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September 10, 2025 3:50 pm

“सियासी जंग का पंचायती फतवा: तीन परिवारों पर हुक्का-पानी बंद,,,,,,,पंचायत की तानाशाही ने मासूमों से भी छीन लिया निवाला!”

“सियासी जंग का पंचायती फतवा: तीन परिवारों पर हुक्का-पानी बंद,,,,,,,पंचायत की तानाशाही ने मासूमों से भी छीन लिया निवाला!”

महासमुंद/छत्तीसगढ़ सियासी जंग का पंचायती फतवा महासमुंद जिले के बसना थाना क्षेत्र अंतर्गत ग्राम बुटकीपाली में पंचायत की सियासी रंजिश ने लोकतंत्र और मानवता को शर्मसार कर दिया है। गांव के सरपंच और पंचों की नाराजगी का शिकार बने तीन निर्दोष परिवारों को गांव से बहिष्कृत कर दिया गया है। उनके लिए न तो गांव की दुकानों में राशन है, न पानी, न मदद। बच्चों से लेकर बुजुर्ग तक भय, भूख और सामाजिक तिरस्कार के अंधेरे में जीने को मजबूर हैं।

गुनाह सिर्फ इतना कि चुनाव में किया विपक्ष का समर्थन:- पीड़ित परिवारों — राजेश कुमार (जाति मरार), झंगलू सिंग (जाति गोंड) और बुधराम साहू (जाति तेली) — का दोष मात्र इतना था कि उन्होंने सरपंच चुनाव में वर्तमान सरपंच रोहित साहू का समर्थन नहीं किया, बल्कि विपक्षी उम्मीदवार का पक्ष लिया। यह लोकतंत्र में उनका अधिकार था, लेकिन जीत के नशे में चूर सरपंच और उनके सहयोगी पंचों ने इसे अपनी तौहीन समझ लिया।

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सरपंच और पंचों ने सुनाया ‘सामाजिक मौत’ का फरमान:- चुनाव जीतने के बाद सरपंच रोहित साहू, पंच तोपचंद पटेल, मनोज खटकर, नागेश्वर भोई, लक्ष्मीनारायण साहू और ग्राम समिति अध्यक्ष जगदीश साहू ने अपने प्रभाव का दुरुपयोग करते हुए इन तीनों परिवारों का हुक्का-पानी बंद कर दिया। गांव में ऐलान कर दिया गया कि कोई भी व्यक्ति इन परिवारों से मेल-जोल रखेगा, तो उसे पाँच से दस हजार रुपये का जुर्माना भरना पड़ेगा।

बच्चों तक को नहीं मिल रहा सामान, दुकानदार भी खामोश:- गांव के दुकानदार भी अब इन परिवारों को कोई भी सामान देने से साफ इनकार कर रहे हैं। पीड़ितों ने वीडियो दिखाते हुए बताया कि दुकानदारों को डर है कि अगर उन्होंने बहिष्कृत परिवारों को कुछ बेचा, तो उन्हें पंचायत के कोप का शिकार होना पड़ेगा। बच्चों को टॉफी तक नसीब नहीं हो रही।

मदद करने वालों पर भी जुर्माना:- गांव के निवासी दरस, पिंटू और तीरथ ने जब पीड़ित परिवारों की मदद करने की कोशिश की, तो पंचायत ने उन पर पाँच-पाँच हजार रुपये का दंड ठोंक दिया। इसके बाद से गांव में भय का माहौल है और कोई भी आगे आने को तैयार नहीं।

पुलिस और प्रशासन की चुप्पी भी सवालों के घेरे में
पीड़ितों ने बसना थाने में इस सामाजिक बहिष्कार की शिकायत दर्ज कराई है, लेकिन अब तक पुलिस ने कोई कार्रवाई नहीं की है। निराश होकर अब उन्होंने जिला कलेक्टर और पुलिस अधीक्षक को लिखित में शिकायत सौंपकर न्याय की गुहार लगाई है।

सरपंच बोले – “मुझे नहीं है कोई जानकारी”
जब सरपंच रोहित साहू से फोन पर संपर्क किया गया, तो उन्होंने पूरे मामले से अनभिज्ञता जताई। उनका कहना है, “मुझे इस बारे में कोई जानकारी नहीं है।” लेकिन गांव के वीडियो और पीड़ितों की बातें कुछ और ही कहानी बयां कर रही हैं।

सरकारी योजनाओं से भी वंचित किए गए पीड़ित
बदले की भावना में सरपंच ने इन परिवारों को प्रधानमंत्री आवास योजना जैसे सरकारी लाभ से भी वंचित कर दिया है। आवास का सर्वे तक नहीं किया गया। यह न केवल संविधान के मूल अधिकारों का उल्लंघन है, बल्कि अमानवीय भी है।

अब सवाल यह उठता है – क्या ग्रामीण सत्ता का ऐसा दुरुपयोग सहना पड़ेगा?

क्या लोकतांत्रिक व्यवस्था में कोई व्यक्ति अपने मताधिकार का प्रयोग करने की इतनी बड़ी कीमत चुकाएगा? क्या प्रशासन जागेगा और इन परिवारों को न्याय मिलेगा, या फिर यह मामला भी कागज़ों की धूल में दब कर रह जाएगा?

बहरहाल, तीन परिवारों की आवाज आज महासमुंद से निकल कर शासन और न्याय की चौखट तक पहुंच चुकी है – अब देखना है कि कब तक रहमत बरसती है और डर के साये में जी रहे इन लोगों को इंसाफ नसीब होता है।

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