रायपुर/छत्तीसगढ़ में पत्रकारों रायपुर की कलम से कांपा मंत्रालय मुख्यमंत्री का कड़ा प्रहार—मीडिया पर लगाम अब बर्दाश्त नहीं की जाएगी सियासत में बुधवार को अचानक एक ऐसा भूचाल आया, जिसने न सिर्फ स्वास्थ्य विभाग की कार्यशैली पर सवाल खड़े किए, बल्कि मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय की प्रशासनिक दृढ़ता को भी उजागर कर दिया। बात एक साधारण आदेश से शुरू हुई, लेकिन उसका अंत एक ऐतिहासिक निर्णय और स्पष्ट चेतावनी पर जाकर हुआ।
आदेश जो बना तूफान की जड़:
छत्तीसगढ़ में सरकारी अस्पतालों में मीडिया की आवाजाही और रिपोर्टिंग पर पाबंदी लगाने संबंधी स्वास्थ्य विभाग का आदेश जैसे ही सार्वजनिक हुआ, पूरे प्रदेश में हंगामा मच गया। आदेश के अनुसार, अस्पताल परिसरों में पत्रकारों के प्रवेश पर रोक थी, और कोई भी रिपोर्टिंग स्वास्थ्य विभाग की अनुमति के बिना नहीं की जा सकती थी। यानी गोपनीयता की आड़ में जनसूचना पर ताला जड़ने की साजिश!
पत्रकार संगठनों ने इस आदेश को लोकतंत्र पर सीधा हमला करार देते हुए तीखा विरोध दर्ज किया। राजधानी से लेकर दूरदराज के जिलों तक मीडिया कर्मियों ने नाराजगी जाहिर की। कई जगह विरोध-प्रदर्शन हुए, ज्ञापन सौंपे गए और रायपुर में पत्रकारों ने आदेश की प्रतियां जला कर सरकार के खिलाफ नारेबाजी की।
पत्रकारों की हुंकार और जनता का साथ:
“यह जनतंत्र है, तानाशाही नहीं!” – ये नारा रायपुर प्रेस क्लब से लेकर सोशल मीडिया तक गूंजता रहा। आम जनता भी इस विरोध में मीडिया के साथ खड़ी नजर आई। लोगों ने पूछा – जब सरकारी अस्पताल जनता के पैसों से चलाए जाते हैं, तो वहां की खबरों को दबाने की कोशिश क्यों?
पत्रकारों का कहना था कि स्वास्थ्य विभाग की यह कार्रवाई पत्रकारिता की स्वतंत्रता पर आघात है। यह आदेश न केवल अपारदर्शिता को बढ़ावा देता, बल्कि जनहित से जुड़ी सूचनाओं को दबाने का रास्ता भी बन जाता।
मुख्यमंत्री ने दिखाई सख्ती – “आदेश तत्काल रद्द हो!”
विवाद के तीव्र होते ही मामला मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय तक पहुँचा। सूत्रों की मानें, तो आदेश की प्रति सामने आते ही मुख्यमंत्री बेहद नाराज हो गए। अपने सहज और शांत स्वभाव के लिए पहचाने जाने वाले मुख्यमंत्री इस बार पूरी तरह बदले अंदाज में नजर आए।
उन्होंने तत्काल प्रभाव से आदेश रद्द करने का निर्देश जारी किया। इतना ही नहीं, प्रशासनिक अमले को स्पष्ट संदेश देते हुए उन्होंने कहा –
“जनहित और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता से कोई खिलवाड़ नहीं चलेगा। भविष्य में ऐसी कोई स्थिति नहीं बननी चाहिए। यह सरकार पारदर्शिता और जनसंचार की पक्षधर है।”
मुख्यमंत्री का यह रुख जैसे पत्रकार बिरादरी के लिए राहत की सांस बनकर आया। आदेश रद्द होते ही विरोध थमा और सोशल मीडिया पर मुख्यमंत्री के फैसले की प्रशंसा की जाने लगी।
स्वास्थ्य विभाग की किरकिरी – सवालों के घेरे में अफसरशाही:
अब सवाल उठ रहे हैं कि आखिर किसके इशारे पर यह विवादास्पद आदेश जारी हुआ? क्या यह केवल एक “निम्नस्तरीय अधिकारी की गलती” थी या फिर इसके पीछे कोई उच्च स्तरीय ‘सेंसरशिप एजेंडा’ छुपा था?
