CG News-“मोदी की गारंटी या वादाखिलाफी की पटकथा?” — छत्तीसगढ़ के 50 हज़ार संविदा कर्मियों का फूटा सब्र, भाजपा संगठन के दरवाज़े पर दी दस्तक!
Raipur/छत्तीसगढ़ के संविदा कर्मियों का धैर्य अब जवाब दे चुका है। एक लंबे इंतजार, आशाओं के टूटने और बार-बार के आश्वासनों के बावजूद जब कुछ नहीं बदला, तो अब उन्होंने अपनी आवाज बुलंद कर दी है। प्रदेश के 50 हज़ार से अधिक संविदा कर्मचारीअपने जीवन की अस्थिरता, वेतन की अनियमितता और नौकरी की अनिश्चितता से परेशान होकर भारतीय जनता पार्टी के संगठन प्रमुखों के सामने सवालों की बौछार कर रहे हैं।
“मोदी की गारंटी” अब प्रतीक्षा की स्याही में धुंधली पड़ चुकी है।
छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव 2023 के दौरान भाजपा द्वारा जारी घोषणापत्र में यह स्पष्ट रूप से कहा गया था कि छत्तीसगढ़ के संविदा कर्मचारियों की समस्याओं का स्थायी समाधान “मोदी की गारंटी” के अंतर्गत किया जाएगा। कर्मचारियों ने न केवल इस पर भरोसा किया बल्कि विधानसभा और हाल ही में हुए लोकसभा चुनावों में भी भाजपा को मजबूत समर्थन दिया। पर अब यही विश्वास छला हुआ महसूस कर रहा है।
छत्तीसगढ़ सर्व विभागीय संविदा कर्मचारी महासंघ द्वारा जारी पत्र में प्रदेश अध्यक्ष कौशलेश तिवारी और कार्यकारी अध्यक्ष हेमंत कुमार सिन्हा ने तीखे शब्दों में सरकार की निष्क्रियता को आड़े हाथों लिया है। उन्होंने प्रदेश भाजपा अध्यक्ष किरण देव सिंह, प्रभारी नितिन नवीन, और संगठन प्रभारी पवन साय को सीधे संबोधित करते हुए यह सवाल उठाया है कि आखिर “कब पूरी होगी मोदी की गारंटी?”
कमेटी बनी, पर दिखी नहीं!
छत्तीसगढ़ में भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनने के कुछ ही माह बाद एक समिति के गठन की घोषणा की गई थी जो संविदा कर्मचारियों की समस्याओं का समाधान खोजेगी। परंतु यह समिति कहां है, क्या कर रही है, और कब तक रिपोर्ट सौंपेगी — इस पर सरकार पूरी तरह मौन है। कर्मचारियों का कहना है कि उन्हें समिति की न तो बैठक की कोई सूचना मिली, न ही किसी प्रकार की भागीदारी का अवसर।
“हमारे साथ छल हुआ है” — महासंघ की भावुक अपील!
महासंघ ने अपने पत्र में यह स्पष्ट किया है कि कांग्रेस की पूर्ववर्ती सरकार ने पहले ही संविदा कर्मचारियों के साथ वादाखिलाफी की थी, और भाजपा को समर्थन देना एक भरोसे का फैसला था। पर अब भाजपा सरकार द्वारा भी जब सिर्फ समिति बनाकर भूल जाने जैसा व्यवहार किया गया, तो संविदा कर्मचारी अपने को ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं।
महासंघ के संयुक्त सचिव सुदर्शन मंडल, प्रदेश सचिव चंद्रकांत जायसवाल और कोषाध्यक्ष टीकमचंद कौशिक ने कहा कि “हमने भाजपा की सरकार बनाई, लेकिन हमारी ही आवाज अनसुनी रह गई। अब यह सिर्फ प्रशासनिक मामला नहीं, बल्कि एक नैतिक जिम्मेदारी है।”
वेतन नहीं, स्थायित्व नहीं — संघर्ष ही संघर्ष!
वर्तमान में संविदा कर्मचारियों को समय पर वेतन नहीं मिल पा रहा है। राज्य सरकार द्वारा घोषित 27 प्रतिशत वेतनवृद्धि अब तक लागू नहीं की गई है। वहीं, मध्यप्रदेश जैसे पड़ोसी राज्य में भाजपा सरकार संविदा कर्मचारियों के हित में ठोस कदम उठा रही है, जिससे छत्तीसगढ़ के कर्मियों में असंतोष और भी बढ़ गया है।
प्रदेश सचिव श्रीकान्त लास्कर और मीडिया प्रभारी टेकलाल पाटले ने यह भी बताया कि कई विभागों में संविदा कर्मियों से नियमित कर्मियों जैसा कार्य लिया जा रहा है, पर न वे अधिकार समान हैं, न वेतन, न सुरक्षा।
पार्टी संगठन पर अब उम्मीद!
जब सरकार ने सुनना बंद कर दिया, तो अब संविदा कर्मियों की निगाहें पार्टी संगठन पर टिक गई हैं। महासंघ ने भाजपा के शीर्ष नेताओं से यह अपील की है कि वे इस विषय को संगठन स्तर पर गंभीरता से लें और 50 हज़ार कर्मचारियों एवं उनके परिवारों के भविष्य को सुरक्षित करने की दिशा में ठोस और त्वरित कदम उठाएं।
संगठन मंत्री परमेश्वर कौशिक और सलाहकार डॉ. अमित कुमार मिरी ने चेताया है कि यदि जल्द समाधान नहीं हुआ, तो आंदोलनात्मक रुख अपनाना पड़ सकता है।
समाप्ति नहीं, संघर्ष की शुरुआत है यह!
यह पत्र केवल एक निवेदन नहीं, बल्कि एक चेतावनी भी है — एक संगठन की, जो शांतिपूर्वक, लोकतांत्रिक तरीके से अपनी बात कह रहा है, पर जिसकी सहनशक्ति की सीमा अब समाप्त हो चुकी है। क्या भाजपा संगठन अपने ही संकल्पों को पूरा करने में अब देरी करेगा?
“मोदी की गारंटी” अब सिर्फ कागज़ों में रह गई है या इसका धरातल पर उतरना अभी बाकी है — यह आने वाले समय में भाजपा की नीतियों और कार्यों से स्पष्ट होगा।”