रायपुर/ छत्तीसगढ़ के अभनपुर विकासखंड से एक बड़ी और बहुप्रतीक्षित खबर सामने आई है, जिसने न केवल स्वास्थ्य विभाग में हलचल मचा दी है बल्कि ग्रामीण जनता में भी राहत और उम्मीद की नई किरण जगा दी है। वर्षों से अभनपुर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में अपनी मनमानी, लापरवाही और केंद्र सरकार की आयुष्मान भारत इंसेंटिव घोटालेबाज दोषी खंड चिकित्सा अधिकारी डॉ. शारदा साहू और कनिष्ठ चिकित्सा अधिकारी डॉ. उमेश विश्वास को आखिरकार उनके पदों से हटा दिया गया है।ये लोग वर्षों से अभनपुर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में खूठा गांप के बैठे थे।
वर्षों से अभनपुर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में जमे बैठे और जनसेवा की जगह निजी लाभ को प्राथमिकता देने वाले दो चर्चित चिकित्सा अधिकारियों — डॉ. शारदा साहू और डॉ. उमेश विश्वास — को आखिरकार उनके पद से हटाकर ऐसे स्थानों पर भेज दिया गया है जिसे लोग ‘सरकारी सेवा का काला पानी’ कहते हैं।
डॉ. शारदा साहू को बीजापुर और डॉ. उमेश विश्वास को सुकमा में पदस्थ किया गया है। यह दोनों जिले नक्सल प्रभावित और सुविधाओं से कोसों दूर माने जाते हैं। वर्षों से जनता की जान से खिलवाड़ करने वाले इन अधिकारियों के लिए यह स्थानांतरण किसी सजा से कम नहीं है।
यह वह दो चेहरे थे, जिनकी मौजूदगी ने अभनपुर जैसे संवेदनशील और स्वास्थ्य सुविधा से वंचित इलाके को कई ग्रामीण गरीब घरों की प्रसव से पीड़ित महिलाओं का खेल का अखाड़ा बना रखा था। ग्रामीणों की शिकायतें, जनप्रतिनिधियों की चेतावनी और लगातार हो रही मातृ-मृत्यु की घटनाएं भी लंबे समय तक इस व्यवस्था को नहीं हिला पाईं थीं। लेकिन अंततः न्याय की जीत हुई है।
“नियम विरुद्ध पदस्थापना और दलाली का खेल”:- डॉ. शारदा साहू की नियुक्ति खुद में एक सवालिया निशान रही। नियमों को ताक पर रखकर खंड चिकित्सा अधिकारी जैसे महत्वपूर्ण पद पर उनकी पदस्थापना न केवल स्वास्थ्य विभाग की कार्यशैली पर सवाल उठाती रही, बल्कि इस बात का भी प्रमाण बनी कि किस तरह एक पूरे ब्लॉक की स्वास्थ्य व्यवस्था को व्यक्तिगत लाभ के लिए गिरवी रखा गया।नियमों को ताक पर रखकर की गई यह पदस्थापना खुद स्वास्थ्य विभाग के नियमों की धज्जियाँ उड़ाने वाली थी। अनुभव और पात्रता की कसौटी पर डॉ. साहू कहीं नहीं ठहरती थीं, फिर भी उन्हें वर्षों तक इसी कुर्सी पर बनाए रखा गया।
वहीं, डॉ. उमेश विश्वास का नाम ‘विश्वास’ होते हुए भी ग्रामीणों के लिए ‘अविश्वास’ और डर का प्रतीक बन गया था। अस्पताल में प्रसव से जूझ रही महिलाओं को सरकारी सुविधा देने के बजाय, उन्हें जानबूझकर निजी अस्पतालों की ओर धकेला जाता रहा—जहाँ से मोटी दलाली की रकम वसूली जाती थी। डॉ. विश्वास का मोह अभनपुर अस्पताल से खत्म नहीं हो रहा था, क्योंकि वहीं से चलता था उनका कथित “दलाली का नेटवर्क” उमेश विश्वास को अभनपुर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र से इतना मोह था कि यहां तक कि पूर्व में भी उनका स्थानान्तरण हुआ था लेकिन उनके द्वारा वित्तीय प्रभार नहीं दिया गया था। वह मामला भी काफी विवादित रहा।
“प्रसव पीड़िताओं की दर्दनाक कहानियों का अंत, अब नहीं चलेगा दलाली और मौत का सौदा?
