CG”गांवों में गूंजा सन्नाटा, कक्षाओं में गूंजा खालीपन: कई जिलों के शिक्षकों की कमी से हायर सेकेंडरी रिजल्ट्स धराशायी!
सूरजपुर/छत्तीसगढ़ के सूरजपुर जिला के घूमाडांड मनेन्द्रगढ़-चिरमिरी-भरतपुर के कुंवारपुर दूरस्थ अंचलों में शिक्षा की स्थिति लगातार चिंताजनक होती जा रही है। परीक्षा परिणामों की गिरती दर, शिक्षकों की अनुपलब्धता और प्रशासनिक उदासीनता मिलकर एक ऐसी कहानी बुन रहे हैं, जो न केवल सरकारी तंत्र की असफलता उजागर करती है, बल्कि सैकड़ों छात्र-छात्राओं के भविष्य पर प्रश्नचिह्न खड़ा कर रही है।
कक्षा में बिखरा सन्नाटा, बच्चों के भविष्य पर संकट!
जिला सूरजपुर के विकासखंड प्रतापपुर अंतर्गत स्थित शासकीय हाईस्कूल घूमाडांड, जहां किसी समय बच्चों की चहल-पहल से विद्यालय प्रांगण जीवंत रहता था, आज वहां का मौन चीख-चीख कर व्यवस्थागत असफलता की गवाही दे रहा है। यहां कक्षा दसवीं के परीक्षा परिणाम ने शिक्षा विभाग की जड़ों को हिला कर रख दिया है। कुल 39 पंजीकृत विद्यार्थियों में से 38 परीक्षा में शामिल हुए और केवल 15 छात्र ही उत्तीर्ण हो सके। यह परिणाम महज 39.47% रहा — एक ऐसा आंकड़ा जो न केवल बच्चों की मेहनत पर पानी फेरता है, बल्कि पूरे शैक्षणिक तंत्र की असमर्थता को उजागर करता है।जबकि शिक्षा विभाग छत्तीसगढ़ के मुखिया स्वयं खुद सम्भल रहे है।
सूरजपुर जिला शिक्षा अधिकारी से प्राप्त जानकारी के अनुसार, इस विद्यालय में मात्र एक शिक्षक कार्यरत हैं। एकल शिक्षक पर पूरा विद्यालय, अनेक विषयों और सैकड़ों सपनों का बोझ — क्या यह शिक्षा का ‘सशक्तिकरण’ है या ‘संघर्ष का मंच’? शिक्षा विभाग ने स्वीकारा है कि शिक्षक की कमी ही इस खराब परिणाम का प्रमुख कारण है।
स्कूलों में शिक्षक नहीं, तो बच्चों को शिक्षा कैसे?
शिक्षा केवल किताबों से नहीं मिलती, वह शिक्षक के सान्निध्य से संवरती है। लेकिन जब विद्यालयों में शिक्षक ही नहीं होंगे, तब किताबें भी मौन हो जाती हैं। शिक्षक का न होना सिर्फ एक प्रशासनिक त्रुटि नहीं, यह उन नन्हे सपनों की हत्या है, जो इंजीनियर, डॉक्टर, अधिकारी बनने की आकांक्षा लिए हर सुबह विद्यालय पहुंचते हैं।
कुंवारपुर की करुण गाथा: मुख्यमंत्री के सामने उठी मांग
जिला मनेन्द्रगढ़-चिरमिरी-भरतपुर के अंतर्गत शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय कुंवारपुर में स्थिति और भी विषम है। यहाँ विषयवार शिक्षकों की अनुपलब्धता ने हायर सेकेंडरी परीक्षा परिणाम को बुरी तरह प्रभावित किया है। वर्ष 2024-25 के परीक्षा में विद्यालय का परिणाम मात्र 40.68% रहा, जो राज्य के औसत परिणाम से कहीं पीछे है। ग्रामीणों के अनुसार, गणित, विज्ञान, और अंग्रेज़ी जैसे महत्वपूर्ण विषयों के शिक्षक महीनों से अनुपस्थित हैं या पद ही रिक्त हैं।
जिला मनेन्द्रगढ़-चिरमिरी-भरतपुर में मुख्यमंत्री विष्णु देव साय के कुंवारपुर प्रवास के दौरान, स्थानीय ग्रामीणों ने हाथ जोड़कर निवेदन किया — “हमें स्कूल में किताबें नहीं, पहले शिक्षक चाहिए। हमारे बच्चों का भविष्य अंधकारमय हो रहा है।” यह भावनात्मक अपील एक गूंज बनकर पूरे राज्य में फैल रही है। ग्रामीणों ने प्रदेश के मुखिया से अपील की है कि आप ने बनाया है आप ही सवारों गे क्योंकि विभाग के मुखिया आप ही हो !
