आंगनबाड़ी केंद्रों पर ताले पड़ने की चेतावनी:1 सितंबर से पूरे प्रदेश की आंगनबाड़ियां रहेंगी बंद, अगर 31 अगस्त तक नहीं मानी गईं मांगे!
Raipur/छत्तीसगढ़ में महिला और बाल विकास की रीढ़ मानी जाने वाली आंगनबाड़ी कार्यकर्ता और सहायिकाएं अब आर-पार की लड़ाई के मूड में हैं। “आंगनबाड़ी कार्यकर्ता सहायिका संयुक्त मंच” ने सरकार को सीधी चेतावनी दी है कि अगर उनकी लंबित मांगों और कार्य में आ रही समस्याओं का समाधान 31 अगस्त तक नहीं किया गया, तो 1 सितंबर से पूरे प्रदेश के सभी आंगनबाड़ी केंद्र तालेबंद रहेंगे।
प्रदेशभर की हजारों आंगनबाड़ी कार्यकर्ता और सहायिकाएं पिछले कई महीनों से अपने अधिकारों और समस्याओं को लेकर आवाज उठा रही थीं। आज संयुक्त मंच के बैनर तले बड़ी संख्या में महिलाएं मंत्रालय पहुंचीं और सचिव एवं संचालक के नाम पत्र सौंपकर अपनी मांगें दोहराईं।
संयुक्त मंच की प्रमुख मांगें!
संयुक्त मंच ने साफ किया है कि सरकार द्वारा लागू की गई पोषण ट्रेकर और THR वितरण में फेस कैप्चर प्रणाली कार्यकर्ताओं और सहायिकाओं के लिए सबसे बड़ी परेशानी बन गई है।
फेस कैप्चर और e-KYC –
कार्यकर्ताओं का कहना है कि केंद्र स्तर पर डिजिटल प्रक्रिया लागू कर देने से न केवल हितग्राहियों को दिक्कत हो रही है बल्कि कार्यकर्ताओं के लिए भी यह बेहद जटिल और समय लेने वाला हो गया है। कई जगह तकनीकी गड़बड़ियों और नेटवर्क समस्याओं के कारण बच्चों और माताओं को समय पर लाभ नहीं मिल पाता।
ऑफलाइन प्रक्रिया की मांग –संयुक्त मंच ने मांग रखी है कि सभी कार्य ऑफलाइन तरीके से लिए जाएं ताकि जमीनी स्तर पर आंगनबाड़ी सेवाएं सुचारु रूप से चल सकें।
14 दिन का अल्टीमेटम!
संयुक्त मंच ने साफ कर दिया है कि अब उनके सब्र का बांध टूट चुका है। मंच ने सरकार को 14 दिन का समय दिया है। यदि 31 अगस्त तक कोई ठोस पहल नहीं होती तो 1 सितंबर को राज्यभर की आंगनबाड़ी कार्यकर्ता और सहायिकाएं सामूहिक अवकाश लेकर धरना, रैली और प्रदर्शन करेंगी।
इस दौरान सभी जिला मुख्यालयों में आंगनबाड़ी कर्मी कलेक्टर के माध्यम से माननीय प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री को ज्ञापन सौंपेंगी।
आंदोलन की रणनीति!
• 19 अगस्त से 30 अगस्त –प्रदेशभर की कार्यकर्ता और सहायिकाएं सांसदों, विधायकों और कलेक्टरों से मिलकर ज्ञापन सौंपेंगी।
• 1 सितंबर –सभी जिला मुख्यालयों पर आंगनबाड़ी केंद्र बंद रहेंगे। कार्यकर्ता सामूहिक अवकाश लेकर धरना, सभा, रैली और प्रदर्शन करेंगी।
• 19 सितंबर –रायपुर में एक लाख से अधिक आंगनबाड़ी कार्यकर्ता और सहायिकाएं इकट्ठा होकर प्रांतीय महारैली करेंगी और महिला एवं बाल विकास मंत्रालय का घेराव करेंगी।
इसके बाद भी अगर सरकार टस से मस नहीं हुई तो संयुक्त मंच अनिश्चितकालीन हड़ताल पर जाने से पीछे नहीं हटेगा।
संयुक्त मंच की नेता बोलीं – अब आर-पार की लड़ाई!
संयुक्त मंच की संयोजक मंडल सदस्य सरिता पाठक, रुक्मणी सज्जन, सुधा रात्रे, हेमा भारती, कल्पना चंद, सुलेखा शर्मा और हाजरा निशा खान ने मंच से ऐलान किया कि अब महिलाओं की यह जंग केवल मानदेय या तकनीकी समस्याओं तक सीमित नहीं है, बल्कि यह सम्मान और अस्तित्व की लड़ाई बन चुकी है।
उनका कहना है कि कार्यकर्ता और सहायिकाएं प्रदेश के नौनिहालों और माताओं के स्वास्थ्य व पोषण की रीढ़ हैं। फिर भी सरकार उनकी उपेक्षा कर रही है और उन्हें डिजिटल प्रयोगशाला का मोहरा बना दिया गया है।
सरकार की मुश्किलें बढ़ीं!
विशेषज्ञों का मानना है कि अगर 1 सितंबर से आंगनबाड़ी केंद्र बंद केंद्र हो जाते हैं तो इसका सीधा असर बच्चों और गर्भवती महिलाओं पर पड़ेगा। लाखों परिवारों को पोषण आहार, टीकाकरण और परामर्श सेवाओं से वंचित होना पड़ेगा।
सरकार के लिए यह बड़ा संकट साबित हो सकता है क्योंकि आंगनबाड़ी केंद्र ग्रामीण इलाकों से लेकर शहरी बस्तियों तक पोषण और शिक्षा की सबसे अहम कड़ी हैं।
जनता की राय क्या कहती है?
आंदोलन की गूंज अब गांव-गांव तक सुनाई देने लगी है। हितग्राहियों का कहना है कि अगर सरकार ने समय रहते पहल नहीं की तो बच्चों के भविष्य पर गहरा असर पड़ेगा। वहीं, आम जनता कार्यकर्ताओं के साथ खड़ी दिखाई दे रही है क्योंकि सबको मालूम है कि आंगनबाड़ी ही गरीब और जरूरतमंद परिवारों की सबसे बड़ी मददगार है।
क्या होगा आगे?
अब सबकी निगाहें 31 अगस्त पर टिकी हैं। सवाल यही है कि क्या सरकार आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं की मांगें मानकर स्थिति को संभालेगी या 1 सितंबर से प्रदेश की आंगनबाड़ियां बंद होकर बड़े जनआंदोलन का रूप लेंगी।
एक तरफ लाखों मासूमों का भविष्य दांव पर है, तो दूसरी ओर हजारों कार्यकर्ताओं और सहायिकाओं का सम्मान और हक़। आने वाले दिनों में यह टकराव छत्तीसगढ़ की राजनीति और प्रशासन दोनों के लिए बड़ी चुनौती बन सकता है।
आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं की यह चेतावनी अब केवल आवाज नहीं, बल्कि एक महिला शक्ति का हुंकार है। अगर सरकार ने उनकी पुकार नहीं सुनी तो 1 सितंबर से प्रदेश की गलियों और सड़कों पर यही नारों की गूंज सुनाई देगी—
“हमने ठाना है, हक़ लेकर रहेंगे…!”