सबसे शर्मनाक पहलू इस पूरे मामले का यह रहा कि गर्भवती महिलाओं की पीड़ा, जिनकी सुरक्षा की जिम्मेदारी इस स्वास्थ्य केंद्र की थी, उन्हें ही मौत की ओर धकेला गया। कई मामलों में समय पर इलाज न मिलने के कारण प्रसव पीड़िताएं दम तोड़ती रहीं। उनके परिवारों की चीख-पुकार अस्पताल की दीवारों से टकराकर रह गईं, लेकिन डॉ. साहू और डॉ. विश्वास के कानों तक नहीं पहुंचीं।
सूत्रों की माने इन अधिकारियों के कार्यकाल में सरकारी सुविधा की उपेक्षा कर, निजी अस्पतालों के लिए “रेफर माफिया” जैसा खेल चलता रहा। इसकी भनक मिलते ही स्वास्थ्य विभाग के उच्च अधिकारियों ने जांच बैठाई और शिकायतों की पुष्टि के बाद बड़ी कार्रवाई को अंजाम दिया गया।
“स्थानांतरण नहीं, ये थी जनभावनाओं की जीत”!
अभनपुर सामुदायिक केंद्र के सरकार ने इन दोनों अधिकारियों को तत्काल प्रभाव से हटाते हुए नई पदस्थापनाएं की हैं। सूत्रों के अनुसार, डॉ. शारदा साहू को बस्तर के दूरस्थ प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में भेजा गया है, जहाँ उनकी प्रशासनिक शक्ति सीमित रहेगी। वहीं, डॉ. उमेश विश्वास को भी विभागीय जांच की सिफारिश के साथ एक नॉन-क्लिनिकल पद पर स्थानांतरित किया गया है।
यह कोई साधारण फेरबदल नहीं था, यह जनता के आक्रोश, माताओं के आंसुओं और ग्रामीणों की पीड़ा की परिणति थी। वर्षों से इस कार्रवाई की मांग हो रही थी, लेकिन अब जाकर आवाज़ें सुनी गईं।
“जनता ने ली राहत की सांस”:- पूरे अभनपुर ब्लॉक में इस खबर के बाद खुशी की लहर दौड़ गई है। स्थानीय जनप्रतिनिधियों ने इस निर्णय का स्वागत करते हुए कहा कि—
“यह केवल दो व्यक्तियों का स्थानांतरण नहीं, यह ग्रामीणों के स्वास्थ्य और विश्वास की बहाली है।”
स्वास्थ्य विभाग के नए निर्देशों के तहत अब:- सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र अभनपुर में पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करने की बात कही जा रही है। इसके लिए निगरानी समितियों के गठन और हर प्रसव की वीडियोग्राफी तक के प्रस्ताव पर विचार चल रहा है।
“जवाबदेही तय होनी चाहिए”!
हालांकि सवाल अब भी उठते हैं—क्या सिर्फ स्थानांतरण से ही न्याय होगा? क्या उन महिलाओं को न्याय मिलेगा जो इलाज के अभाव में दम तोड़ चुकी हैं? क्या उन गरीब परिवारों को मुआवजा मिलेगा जो निजी अस्पतालों में लूटे गए?
“अभनपुर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र का नया दौर, नई उम्मीद”!
स्वास्थ्य विभाग ने संकेत दिए हैं कि अब हर स्वास्थ्य केंद्र में जनता की भागीदारी बढ़ाई जाएगी। ग्राम पंचायत स्तर पर शिकायत पेटी, हेल्पलाइन नंबर और मोबाइल निरीक्षण दलों की व्यवस्था की जाएगी। उम्मीद है कि अभनपुर अब पुराने भयावह दौर को पीछे छोड़कर नए स्वास्थ्य युग में प्रवेश करेगा।
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डॉ. शारदा साहू और डॉ. उमेश विश्वास की विदाई एक मिसाल है कि अगर जनता एकजुट होकर अन्याय के खिलाफ आवाज उठाए, तो सबसे मजबूत कुर्सी भी हिल सकती है। अभनपुर ने यह कर दिखाया है। अब जरूरत है निगरानी की, न्याय की, और एक ऐसी व्यवस्था की जिसमें डॉक्टर फिर से “भगवान का रूप” बन सकें—ना कि “दलाल का चेहरा।”