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September 11, 2025 4:12 pm

धसकुंड़ की चुप्पी में दबी चीखें: खूबसूरत जलप्रपात बना मौत का फंदा, 60 फीट नीचे गिरा किशोर — प्रशासन मौन, खतरा जीवित!

धसकुंड़ की चुप्पी में दबी चीखें: खूबसूरत जलप्रपात बना मौत का फंदा, 60 फीट नीचे गिरा किशोर — प्रशासन मौन, खतरा जीवित!

Mahasamund /छत्तीसगढ़ — प्रकृति का एक अनुपम उपहार, धसकुंड़ जलप्रपात, रविवार को एक भयावह त्रासदी का गवाह बना। जहां हरियाली की चादर और झरने की कल-कल आवाज़ पर्यटकों को आकर्षित कर रही थी, वहीं एक किशोर की चीखें उस सुंदरता को मातम में बदल रही थीं। झरनों का यह रमणीय स्थल एक बार फिर सुर्खियों में है — लेकिन इस बार कारण है दर्द, लापरवाही और प्रशासन की गहरी नींद।

किशोर निखिल, धसकुड़ की खामोशी का शिकार!
छेरकापुर गांव का निवासी निखिल साहू रविवार को अपने दो दोस्तों के साथ महासमुंद के धसकुंड़ जलप्रपात घूमने गया था। उमस भरे मौसम में बारिश की बूँदों और झरने की ठंडी फुहारों ने जैसे सबको आकर्षित कर लिया था। लेकिन यह प्राकृतिक आकर्षण एक अनदेखे खतरे की गोद में छिपा हुआ था। निखिल जैसे ही ऊपरी चट्टानों पर चढ़ा, उसका पैर फिसला और वह सीधे लगभग 60 फीट नीचे चट्टानों से टकराते हुये पानी पर जा गिरा जिससे उसे गंभीर चोटें आई।

ना चेतावनी बोर्ड, ना रैलिंग, ना सुरक्षा — सिर्फ लापरवाही!
हादसे की सबसे भयावह बात यह थी कि वहां सुरक्षा का कोई इंतज़ाम नहीं था। न कोई चेतावनी बोर्ड, न कोई बैरिकेडिंग, न कोई गार्ड — कुछ नहीं! झरने के इतने खतरनाक हिस्से पर पहुंचना इतना आसान था, जितना किसी बगीचे की सैर। और प्रशासन? वह हमेशा की तरह गैरहाज़िर!

निखिल के दोस्तों ने चीखा, मदद के लिए पुकारा, लेकिन वहां कोई नहीं था”
निखिल के साथ मौजूद एक दोस्त की आंखों में आंसू थे जब उसने बताया — “हमने बहुत चीखें मारीं, मदद के लिए दौड़े, लेकिन न कोई गार्ड था, न कोई सुरक्षा कर्मी।निखिल का चट्टानों से टकराते हुये जैसे ही नीचे पानी में गिरा वह पूरी तरह से खून से लतपथ हो गया था !दोस्तो एवं ग्रामीणों  की मदद से हमने उसे बाहर निकाल कर बलौदा बाजार निजी अस्पताल ईलाज के लियें ले जाया गया।”

चार हड्डियां टूटीं, लेकिन किस्मत ज़िंदा रही!
बलौदाबाजार के एक निजी अस्पताल में भर्ती निखिल की हालत खतरे से बाहर है। डॉक्टरों के अनुसार, उसकी दो पसलियां, एक हाथ और एक पैर की हड्डी टूटी है। शरीर के अन्य हिस्सों में भी गहरी चोटें हैं। उसे फिलहाल आईसीयू में रखा गया है। माता-पिता बेसुध हैं, और प्रशासनिक अधिकारियों की उपस्थिति अब तक शून्य है।

