तिरंगे का अपमान या राजनीतिक दांव? गरियाबंद में महिला मंडल विवाद के बीच भाजपा पार्षद पर गंभीर आरोप”विवाद ने खोली सियासी बारूद की पेटी”!
Gariyaband/15 अगस्त की सुबह, जब पूरे देश में तिरंगे के सम्मान में सलामी गूंज रही थी, गरियाबंद जिला मुख्यालय के महिला मंडल भवन के बाहर एक दृश्य ने सबको स्तब्ध कर दिया। आरोप है कि वार्ड नंबर 13 की भाजपा पार्षद बिंदु सिन्हा ने ध्वजारोहण के दौरान इतनी जल्दबाज़ी और जोर दिखाया कि राष्ट्रीय ध्वज खंभे से टूटकर सीधा धरती पर जा गिरा।और दिलचस्प बात यह है कि बिंदु सिन्हा एक प्रधान पाठक की पत्नी है जोकि शिक्षित परिवार से है।इनको इस तरह का कृत शोभा नहीं देता।
मौके पर मौजूद प्रत्यक्षदर्शियों का कहना है, “पूरा नज़ारा महज कुछ सेकंड का था, लेकिन झंडे का गिरना हमारे दिल में सालों तक खंजर की तरह चुभेगा।” झंडा गिरने के बाद भी पार्षद कुछ क्षण तक खड़ी रहीं, न तुरंत उठाया और न ही माफी मांगी। इतने में कुछ लोगों ने अपने मोबाइल कैमरे निकालकर तस्वीरें खींच लीं, जो अब सोशल मीडिया पर आग की तरह फैल चुकी हैं।
महिला मंडल भवन की पुरानी दुश्मनी!
गरियाबंद के महिला मंडल भवन को लेकर महीनों से विवाद सुलग रहा है। स्थानीय महिलाओं के दो गुट—एक भाजपा समर्थित, दूसरा विपक्षी—भवन के उपयोग और नेतृत्व को लेकर आमने-सामने हैं। बताया जाता है कि भाजपा के सत्ता में आने के बाद समर्थित महिलाएं भवन पर अपना वर्चस्व बढ़ाने में जुटी हैं। इसी पृष्ठभूमि में 15 अगस्त का माहौल और भी तनावपूर्ण हो गया।
प्रत्यक्षदर्शियों के मुताबिक, पार्षद बिंदु सिन्हा स्कूटी से तेजी से पहुंचीं, और बिना औपचारिक प्रक्रिया के ध्वजारोहण शुरू कर दिया। रस्सी में जोर का झटका दिया जिससे रस्सी टूट गई,और उसी पल तिरंगा खंभे से अलग होकर नीचे गिर पड़ा।जो बड़ा ही निंदनीय है।
कानूनी पेंच में फंस सकता है मामला!
कानूनी जानकार साफ कहते हैं—राष्ट्रीय ध्वज संहिता और राष्ट्रीय गौरव अपमान निवारण अधिनियम 1971 की धाराओं के अनुसार, तिरंगे को भूमि पर रखना या गिराना सीधा अपमान की श्रेणी में आता है।धारा 2(क) और कंडिका 10 व 2.2 में स्पष्ट उल्लेख है कि “झंडा हमेशा ऊंचा और सुरक्षित स्थान पर होना चाहिए, कभी भी धरती या पानी को स्पर्श न करे।”
इस मामले में पार्षद का दावा है—
• “झंडा गिरा नहीं था, बल्कि तैयारी के लिए नीचे रखा गया था।”
• लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि तैयारी में भी तिरंगे को जमीन पर रखना नियम विरुद्ध है।
गरियाबंद की राजनीतिक तापमान चढ़ा!
भाजपा ने देशभर में ‘हर घर तिरंगा’ अभियान को बड़ी धूमधाम से चलाया, लेकिन अपनी ही पार्षद के कथित लापरवाह रवैये ने विपक्ष को सुनहरा मौका दे दिया है। कांग्रेस और अन्य विपक्षी दल इसे “भाजपा का असली चेहरा” बताकर जनता के बीच मुद्दा बनाने की तैयारी में हैं।
स्थानीय कांग्रेस नेता ने कहा—
• “यह केवल तिरंगे का अपमान नहीं, बल्कि उन शहीदों का अपमान है जिन्होंने इस ध्वज के लिए अपना खून बहाया। भाजपा को इस पर तुरंत कार्रवाई करनी चाहिए।”
• भाजपा जिला नेतृत्व फिलहाल बचाव के मूड में है, लेकिन अंदरखाने चर्चा है कि पार्टी नेतृत्व इस विवाद से नाराज है।
सोशल मीडिया में गुस्से का विस्फोट!
जैसे ही तस्वीरें फेसबुक, व्हाट्सएप और एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर पहुंचीं, कमेंट्स की बाढ़ आ गई। कुछ यूजर्स ने इसे “अनजाने में हुई गलती” बताया, लेकिन अधिकांश लोग इसे “अक्षम्य अपराध” मान रहे हैं।
एक वायरल पोस्ट में लिखा है—
“अगर नेताओं को तिरंगे का महत्व नहीं, तो वे लोगों को देशभक्ति का पाठ पढ़ाने का अधिकार खो देते हैं।”
प्रशासन की भूमिका पर सवाल!
अब बड़ा सवाल यही है कि क्या गरियाबंद प्रशासन राष्ट्रीय गौरव अपमान निवारण अधिनियम के तहत कार्रवाई करेगा, या मामला राजनीतिक रस्साकशी में दबा दिया जाएगा?
सूत्रों के मुताबिक, कुछ संगठनों ने जिला प्रशासन को लिखित शिकायत देने की तैयारी कर ली है।
गरियाबंद में मामले का क्या असर है?
• महिला मंडल विवाद और गहराएगा – दोनों गुट अब इसे हथियार बनाकर एक-दूसरे पर और तीखे वार करेंगे।
• राजनीतिक प्रतिष्ठा पर चोट – भाजपा की स्थानीय छवि को नुकसान पहुंच सकता है, खासकर ‘हर घर तिरंगा’ अभियान के बीच।
• कानूनी कार्रवाई की संभावना – अगर प्रशासन ने कड़ी कार्रवाई की, तो यह राज्य स्तर पर भी चर्चा का विषय बन सकता है।
गरियाबंद की गलियों में गूंजता सवाल!
15 अगस्त का दिन देशभक्ति और सम्मान का प्रतीक माना जाता है, लेकिन गरियाबंद में इस दिन एक सवाल हवा में तैर रहा है—
•“क्या नेताओं के लिए राजनीति, तिरंगे से भी ऊपर हो गई है?”
•क्या जिला प्रशासन इतने गंभीर मामले में कोई ठोस कार्यवाही करेगा या चुप्पी साधकर बैठ जायेगा?
तिरंगे की शान में कोई कमी न आने देने का वादा करने वाले नेता अगर खुद नियम तोड़ें, तो यह केवल कानून का नहीं, नैतिकता का भी उल्लंघन है।
गरियाबंद की इस घटना ने न सिर्फ महिला मंडल भवन की दीवारों में पुराना विवाद गहरा दिया है, बल्कि राष्ट्रीय सम्मान पर भी एक बड़ा और कड़वा धब्बा छोड़ दिया है।