“स्थानांतरण के बाद भी गरियाबंद से मोहब्बत: नरसिंह ध्रुव बने विभाग की नाक पर मक्खी — दशकों से कुंडली मारकर बैठे, करोड़ों की अवैध संपत्ति का खेल उजागर!”
Gariyaband/गरियाबंद जिले में एक प्रशासनिक ड्रामा चरम पर है। शासन द्वारा जारी आदेशों को ठेंगा दिखाते हुए सहायक संचालक कृषि (वर्तमान पद: सहायक भूमि संरक्षक अधिकारी, गरियाबंद) नरसिंह ध्रुव का नाम फिर सुर्खियों में है। स्थानांतरण आदेश जारी हुए महीनों बीत गए, नई पदस्थापना शासकीय कृषि नवीन प्रक्षेत्र पखांजूर, जिला कांकेर में की गई, लेकिन साहब अभी तक गरियाबंद की माटी से मोह नहीं छोड़ पा रहे। सवाल यह है कि आखिर विभागीय आदेश के बावजूद इन्हें भारमुक्त क्यों नहीं किया गया? और क्या विभाग भी प्रशासन की आंखों में धूल झोंक रहा है?
स्थानांतरण आदेश बना मज़ाक!
प्रशासनिक फेरबदल को मजबूती देने के लिए स्थानांतरण आदेश निकाले जाते हैं। लेकिन जब अफसर ही उस आदेश को ताक पर रख दें, तो जनता में शासन की साख पर सवाल खड़े होना लाज़मी है। सूत्रों की मानें तो नरसिंह ध्रुव का स्थानांतरण सिर्फ कागजों पर हुआ है, जमीनी हकीकत यह है कि वे आज भी गरियाबंद में कुर्सी जमाए बैठे हैं।
दशकों से जमे रहने का ‘राज़’!
दशकों से एक ही जिले में जमे रहना कोई साधारण बात नहीं है। प्रशासनिक सेवा में लंबे समय तक एक ही जिले में बने रहना नियमविरुद्ध है। लेकिन ध्रुव साहब ने नियम-कायदों की धज्जियां उड़ाकर गरियाबंद को ही स्थायी ठिकाना बना लिया है। यहां तक कि वे विभागीय अधिकारियों की मिलीभगत से खुद को भारमुक्त न करने का खेल खेल रहे हैं। सवाल उठता है — क्या यह नियमों का खुला उल्लंघन नहीं है?
विभाग की चुप्पी संदिग्ध!
गरियाबंद जिले के लोग अब खुलेआम सवाल पूछ रहे हैं — क्या विभाग भी ध्रुव साहब के साथ खड़ा है? अगर नहीं, तो अब तक उन्हें कांकेर पदस्थापना पर क्यों नहीं भेजा गया? यह चुप्पी अपने आप में रहस्यों को जन्म देती है।
सूत्रों का बड़ा खुलासा: करोड़ों की संपत्ति!
सूत्रों की माने तो गरियाबंद जिले में रहते हुए नरसिंह ध्रुव ने बिना विभागीय अनुमति के करोड़ों की अवैध संपत्ति बनाई है। आलीशान मकान, कृषि भूमि, और बेहिसाब लेन-देन की चर्चाएं अब सिर्फ फुसफुसाहट तक सीमित नहीं हैं। सवाल उठता है — क्या इन संपत्तियों की जांच होगी? और अगर होगी, तो कब?
जनता का सवाल: शासन लाचार या मिलीभगत?
जनता के मन में सबसे बड़ा सवाल यही है कि आखिर शासन-प्रशासन इतने लंबे समय से चुप क्यों है। अगर विभाग ईमानदारी से आदेश का पालन करवाता, तो ध्रुव साहब आज कांकेर में अपनी ड्यूटी निभा रहे होते। लेकिन उल्टा हो रहा है — आदेश जारी होने के बावजूद अमल नहीं हो रहा। इससे यह संदेश जा रहा है क्या शासन लाचार है या फिर मिलीभगत में शामिल?
गरियाबंद में पांव पसारता भ्रष्टाचार!
दशकों से एक ही जिले में रहने का मतलब है — विभागीय कामकाज पर पकड़ बनाना, राजनीतिक संपर्क मजबूत करना और प्रशासनिक ढांचे पर हावी होना। यही कारण है कि भ्रष्टाचार की जड़ें गरियाबंद में गहरी जम चुकी हैं। ध्रुव साहब जैसे अधिकारी जब नियमों को ठेंगा दिखाते हैं, तो इसका सीधा असर किसानों और आम जनता पर पड़ता है। कृषि जैसे महत्वपूर्ण विभाग का भरोसा ही तबाह हो जाता है।
जवाबदेही कौन तय करेगा?
प्रश्न सीधा है —
•अगर आदेश का पालन नहीं होता, तो दोषी कौन?
•अगर विभागीय मिलीभगत है, तो कार्रवाई किस पर होगी?
•अगर करोड़ों की संपत्ति का मामला सच है, तो जांच एजेंसी कब तक खामोश रहेगी?
जनता में बढ़ता गुस्सा!
स्थानीय लोग अब खुलकर बोल रहे हैं। उनका कहना है कि अगर ऐसे अफसरों को संरक्षण मिलता रहा, तो भ्रष्टाचार पर रोक लगाना नामुमकिन है। गरियाबंद की सड़कों से लेकर गांव की चौपाल तक यही चर्चा है — “ध्रुव साहब कब जाएंगे?”
गरियाबंद में ‘प्रशासनिक तमाशा’!
पूरा मामला अब प्रशासनिक तमाशे में बदल चुका है। एक ओर शासन की साख दांव पर है, दूसरी ओर विभाग की ईमानदारी पर सवाल खड़े हो रहे हैं। अगर शासन वास्तव में पारदर्शिता की बात करता है, तो उसे तुरंत कठोर कदम उठाना होगा।
वरना जनता यही समझेगी कि स्थानांतरण आदेश सिर्फ कागजों पर होते हैं और असली ताकत उन अफसरों के पास होती है, जो नियमों को ठेंगा दिखाकर कुर्सी से चिपके रहते हैं।
अब पूरा जिला गरियाबंद की गलियों से लेकर रायपुर के गलियारों तक यही सवाल गूंज रहा है — “नरसिंह ध्रुव को कब मिलेगा भारमुक्ति का आदेश?” और “क्या विभाग इस बार भी आंख मूंदे रहेगा?”