धसकुंड़ — मौत का न्योता बनता स्वर्ग!
यह कोई पहली घटना नहीं है। विगत पाँच वर्षों में महासमुंद के धसकुंड़, सिद्धखोल, सिरपुर जैसे झरनों में अनेक हादसे हुयें हैं। हर साल मानसून के समय ये जलप्रपात भीड़ से भर जाते हैं, लेकिन सुरक्षा? वही पुरानी कहानी — “हम देख रहे हैं, विचार कर रहे हैं”।

“ये हादसा नहीं, यह हत्या है!” 
स्थानीय ग्रामीणों कहना है कि,हमारे द्वारा वर्षों से इस जलप्रपात पर सुरक्षा के इतंजाम करने के लियें बोला जा रहा है, लेकिन कोई सुनने को तैयार नहीं । उन्होंने कहा, “यह हादसा नहीं, यह सिस्टम द्वारा की गई हत्या है। जब तक किसी की जान न जाए, तब तक प्रशासन न सुनता है, न देखता है। ये प्रशासनिक अपराध है।”

सोशल मीडिया पर आग — प्रशासन को घेरे जनता!
निखिल के गिरने का वीडियो जैसे ही सोशल मीडिया पर वायरल हुआ, लोगों का गुस्सा भड़क उठा। ट्विटर से लेकर इंस्टाग्राम तक, हर जगह प्रशासन की लापरवाही पर सवाल उठाए जा रहे हैं:

• “क्या प्रशासन को हादसे की प्रतीक्षा रहती है?”

• “कब तक जान देकर ही चेतेंगे हम?”

• “पर्यटन स्थल है या जनाजे का मंच?”

धसकुंड़ — सुंदरता या सज़ा?
छत्तीसगढ़ पर्यटन विभाग धसकुड़ को “पर्यटन का आकर्षण” बताता है। लेकिन हकीकत यह है कि यह स्थल कोई भी सुरक्षा मानक पूरा नहीं करता। पथरीली, फिसलन भरी चट्टानों पर लोग चढ़ते हैं, बारिश में रास्ते दलदल हो जाते हैं, और कोई निगरानी नहीं रहती। इस असंवेदनशीलता के बीच पर्यटन एक मज़ाक बन गया है।

प्रशासनिक चुप्पी — खतरों की मौन स्वीकृति!
जिला प्रशासन, पर्यटन विभाग और वन विभाग — किसी ने भी अब तक इस मुद्दे पर ठोस कदम नहीं उठाया। निखिल की हालत खतरे से बाहर है, लेकिन उससे भी गंभीर है वह सिस्टम जो हर हादसे पर आंख मूंद लेता है।

• अब नहीं तो कब?

• कब होंगे चेतावनी बोर्ड?                                   

• कब तैनात होंगे प्रशिक्षित सुरक्षा गार्ड?             

•कब बनाए जाएंगे पर्यटन स्थलों के लिए सुरक्षा मैनुअल?                                                           

• क्या प्रशासन हर बार जान गंवाने का इंतज़ार करेगा?

एक सवाल जो गूंजता है — अगला कौन?
अगर आज धसकुंड़ पर चेतावनी बोर्ड होते, रैलिंग होती, निगरानी होती — तो शायद निखिल अपने दोस्तों के साथ घर लौटता। लेकिन अब वह अस्पताल में है, और हम सब एक बार फिर वही प्रश्न पूछ रहे हैं — “अब अगला कौन?”

समाप्ति — चेतावनी नहीं, जिम्मेदारी चाहिए!
प्रशासन की चुप्पी अब अपराध है। अगर अभी भी स्थायी सुरक्षा इंतज़ाम नहीं किए गए, तो अगला हादसा फिर किसी मासूम की जान लेगा। पर्यटन का मतलब सिर्फ फोटो खिंचवाना नहीं — सुरक्षा सुनिश्चित करना भी है।

ध्यान दीजिए — धसकुंड़ बुला रहा है… पर क्या आप सुरक्षित लौट पाएंगे?

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