“महासमुंद कलेक्टर ऑफिस में टिकट घोटाले का तांडव: 50 का टिकट 100 में, अधिकारी के ‘नियम-कायदे’ ने किसानों को किया बेहाल”
Mahasamund/जिला कलेक्टर कार्यालय के प्रतिलिपि शाखा की नकल शाखा में इन दिनों भ्रष्टाचार और मनमानी का ऐसा खेल चल रहा है, जिसने आम आदमी से लेकर किसान तक की कमर तोड़ दी है। यहाँ 50 रुपये की सरकारी टिकट 100 रुपये में बेची जा रही है, और इस पूरी कहानी के केंद्र में हैं नकल शाखा के प्रभारी अधिकारी, जो सरकारी नियम-कायदों को ताक पर रखकर अपने बनाए “नियम” लागू कर रहे हैं।
मामला महासमुंद के प्रतिलिपि शाखा का है, जहां नकल शाखा पर बैठी योगेश्वरी गोस्वामी द्वारा 50 की टिकट पर 100 रुपए लिया जा रहा है 150 की टिकट पर 200 लिया जा रहा है। उसके बाद किसानों के जमीन से जुड़े दस्तावेज, नकल, खसरा, बी-1 और अन्य जरूरी कागजात की प्रतियां जारी की जाती हैं। सरकारी व्यवस्था के तहत इन दस्तावेजों के लिए तय शुल्क बेहद कम है—उदाहरण के लिए 50 रुपये की टिकट पर आवश्यक प्रक्रिया पूरी होती है। लेकिन यहाँ हालात बिल्कुल अलग हैं। जो व्यक्ति दस्तावेज की नकल लेने जाता है, उससे 50 रुपये के बदले सीधे 100 रुपये वसूले जा रहे हैं।
वकीलों का गुस्सा चरम सीमा पर!
भू -अभिलेख शाखा में आयें वकीलों द्वारा बताया गया कि टिकट में तो अवैध वसूली तो किया जा रहा है और तो और भू -अभिलेख शाखा में अवलोकन के लिए घंटों इतंजार करना पड़ता है घंटों इतंजार के बाद भी दस्तावेजों का बस्ता नहीं लाया जाता या तो स्टाफ कम का बहाना बनाया जाता है स्टाफ भी ऐसा है कि बस्ता लेने जाने के बहने अंदर जाता है और गायब हो जाता है
पहले स्टाफ पर्याप्त था तब हमें कोई समस्या नहीं होती थी अब कुछ दिनों से ऐसी तकलीफ हो रही है कि हम क्या करे अभिलेख शाखा प्रभारी अधिकारी इस विषय में कोई संज्ञान नहीं लेते उनके पास इस संबंध हमने कई बार शिकायत की है फिर भी उनके अपने नियम कानून बताया जाता है सिर्फ वकीलों और पक्षकारों के लिए नियम कानून है दलालों के लिए नियम कानून भी है।वही जिले के सरायपाली, बसना,पिथौरा से आयें वकील द्वारा अवलोकन कर पाने का दर्द सामने आया है बताते है कि 150 किमी से हमारे आते आते ही अवलोकन का समय खत्म हो जाता है या तो किसी कारण अपनी सुविधा से जल्दी पहुंच भी जाओ तो स्टाफ ही नहीं है खड़े रहो घंटों लाईन में!
किसानों की त्रासदी – ‘हम जाएं तो जाएं कहां?’
गांव से आए किसान, जो अपनी जमीन का खसरा या नकल निकालने आते हैं, उन्हें सबसे पहले टिकट खरीदने के नाम पर दोहरी मार झेलनी पड़ती है। एक किसान से बात करने पर बताया, जो बसना ब्लॉक के एक छोटे से गांव से आए थे, ने गुस्से और लाचारी भरे स्वर में कहा –
“भाई साहब, जमीन का मामला कोर्ट में है, इसलिए नकल लेना जरूरी था। पर यहाँ 50 रुपये के टिकट के लिए 100 रुपये देने पड़े। मना किया तो बोले – नहीं लेना है तो जाओ… अब कोर्ट क्या बोलेगा, हम क्या करेंगे?”
