जंगल के ‘शोले’ बुझ गए:गिर के सिंहासन पर हुआ खूनी तख़्तापलट, जय-वीरू की दोस्ती का हुआ दर्दनाक अंत!
Gujrat/गिरके गहरे जंगलों में कभी जो गूंजती थी दो शेरों की समवेत दहाड़, वो अब बस यादों की गूंज बनकर रह गई है। जय और वीरू – जंगल के वे दो भाई, जो न सिर्फ़ शेरों की दुनिया के ‘सुपरस्टार’ थे, बल्कि इंसानों के दिलों पर भी राज करते थे – अब इस दुनिया में नहीं हैं।उनकी मौत सिर्फ़ दो शेरों के मरने की खबर नहीं है, ये एक युग के अंत की त्रासद कहानी है – जहां सत्ता, दोस्ती, विश्वासघात और हिंसा की दास्तान जंगल की गीली मिट्टी में दर्ज हो चुकी है।
एक दोस्ती, जो जंगल के नियमों से ऊपर थी!
पांच साल पहले गिर के जंगलों में दो नर शेरों ने मिलकर एक गठबंधन बनाया। नटालिया वीडी से आए ये दोनों शेर जवान थे, ताकतवर थे और महत्वाकांक्षी भी। उन्होंने पश्चिम गिर वन्यजीव क्षेत्र में अपने से ज़्यादा उम्र और अनुभव वाले शेरों को चुनौती दी और एक-एक करके सबको शिकस्त दी।
उन्होंने जो इलाका कब्जे में लिया, वह जंगलका सबसे समृद्ध हिस्सा था – जल स्रोतों से भरपूर, शेरनियों से आबाद और शिकार से भरा। यह लगभग 140 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ क्षेत्र था, जिसमें 15 शेरनियाँ रहती थीं।पर्यटकों ने इन्हें ‘जय’ और ‘वीरू’ नाम दिया – और इनकी जोड़ी इतनी प्रसिद्ध हो गई कि गिर घूमने आने वाले हर सैलानी की इच्छा होती थी कि एक झलक इनकी मिल जाए।
️ सत्ता का लोभ और खूनी संघर्ष की शुरुआत!
पर जंगल में शांति कभी स्थायी नहीं होती।2025 की गर्मियों में, गिर के इस सिंहासन को हिलाने के लिए दो नए शेर जोड़े मैदान में उतरे। 1 जून को जय पर हमला हुआ। घायल हुआ, लेकिन किसी तरह ज़िंदा रहा।4 जून को वीरू पर भी हमला हुआ। और वह इतना गंभीर था कि 11 जून को उसने दम तोड़ दिया।जय अकेला रह गया – घायल शरीर और टूटा हुआ मन लेकर।वन विभाग ने उसे सासन लाकर इलाज शुरू किया। दो महीने तक वह लड़ता रहा – न सिर्फ़ जख्मों से, बल्कि वीरू के बिना उस खालीपन से भी।29 जुलाई को जय ने भी आख़िरी सांस ली।
अब सिर्फ तस्वीरों में ज़िंदा है जय-वीरू!
गिर के जंगलों में अब वह दहाड़ नहीं गूंजती, जिसे सुनकर शावक सहम जाया करते थे।वे रास्ते अब खामोश हैं, जिन पर जय और वीरू साथ-साथ गश्त किया करते थे।जय-वीरू की मौत से न सिर्फ़ एक मजबूत गठबंधन टूटा, बल्कि जंगल का पूरा संतुलन भी डगमगा गया। वे दोनों शेरनियों और शावकों के संरक्षक थे। अब नए शेर जो जंगल में आए हैं, वे पुराने शावकों को मारने लगे हैं – जंगल का क्रूर नियम यही है।गंधारिया और डेडकडी इलाकों में अब मातम पसरा हुआ है। कुछ शावकों की मौत हो चुकी है, कुछ शेरनियाँ अपने बच्चों को लेकर भाग चुकी हैं।
वीरू का अकेलापन बना उसकी मौत का कारण!
जय और वीरू हमेशा साथ रहते थे। वे साथ दहाड़ते थे, साथ शिकार करते थे, और साथ ही अपने इलाके की हिफ़ाज़त करते थे।लेकिन जिस दिन हमला हुआ, उस दिन वीरू अकेला था।कमलेश्वर-खोखरा दिशा से आए दो शेरों ने घात लगाकर वीरू को घेर लिया। उसने लड़ाई लड़ी, लेकिन गंभीर रूप से घायल हो गया।वन विभाग ने उसे इलाज के लिए सासन लाया, और जय के पास ही रखा। लेकिन वीरू की चोटें इतनी गहरी थीं कि वह बच न सका।
जय की जंग और अंतिम झलक!
जय ने वीरू की मौत के बाद भी हार नहीं मानी। वह चलने-फिरने लगा था, दहाड़ने लगा था। वन विभाग उसे वापस जंगल में छोड़ने की योजना भी बना रहा था।लेकिन अचानक उसकी तबीयत बिगड़ने लगी। इन्फेक्शन बढ़ता गया। तमाम कोशिशों के बावजूद, 29 जुलाई को जय ने भी साथ छोड़ दिया।
वन विभाग की जद्दोजहद और अधूरे सपने!
गिर के अधीक्षक मोहन राम कहते हैं, “हम आमतौर पर शेरों की आपसी लड़ाई में हस्तक्षेप नहीं करते, लेकिन जय-वीरू की जोड़ी बहुत खास थी। उनके झुंड में कई छोटे शावक थे। अगर वे दोनों मर जाते, तो पूरा झुंड उजड़ सकता था।”इसलिए विभाग ने उन्हें बचाने की भरसक कोशिश की। लेकिन प्रकृति ने अपनी राह खुद चुनी।
जंगल का नियम: ताकतवर ही जीता है!
विशेषज्ञों का कहना है कि शेरों की दुनिया में यह आम बात है।जब युवा शेर बड़े होते हैं, तो उन्हें अपने परिवार से निकाल दिया जाता है। फिर वे या तो अकेले या किसी मित्र के साथ मिलकर नया इलाका बसाते हैं।जय-वीरू ने भी यही किया था।वे युवावस्था में आए, दो पुराने शेरों को हराया और फिर गिर के पर्यटन क्षेत्र का 80% हिस्सा अपने नियंत्रण में ले लिया।
अब किसका होगा सिंहासन?
अब जब जय और वीरू नहीं हैं, गिर के जंगल में सत्ता को लेकर फिर उथल-पुथल है।कौन बनेगा नया राजा? कौन बचाएगा शावकों को? कौन थामेगा उस विरासत को, जो जय और वीरू छोड़ गए हैं?ये सवाल अभी जंगल की हवाओं में गूंज रहे हैं…
जय-वीरू चले गए, लेकिन उनकी कहानी गिर के हर पत्ते, हर रास्ते और हर सैलानी के दिल में हमेशा गूंजती रहेगी।
एक दोस्ती, एक साम्राज्य, और एक युद्ध – जिसने जंगल को हमेशा के लिए बदल दिया।