शिक्षा का अधिकार या शिक्षा का अभाव?
भारतीय संविधान ने शिक्षा को मौलिक अधिकार घोषित किया है, लेकिन क्या वास्तविकता में यह अधिकार दूरदराज़ के छात्रों तक पहुँच रहा है? आंकड़ों से साफ़ है कि यह हक़ कागज़ों में सिमट कर रह गया है। युक्तियुक्तकरण (Rationalization) जैसे प्रशासनिक शब्दों की आड़ में शिक्षक स्थानांतरण और नियुक्ति की प्रक्रिया वर्षों से लटकी हुई है।
जिला शिक्षा अधिकारी का बयान इस बात की पुष्टि करता है कि “युक्तियुक्तकरण केवल एक प्रशासनिक प्रक्रिया नहीं, बल्कि इसका उद्देश्य विद्यार्थियों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देना है।” लेकिन जब विद्यार्थी बिना शिक्षक के ही बोर्ड परीक्षा में बैठने को मजबूर हो जाएं, तो गुणवत्ता की बात करना एक क्रूर मजाक बन जाता है।
शिक्षकों की कमी: एक राज्यव्यापी संकट!
यह केवल घूमाडांड या कुंवारपुर की समस्या नहीं है। छत्तीसगढ़ के कई जिलों के अन्य सरकारी विद्यालयों में भी यही स्थिति है। विषयवार शिक्षकों की भारी कमी, नियुक्तियों की धीमी रफ्तार और स्थानांतरण नीति में पारदर्शिता की कमी — यह सब मिलकर राज्य की शिक्षा व्यवस्था को गर्त में ढकेल रहे हैं।
कई शिक्षकों की पदस्थापन फाइलें महीनों से मंत्रालय की मेज़ पर धूल फांक रही हैं। वहीं ग्रामीण अंचलों में छात्र शिक्षक के बिना पढ़ाई के नाम पर केवल हाजिरी भरने तक सीमित रह गए हैं।
छात्रों की करुण पुकार: हमसे हमारा भविष्य मत छीनिए!
10वीं और 12वीं जैसे बोर्ड परीक्षाएं छात्रों के लिए भविष्य का द्वार होती हैं। लेकिन जब वे परीक्षा की तैयारी बिना उचित मार्गदर्शन के करते हैं, तो उनका आत्मविश्वास चकनाचूर हो जाता है। एक छात्रा ने रोते हुए कहा, “सर, हम चाहते हैं कि हमारे गांव में भी टीचर आएं। हमें भी कोचिंग, गाइड और सपोर्ट मिले, जैसे शहरों के बच्चों को मिलता है।”
सरकार की जिम्मेदारी और उम्मीद की किरण:-
छत्तीसगढ़ की सरकार को चाहिए कि शिक्षा को केवल योजनाओं और बजट में नहीं, बल्कि ज़मीनी स्तर पर प्राथमिकता दे। शिक्षा की रीढ़ – शिक्षक – को मज़बूती देना अनिवार्य है। रिक्त पदों की शीघ्र पूर्ति, दूरस्थ क्षेत्रों में शिक्षकों की पदस्थापना और डिजिटल माध्यमों के ज़रिए शिक्षण व्यवस्था को सुधारना समय की मांग है।
छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री के सामने ग्रामीणों द्वारा की गई अपील शायद उस सोई हुई व्यवस्था को झकझोर दे, जो वर्षों से आंकड़ों और रिपोर्टों के पीछे छिपी बैठी है।
https://jantakitakat.com/2025/05/24/cgगरियाबंद-शिक्षा-पर-ग्रहण/
छत्तीसगढ़ में शिक्षा केवल एक सेवा नहीं, यह राष्ट्र निर्माण की नींव है। जब एक भी बच्चा शिक्षक के अभाव में परीक्षा में पिछड़ता है, तो वह केवल एक छात्र नहीं हारता, बल्कि पूरा समाज पराजित होता है। घूमाडांड और कुंवारपुर की यह कहानी एक चेतावनी है — शिक्षा को प्राथमिकता न दी गई, तो यह संकट एक सुनामी बनकर पूरे भविष्य को बहा ले जाएगी।