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September 10, 2025 4:05 pm

संविधान के आकाश में गूंजा इस्तीफ़े का वज्रपात — धनखड़ ने छोड़ा उपराष्ट्रपति पद,स्वास्थ्य कारणों का दिया हवाला!

संविधान के आकाश में गूंजा इस्तीफ़े का वज्रपात — धनखड़ ने छोड़ा उपराष्ट्रपति पद,स्वास्थ्य कारणों का दिया हवाला!

नई दिल्ली। भारत की राजनीति में सोमवार शाम एक अप्रत्याशित भूचाल आया, जब देश के उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने अचानक अपने पद से इस्तीफ़ा दे दिया। यह फैसला जितना चौंकाने वाला था, उतना ही संवेदनशील और भावुक भी। उन्होंने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु को भेजे अपने त्यागपत्र में स्वास्थ्य कारणों और चिकित्सकीय सलाह का हवाला देते हुए कहा कि अब उनके लिए सबसे बड़ा धर्म “स्वास्थ्य” है।

यह इस्तीफ़ा न केवल राजनीतिक गलियारों में चर्चा का विषय बना, बल्कि देशभर में आम जनता को भी स्तब्ध कर गया। सोशल मीडिया से लेकर संसद भवन तक, हर ओर एक ही सवाल गूंजने लगा—क्या कोई और कारण है इस इस्तीफ़े के पीछे?

धनखड़ ने अपने त्यागपत्र में साफ तौर पर लिखा है—

स्वास्थ्य की प्राथमिकता और चिकित्सकीय सलाह का पालन करते हुए, मैं भारत के उपराष्ट्रपति पद से तत्काल प्रभाव से त्यागपत्र दे रहा हूं।”

उन्होंने भारत के संविधान के अनुच्छेद 67(ए) का हवाला देते हुए यह इस्तीफ़ा सौंपा, जो उपराष्ट्रपति को स्वेच्छा से पद त्यागने की वैधानिक प्रक्रिया प्रदान करता है। अपने पत्र को उन्होंने सोशल मीडिया एक्स (पूर्व ट्विटर) पर भी साझा किया, जिसे कुछ ही मिनटों में हजारों बार शेयर और रीपोस्ट किया गया।

भावुक विदाई, शालीन अंदाज़!

अपने त्यागपत्र में धनखड़ का अंदाज़ पूरी तरह से भावुक और शालीन रहा। उन्होंने राष्ट्रपति को उनके सौहार्दपूर्ण संबंधों और सहयोग’ के लिए धन्यवाद दिया, और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तथा मंत्रिपरिषद को सदैव मार्गदर्शन और समर्थन’ के लिए आभार व्यक्त किया।

“मुझे संसद के सभी माननीय सदस्यों से जो स्नेह, विश्वास और सम्मान मिला, वह जीवनभर मेरे हृदय में बना रहेगा।”
— जगदीप धनखड़

यह पंक्तियाँ न केवल उनके कार्यकाल की गरिमा को दर्शाती हैं, बल्कि यह भी स्पष्ट करती हैं कि यह त्यागपत्र किसी नाराज़गी या राजनीतिक टकराव का परिणाम नहीं है, बल्कि एक व्यक्तिगत और स्वास्थ्य-संबंधी निर्णय है।

राजनीतिक हलचलों का दौर!

हालाँकि, राजनीति में हर कदम के पीछे कई परतें होती हैं। विपक्षी दलों ने इस इस्तीफ़े को ‘सिर्फ स्वास्थ्य कारणों’ तक सीमित मानने से इनकार कर दिया है। कुछ नेताओं ने सवाल उठाया कि जब तक स्थिति गंभीर न हो, कोई व्यक्ति इतना बड़ा संवैधानिक पद अचानक क्यों छोड़ेगा? वहीं भाजपा के कई नेताओं ने इसे एक “सम्मानजनक विदाई” बताया और उनके स्वस्थ जीवन की कामना की।

कौन होगा अगला उपराष्ट्रपति?

अब सबसे बड़ा सवाल यही हैधनखड़ के बाद कौन?
संविधान के मुताबिक, जब तक नया उपराष्ट्रपति चुना नहीं जाता, राष्ट्रपति के निर्देशों के अनुसार उनकी भूमिका निर्वाह की जाती है। लेकिन ऐसे पद पर कोई रिक्तता लंबे समय तक नहीं रह सकती। जल्द ही संसद की सचिवालय द्वारा चुनाव की अधिसूचना जारी की जा सकती है।कई नाम पहले से ही चर्चाओं में हैं—कुछ वरिष्ठ भाजपा नेता, कुछ पूर्व राज्यपाल, तो कुछ उच्च न्यायिक पृष्ठभूमि वाले प्रतिष्ठित व्यक्ति भी संभावित माने जा रहे हैं।

धनखड़ का कार्यकाल – दृढ़, निर्णायक, गरिमामय!

धनखड़ का कार्यकाल भले ही अपेक्षाकृत छोटा रहा हो, लेकिन उन्होंने जिस सख्ती और शिष्टता के साथ राज्यसभा की अध्यक्षता की, वह अक्सर चर्चा में रही। उन्होंने बहस के स्तर को बनाए रखने की लगातार कोशिश की और कई बार विपक्ष के तीखे तेवरों का भी धैर्यपूर्वक सामना किया।उनकी छवि एक संवेदनशील किंतु सख्त प्रशासक की रही, जिन्होंने संविधान और प्रक्रियाओं का पालन करने में कोई कोताही नहीं बरती।

अंतिम शब्द: एक युग का अवसान या नई शुरुआत?

धनखड़ का यह त्यागपत्र एक युग के अवसान की तरह है—ऐसे समय में जब देश कई आंतरिक और बाहरी चुनौतियों से जूझ रहा है, एक अनुभवी और संवैधानिक पदाधिकारी का जाना निश्चित ही शून्य छोड़ता है। लेकिन यह भी संभव है कि अब धनखड़ अपने स्वास्थ्य को प्राथमिकता देते हुए किसी और तरीके से देशसेवा करें।

देश अब उनकी कुशलता, अनुभव और विद्वता को नए रूप में देखने की अपेक्षा रखता है। लेकिन फिलहाल, राष्ट्र उन्हें एक गरिमामय विदाई दे रहा है—सादर, श्रद्धा और सम्मान के साथ।

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