स्वास्थ्य विभाग के भीतर भी इस आदेश को लेकर मतभेद सामने आए हैं। कुछ अधिकारी इसे “अंदरखाने की रणनीति” बता रहे हैं, जिसका उद्देश्य अस्पतालों की अव्यवस्थाओं को बाहर जाने से रोकना था। लेकिन अब जब मुख्यमंत्री ने खुद हस्तक्षेप कर दिया है, तो इस आदेश को जारी करने वाले अधिकारियों की जवाबदेही तय करने की मांग उठने लगी है।
मीडिया की जीत – लोकतंत्र की बहाली:
छत्तीसगढ़ के पत्रकार संगठनों ने मुख्यमंत्री का आभार जताया है। प्रेस क्लब रायपुर ने अपने बयान में कहा, “मुख्यमंत्री ने जो किया, वह लोकतंत्र में पत्रकारिता की आत्मा को पुनर्जीवित करने जैसा है। यह न सिर्फ मीडिया की जीत है, बल्कि हर उस नागरिक की जीत है जो सच जानने का अधिकार रखता है।”
जनता की निगाह अब अगली कार्रवाई पर:
हालांकि आदेश वापस ले लिया गया है, लेकिन जनता और पत्रकार अब इस मुद्दे पर अगली कार्रवाई का इंतजार कर रहे हैं। क्या दोषी अधिकारी पर कार्रवाई होगी? क्या भविष्य में इस तरह के आदेशों को रोकने के लिए कोई ठोस नीति बनेगी?
विपक्ष के तीखे प्रहार :- इस पूरे घटनाक्रम में जैसे ही आदेश निकला वैसे ही विपक्ष की ओर से पूर्व मुख्यमंत्री टी एस सिंहदेव ने सरकार को आड़े हाथ लेते हुये अपने बयान में “भाजपा सरकार पर बेहद गंभीर आरोप लगाते हुए कहा कि “सरकार अब लोकतंत्र का गला घोंटने पर आमादा है। मीडिया पर शिकंजा कसना न सिर्फ शर्मनाक है, बल्कि संविधान के खिलाफ सीधा हमला है”,मीडिया की आवाज़ को दबाना, प्रेस को एक ‘प्रोटोकॉल दफ्तर’ बना देना, बेहद खतरनाक प्रवृत्ति है। ये तानाशाही की पहली सीढ़ी है”।
सवाल :- यह एक महत्वपूर्ण सच्चाई को उजागर करता है – लोकतंत्र में मीडिया की स्वतंत्रता को जब भी चुनौती दी जाएगी, जनता की आवाज़ गूंजेगी और सत्ता को झुकना पड़ेगा। मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय का यह स्पष्ट संदेश न केवल उनके नेतृत्व की परिपक्वता को दर्शाता है, बल्कि यह भी बताता है कि लोकतंत्र में संवाद, पारदर्शिता और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता सर्वोपरि है।
https://jantakitakat.com/2025/06/18/cg-breakingगोपनीयता-की-आड़-में-लोकत/
यह प्रकरण केवल एक आदेश रद्द होने तक सीमित नहीं है, बल्कि यह याद दिलाता है कि सत्ता के गलियारों में जब भी अंधकार छाने लगे, तब पत्रकारिता की मशाल ही रोशनी बनकर उभरती है।और जब सरकारें जवाबदेह होती हैं, तो लोकतंत्र मजबूत होता है।
“पत्रकारों की कलम जब स्याही से नहीं, आग से लिखे – तो सत्ता को सुनना ही पड़ता है!”