“स्वास्थ्य विभाग में भूचाल – संविदा कर्मचारी की नकली ट्रांसफर आदेश से हड़कंप!”FIR से मचा बवाल”,विभाग की लापरवाही से उठ रहे सवाल…
Raigarh/छत्तीसगढ़स्वास्थ्य विभाग, जिसे जनता की जान बचाने और बेहतर स्वास्थ्य सेवाएँ उपलब्ध कराने की जिम्मेदारी सौंपी गई है, उसी विभाग की लापरवाही ने एक बार फिर चौंका दिया है। जिले में एक ऐसा प्रकरण सामने आया है जिसने न केवल विभाग की विश्वसनीयता पर सवाल खड़े कर दिए हैं, बल्कि यह भी साबित कर दिया है कि अगर सिस्टम में जांच और सत्यापन की प्रक्रिया ढीली हो, तो कोई भी “फर्जी आदेश” से पूरा खेल बिगाड़ सकता है।
रायगढ़ जिले के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र जतरी में पदस्थ संविदा ग्रामीण चिकित्सा सहायक रामसेवक साहू (40 वर्ष), रायगढ़ स्थित सीएमएचओ (मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी) कार्यालय पहुंचता है। उसके हाथ में राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन छत्तीसगढ़ का एक आदेश है, जिसमें साफ लिखा है कि उसकी पदस्थापना रायगढ़ जिले के जतरी से बदलकर कोरबा जिले के छुरीकला प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र कर दी गई है। आदेश असली लग रहा था, विभाग ने बिना कोई देर किए उस पर भरोसा कर लिया। नतीजा यह हुआ कि उसी दिन विभाग ने साहू को कार्यमुक्त कर दिया और कोरबा जिले की नई पदस्थापना पर ज्वाइन करने का आदेश जारी कर दिया।
लेकिन इस “आदेश” की असली कहानी कुछ और थी। यह कोई आधिकारिक दस्तावेज नहीं था, बल्कि रामसेवक साहू द्वारा तैयार किया गया एक फर्जी आदेश था। विभाग ने उसे बिना जांचे-परखे मान लिया और पूरा सिस्टम उसकी चालाकी के आगे धराशायी हो गया।
सच का खुलासा और विभाग में मचा हड़कंप!
4 सितंबर 2025 को रायगढ़ सीएमएचओ डॉ. अनिल कुमार जगत को राज्य कार्यालय रायपुर से एक महत्वपूर्ण सूचना मिली। इसमें साफ कहा गया कि राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन ने रामसेवक साहू का कोई ट्रांसफर आदेश जारी ही नहीं किया है। अचानक विभाग के पैरों तले जमीन खिसक गई। तत्काल जांच बैठाई गई और कुछ ही घंटों में यह साफ हो गया कि साहू द्वारा प्रस्तुत किया गया आदेश पूरी तरह कुटरचित यानी फर्जी था।
डॉ. जगत ने देर न करते हुए सीधे कोतवाली थाने का रुख किया। वहां शिकायत दर्ज कराई गई और पुलिस ने इस मामले में गंभीर धाराओं के तहत अपराध पंजीबद्ध कर लिया। आरोपी रामसेवक साहू के खिलाफ भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 318(4), 336(3) और 338 के तहत FIR दर्ज की गई। विवेचना की जिम्मेदारी उपनिरीक्षक ए.के. देवांगन को सौंपी गई। FIR में स्पष्ट उल्लेख है कि आरोपी ने जाली दस्तावेज तैयार कर विभाग को गुमराह किया और धोखाधड़ी की।
लापरवाही या मिलीभगत?
यह मामला केवल एक संविदा कर्मचारी की करतूत भर नहीं लगता। बड़े सवाल यह हैं—
•आखिर विभाग ने आदेश की जांच क्यों नहीं की?
•क्या साहू ने यह खेल अकेले खेला, या विभाग के अंदर से किसी की मदद मिली?
•यदि एक संविदा कर्मचारी इतनी •बड़ी हिम्मत कर सकता है, तो क्या पूरा सिस्टम ऐसे फर्जीवाड़ों के लिए खुला पड़ा है?
इस घटना ने स्वास्थ्य विभाग की “सत्यापन प्रक्रिया” पर गहरी चोट की है। यह दिखाता है कि दस्तावेज चाहे कितने ही संदेहास्पद क्यों न हों, विभाग उन्हें मान्य कर लेता है।
जनता में गुस्सा, विभाग की साख पर चोट!
गांव-गांव तक स्वास्थ्य सेवाएँ पहुँचाने का जिम्मा संविदा स्वास्थ्यकर्मियों पर भी होता है। ऐसे में यदि उनकी नियुक्ति और पदस्थापना में धांधली हो, तो इसका सीधा असर ग्रामीण मरीजों पर पड़ता है। रायगढ़ के लोग सवाल उठा रहे हैं कि—
•“क्या हमारी जान ऐसे लापरवाह सिस्टम के भरोसे है?”
•“अगर आदेश फर्जी निकला, तो दवाइयाँ और इलाज कौन गारंटी देगा?”
स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ताओं ने कहा कि यह सिर्फ एक फर्जी आदेश का मामला नहीं, बल्कि पूरे विभाग की साख पर गहरी चोट है। “जनता की जिंदगी से खिलवाड़ करने वालों पर कठोरतम कार्रवाई होनी चाहिए।”
प्रशासनिक तंत्र की पोलपट्टी!
रायगढ़ का यह मामला एक आईना है, जिसमें पूरे प्रशासनिक तंत्र की कमजोरियाँ साफ दिखाई देती हैं। अगर एक कर्मचारी ट्रांसफर आदेश जैसे संवेदनशील दस्तावेज को फर्जी बनाकर पेश कर सकता है और विभाग उस पर आंख मूंदकर भरोसा कर लेता है, तो यह पूरे सिस्टम की नाकामी है।
सवाल यह भी उठ रहा है कि क्या भविष्य में ऐसे और भी फर्जी आदेश सामने आएंगे? और अगर आए, तो क्या विभाग उन्हें समय रहते पकड़ पाएगा?
आगे क्या?
अब पुलिस जांच से यह तय होगा कि दोषी केवल रामसेवक साहू है या विभागीय अधिकारियों की भी इसमें भूमिका रही है। अगर मिलीभगत साबित होती है, तो कई बड़े चेहरे बेनकाब हो सकते हैं। वहीं, राज्य स्तर पर भी यह मामला चर्चा का विषय बन चुका है। स्वास्थ्य विभाग पर दबाव है कि वह अपनी प्रक्रियाओं को सख्त करे और दस्तावेजों की सत्यता जांचने की ठोस व्यवस्था करे।
रायगढ़ का यह मामला एक चेतावनी है। फर्जी आदेश का यह कारनामा न केवल एक कर्मचारी की चालाकी को उजागर करता है, बल्कि यह भी बताता है कि सिस्टम कितना कमजोर है। जनता अब यह उम्मीद कर रही है कि जांच निष्पक्ष और कठोर होगी, ताकि भविष्य में कोई और संविदा स्वास्थ्यकर्मी या अधिकारी इस तरह की धांधली करने की हिम्मत न कर सके।
यह केवल एक “फर्जी आदेश” नहीं था, बल्कि पूरे स्वास्थ्य विभाग की कार्यप्रणाली की पोल खोलने वाला कड़वा सच था।