“प्राचार्य पदोन्नति में अन्याय की गूंज: सड़कों से सचिवालय तक संघर्ष की ललकार”!
Raipur/छत्तीसगढ़ का शिक्षा जगत एक बार फिर उबाल पर है। 12 वर्षों से लंबित प्राचार्य पदोन्नति का मामला अब निर्णायक मोड़ पर पहुँच चुका है। “छत्तीसगढ़ राज्य प्राचार्य पदोन्नति संघर्ष मोर्चा” के प्रदेश संयोजक सतीश प्रकाश सिंह ने प्रदेश सरकार और शिक्षा विभाग को कड़ी चेतावनी देते हुए कहा है कि यदि “टी संवर्ग” के प्राचार्य पदोन्नति काउंसलिंग की विसंगतियों को दूर नहीं किया गया, तो यह संघर्ष और व्यापक रूप लेगा।
“संघर्ष मोर्चा” का बड़ा हमला:
सतीश प्रकाश सिंह ने बताया कि विगत 14 अगस्त 2025 को लोक शिक्षण संचालनालय द्वारा जारी काउंसलिंग के नियम-निर्देशों में गहरी विसंगतियाँ हैं। विशेषकर 2:1:1 के अनुपात में तय की गई काउंसलिंग सूची पर उन्होंने सवाल उठाते हुए कहा –
“प्राचार्य पदोन्नति के मानदण्ड पारदर्शी और निष्पक्ष होने चाहिए। नियमों को तोड़-मरोड़कर चलाने से हजारों शिक्षकों का भविष्य अंधेरे में धकेल दिया जाएगा।”
उन्होंने मांग की कि पहले नियमित व्याख्याताओं, फिर नियमित प्रधान पाठक और उसके बाद एल.बी. संवर्ग के व्याख्याताओं को क्रमवार काउंसलिंग सूची में स्थान दिया जाए।
1355 प्राचार्यों का सवाल- प्रदेश संयोजक सिंह ने शासन से स्पष्ट कहा –
“टी संवर्ग के सभी 1355 पदोन्नत प्राचार्यों को काउंसलिंग में शामिल किया जाए। यही समानता का असली सिद्धांत है। यदि किसी भी पदोन्नत प्राचार्य को बाहर रखा गया तो आंदोलन और तीव्र होगा।”
उन्होंने यह भी रेखांकित किया कि दिव्यांगजन, रिटायरमेंट के करीब पहुंचे शिक्षकों, गंभीर बीमारी से जूझ रहे कार्मिकों और महिला-पुरुष सभी को उनकी परिस्थितियों के अनुसार प्राथमिकता दी जानी चाहिए।
मंत्रालय और संचालनालय में तकरार!
सतीश प्रकाश सिंह के नेतृत्व में प्रतिनिधिमंडल ने महानदी भवन और इंद्रावती भवन में अधिकारियों से मुलाकात की। उन्होंने शिक्षा विभाग के संयुक्त सचिव और अवर सचिव से कहा कि यदि काउंसलिंग के नियम तत्काल संशोधित नहीं किए गए तो स्थिति बिगड़ सकती है।
सिंह ने साफ चेतावनी दी –
“हमारी माँगें केवल शिक्षकों की नहीं, बल्कि प्रदेश की शिक्षा व्यवस्था की आत्मा से जुड़ी हैं। यदि नियम बदले बिना काउंसलिंग की गई, तो यह न सिर्फ हजारों प्राचार्यों के साथ अन्याय होगा, बल्कि पूरे प्रदेश की शिक्षा गुणवत्ता को भी नुकसान पहुँचेगा।”
हाईकोर्ट का साया!
संघर्ष मोर्चा ने यह भी मांग की कि “ई संवर्ग” से जुड़े प्राचार्य पदोन्नति के मामले में हाईकोर्ट के अंतिम फैसले का सम्मान करते हुए तत्काल कार्यवाही की जाए।
सतीश प्रकाश सिंह का कहना है –
“हाईकोर्ट के फैसले का इंतज़ार है। जैसे ही फैसला आए, ‘ई संवर्ग’ की पदोन्नति प्रक्रिया पारदर्शी तरीके से शुरू की जाए। इससे शिक्षा विभाग की साख बचेगी और वर्षों से न्याय की प्रतीक्षा कर रहे शिक्षकों को राहत मिलेगी।”
शिक्षा व्यवस्था पर खतरा!
प्रदेश संयोजक सिंह ने कहा कि प्राचार्यविहीन विद्यालय शिक्षा व्यवस्था को जर्जर कर रहे हैं। पूर्णकालिक प्राचार्य के अभाव में न तो शैक्षणिक गतिविधियाँ सही ढंग से संचालित हो पा रही हैं और न ही विद्यार्थियों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा मिल रही है।
“प्राचार्य स्कूल का कप्तान होता है। बिना कप्तान के शिक्षा का जहाज भटक जाएगा। पदोन्नति के बाद यदि पदस्थापना नहीं हुई, तो इसका खामियाजा लाखों विद्यार्थियों को भुगतना पड़ेगा।”
संघर्ष की चेतावनी!
“छत्तीसगढ़ राज्य प्राचार्य पदोन्नति संघर्ष मोर्चा” ने साफ कहा है कि यदि शासन ने तत्काल पहल नहीं की तो वे आंदोलन की राह पकड़ेंगे।
सिंह ने दो टूक कहा –
“यह संघर्ष अब निर्णायक है। हमारी लड़ाई केवल पदोन्नति की नहीं, बल्कि न्याय, समानता और पारदर्शिता की है। हम तब तक पीछे नहीं हटेंगे, जब तक हर पदोन्नत प्राचार्य को उसका हक नहीं मिल जाता।”
छत्तीसगढ़ का शिक्षा विभाग इस समय संकट और संघर्ष के दोराहे पर खड़ा है। एक ओर हजारों शिक्षक-प्राचार्य हैं, जो न्याय की उम्मीद लगाए बैठे हैं; दूसरी ओर शासन-प्रशासन है, जिसे नियम और अदालत के फैसलों के बीच संतुलन बनाना है।
सवाल बड़ा है –
• क्या 12 सालों से लंबित यह संघर्ष अब अपनी मंज़िल पाएगा?
• क्या 1355 पदोन्नत प्राचार्यों को न्याय मिलेगा?
• या फिर यह आंदोलन आने वाले दिनों में और भड़ककर सड़कों पर उतर जाएगा?
फिलहाल इतना तय है कि “प्राचार्य पदोन्नति संघर्ष” अब केवल शिक्षकों की माँग नहीं, बल्कि छत्तीसगढ़ की शिक्षा व्यवस्था के भविष्य की निर्णायक लड़ाई बन चुका है।