चेतावनी देते हुए कहा,!
“यदि सरकार ने जल्द ठोस कदम नहीं उठाए और आंदोलन दबाने की कोशिश की, तो इसे और उग्र किया जाएगा। 6,239 स्वास्थ्य संस्थाएं प्रभावित हैं। सरकार बताए कि क्या उसकी योजना स्वास्थ्य सेवाओं को पूरी तरह ठप करना है?”

10 सूत्रीय मांगें (जिन्हें सरकार ने नजरअंदाज किया):

•संविलियन/स्थायीकरण – 20 साल से अस्थायी रोजगार क्यों?

•पब्लिक हेल्थ कैडर की स्थापना – स्वास्थ्य कैडर की जरूरत सरकार को क्यों नहीं?

•ग्रेड-पे का निर्धारण – वेतन वृद्धि का वादा कहां गया?

•कार्य मूल्यांकन में पारदर्शिता – बिना जांच टर्मिनेशन की धमकी क्यों?

•लंबित 27% वेतन वृद्धि – यह राशि कहां गई?

•नियमित भर्ती में सीट आरक्षण – एनएचएम कर्मचारी हमेशा अस्थायी रहेंगे?

•अनुकम्पा नियुक्ति – शहीदों के परिवारों का सम्मान कब होगा?

•मेडिकल और अन्य अवकाश – जिला स्तर पर अवकाश क्यों नहीं दिया जाता?

•स्थानांतरण नीति – केंद्रीकृत नीति का कर्मचारियों को क्या फायदा?

•10 लाख कैशलेस चिकित्सा बीमा – कोरोना योद्धाओं को बीमा क्यों नहीं?

सरकार पर बढ़ता दबाव!

धरना स्थल पर कर्मचारियों का जोश लगातार बढ़ रहा है। “हम हैं असली कोरोना योद्धा” और “वादाखिलाफी नहीं चलेगी” जैसे नारे वातावरण को और उग्र बना रहे हैं।

संघ ने साफ कर दिया है कि जब तक लिखित आश्वासन नहीं मिलेगा, आंदोलन खत्म नहीं होगा। और यदि सरकार ने दमनकारी रवैया जारी रखा, तो आंदोलन पूरे प्रदेश में और ज्यादा उग्र हो सकता है।

क्या होगा आगे?

प्रदेश की जनता परेशान है, मरीज इलाज के अभाव में दम तोड़ रहे हैं, और सरकार खामोश है। सवाल यही है –
क्या यह राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन है या राष्ट्रीय शोषण मिशन?
क्या ये कर्मचारी फिर से जनता की सेवा करेंगे या सरकार उन्हें आंदोलन की राह पर और धकेल देगी?

फैसला अब सरकार के हाथों में है। या तो वह वादे निभाकर “स्वास्थ्य मिशन” को सम्मान दिलाएगी, या फिर अपनी चुप्पी से इसे “दमन मिशन” में तब्दील कर देगी।

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