ऐसा ही दर्द सरायपाली से आयें किसान द्वारा बताया गया –
“सिर्फ एक कागज के लिए आधा दिन लाइन में खड़े रहे। ऊपर से पैसे भी ज्यादा देने पड़े। हम गरीब लोग क्या करें? सरकारी दफ्तर में शिकायत करें तो वहीं के लोग उल्टा घूरते हैं।”
नकल शाखा का ‘काला नियम’ – अधिकारी का तानाशाही रवैया- जांच में यह बात भी सामने आई है कि नकल शाखा के प्रभारी अधिकारी अपने ‘निजी नियम-कायदे’ चलाते हैं।
•टिकट का दाम तय दर से अधिक,
•आवेदन जमा करने के लिए समय सीमा में मनमानी।
•जरूरी दस्तावेज़ न होने पर अतिरिक्त शुल्क लेकर “व्यवस्था” करना।
•फाइल की जांच और साइन में जानबूझकर देरी।
सूत्र बताते हैं कि यह स्थिति लंबे समय से बनी हुई है, लेकिन शिकायतों के बावजूद कार्रवाई नहीं हो रही। लोग दबी जुबान में कहते हैं कि “ऊपर” तक इस खेल का हिस्सा है, तभी इतने खुलेआम लूट हो रही है।
फरियादी की बेबसी – ‘शिकायत करो तो उल्टा फंसाओ’!
जो भी इस वसूली और मनमानी के खिलाफ आवाज उठाता है, उसे धमकी दी जाती है कि उसका काम महीनों तक अटका दिया जाएगा। कई फरियादी बताते हैं कि शिकायत पत्र देने के बाद उनकी फाइल गायब कर दी गई या उनसे और भी कागजात मांगकर परेशान किया गया।
कलेक्टर कार्यालय में काम करने वाले एक कर्मचारी ने नाम न छापने की शर्त पर कहा –
“साहब, यहाँ टिकट का खेल नया नहीं है। जब तक कोई बड़ा अफसर या मीडिया खुलकर दबाव नहीं बनाएगा, तब तक ये चलता रहेगा।”
भ्रष्टाचार के दाग – व्यवस्था पर सवाल!
यह घोटाला सिर्फ पैसों का मामला नहीं है, बल्कि सरकारी व्यवस्था पर सीधा हमला है। जब कलेक्टर कार्यालय जैसे सबसे बड़े प्रशासनिक केंद्र में ही भ्रष्टाचार खुलेआम हो, तो आम जनता का भरोसा कैसे बचेगा? यह वही जगह है, जहां न्याय और पारदर्शिता की उम्मीद की जाती है।
जनता की मांग – ‘तुरंत कार्रवाई हो’!
किसान संघ, व्यापारी संघ और आम नागरिक संगठनों ने मांग की है कि इस मामले की उच्च स्तरीय जांच हो और दोषी अधिकारियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाए। साथ ही टिकट वितरण व्यवस्था को पूरी तरह पारदर्शी बनाया जाए।
आखिर कब सुधरेगी स्थिति?
महासमुंद के नागरिक अब एक ही सवाल पूछ रहे हैं –
“क्या कलेक्टर को अपने ही दफ्तर के भीतर हो रही इस लूट की खबर नहीं?
क्या जिलाधीश इस मामले को संज्ञान लेंगे या इसको ठंडे बस्ते में डाल देंगे?
अगर जल्द ही इस टिकट घोटाले पर नकेल नहीं कसी गई, तो जनता का गुस्सा सड़कों पर फूटना तय है। क्योंकि यह सिर्फ पैसों की लूट नहीं, बल्कि किसान, मजदूर और गरीब तबके की रोजमर्रा की जिंदगी से खिलवाड़ है।