“मोदी की गारंटी अधूरी, छत्तीसगढ़ के सरकारी कर्मचारी सड़कों पर — 22 अगस्त को होगा प्रदेशव्यापी दफ्तर बंद आंदोलन”
Raipur/छत्तीसगढ़ में सरकारी कर्मचारियों का गुस्सा अब उबाल पर है। लंबे समय से अपनी मांगों को लेकर इंतजार कर रहे विभिन्न शासकीय विभागों के कर्मचारी अब सामूहिक अवकाश लेकर दफ्तरों का ताला जड़ने की तैयारी में हैं। 22 अगस्त, शुक्रवार को प्रदेश के हर जिला, विकासखण्ड और तहसील मुख्यालयों में कर्मचारी ज़बरदस्त धरना-प्रदर्शन करेंगे। इस बड़े आंदोलन का ऐलान छत्तीसगढ़ कर्मचारी अधिकारी फेडरेशन ने किया है, जिसमें सैकड़ों संगठन शामिल होंगे।
कर्मचारियों का कहना है कि 2023 विधानसभा चुनाव में भाजपा के घोषणा पत्र में शामिल “मोदी की गारंटी” के तहत कर्मचारियों से किए गए वादों को अभी तक लागू नहीं किया गया है। इससे नाराज होकर फेडरेशन ने आंदोलन का बिगुल बजा दिया है।
बैठक में बनी आंदोलन की रणनीति!
7 अगस्त को जिला पंचायत सभागार में विभिन्न संगठनों के प्रमुखों की बैठक हुई, जिसमें आंदोलन की रूपरेखा तय की गई। बैठक में साफ कहा गया कि अब धैर्य की सीमा समाप्त हो चुकी है।
फेडरेशन की 15 जून को हुई प्रांतीय बैठक में अध्यक्ष कमल वर्मा की अध्यक्षता में सभी घटक संगठनों ने सर्वसम्मति से तय किया था कि यदि 16 जुलाई तक सरकार मांगों पर कोई ठोस फैसला नहीं लेती है, तो चरणबद्ध आंदोलन किया जाएगा।
पहले चरण में जिला और ब्लॉक स्तर पर रैलियां और ज्ञापन सौंपे गए, लेकिन सरकार की चुप्पी ने कर्मचारियों को दूसरा चरण शुरू करने पर मजबूर कर दिया। अब 22 अगस्त को सभी सरकारी विभागों के कर्मचारी एक साथ सामूहिक अवकाश लेकर दफ्तर बंद करेंगे और सड़कों पर उतरेंगे।
कौन-कौन होगा आंदोलन में शामिल?
फेडरेशन के जिला संयोजक विजय लहरे ने बताया कि इस ऐतिहासिक प्रदर्शन में दर्जनों संगठन शामिल रहेंगे, जिनमें—
• वन कर्मचारी संघ,
• तृतीय वर्ग कर्मचारी संघ,
• लिपिक संघ,
• शिक्षक फेडरेशन,
• सहायक पशु चिकित्सा अधिकारी संघ,
• लघु वेतन कर्मचारी संघ,
• जीएसटी कर्मचारी संघ,
• सहित अन्य सभी घटक संगठन दफ्तर बंद कर आंदोलन स्थल पर जुटेंगे।
मंच से गरजी नेताओं की आवाज़!
बैठक में जी.आर. चंद्रा (प्रांतीय पर्यवेक्षक), रोहित तिवारी (प्रांतीय पर्यवेक्षक), अजीत दुबे (प्रांताध्यक्ष, वन कर्मचारी संघ), राजेश चटर्जी (संभाग प्रभारी, दुर्ग), हरी शर्मा, महासचिव अनुरूप साहू, आनंद मूर्ति झा (पेंशनर संघ प्रमुख), मोतीराम खिलाड़ी (जिलाध्यक्ष, लघु वेतन कर्मचारी संघ), संजय शर्मा (नगर निगम कर्मचारी संघ प्रमुख), श्रवण ठाकुर, प्रदीप चौहान ‘बाबा भाई’ (जीएसटी कर्मचारी संघ प्रमुख), शिवदयाल धृतलहरे (सचिव), धर्मेंद्र देशमुख, निर्मला रात्रे समेत सैकड़ों कर्मचारी मौजूद थे।
नेताओं ने एक स्वर में कहा—
“यह आंदोलन सिर्फ कर्मचारियों का हक पाने के लिए नहीं, बल्कि उस भरोसे को पूरा करने के लिए है जो चुनाव के समय दिया गया था। सरकार ने वादे पूरे नहीं किए, तो अब कर्मचारी अपनी ताकत दिखाएंगे।”
कर्मचारियों की प्रमुख मांगें:-हालांकि फेडरेशन ने लिखित में सभी मांगें शासन को भेज दी हैं, लेकिन इनमें प्रमुख हैं—
• वेतन विसंगतियों का निराकरण।
• पुरानी पेंशन योजना की बहाली।
• महंगाई भत्ते की बकाया किश्तों का भुगतान।
• संविदा और स्थायी कर्मचारियों के बीच सेवा शर्तों की समानता।
• समय पर पदोन्नति और रिक्त पदों की नियमित भर्ती।
कर्मचारियों का कहना है कि ये सभी वादे भाजपा के घोषणा पत्र में स्पष्ट रूप से दर्ज थे, जिन्हें ‘मोदी की गारंटी’ के नाम से जनता को बताया गया, लेकिन अब तक कोई क्रियान्वयन नहीं हुआ।
प्रदेशभर में ठप रहेंगे कामकाज!
22 अगस्त को प्रदेश के हजारों दफ्तरों में कामकाज पूरी तरह ठप रहेगा। स्कूल, वन विभाग, जीएसटी, नगर निगम, पंचायत, स्वास्थ्य विभाग, कृषि विभाग, सहकारिता, राजस्व कार्यालय—कहीं भी सामान्य कार्य नहीं होंगे।
जिला और ब्लॉक मुख्यालयों में कर्मचारी बैनर, पोस्टर और नारों के साथ जुलूस निकालेंगे। धरना स्थलों पर सरकार के खिलाफ जोरदार भाषण होंगे और मांग पत्र सौंपा जाएगा।
सरकार पर दबाव की रणनीति!
फेडरेशन के पदाधिकारियों का मानना है कि यह आंदोलन सिर्फ एक दिन का नहीं रहेगा। यदि 22 अगस्त के बाद भी सरकार ने मांगें पूरी नहीं कीं, तो अनिश्चितकालीन हड़ताल पर जाने की तैयारी है।
एक नेता ने साफ कहा—
“हमारे पास अब सिर्फ दो विकल्प हैं—या तो सरकार हमारी मांगें मान ले, या फिर हम आने वाले दिनों में राजधानी रायपुर में ऐतिहासिक घेराव करेंगे।”
जनता पर पड़ेगा असर!
विशेषज्ञों का कहना है कि अगर यह आंदोलन लंबा खिंच गया तो सरकारी योजनाओं, पेंशन, वेतन, स्कूल शिक्षा, राजस्व कार्य और स्वास्थ्य सेवाओं पर बड़ा असर पड़ेगा। ग्रामीण क्षेत्रों में विशेष रूप से पंचायत और राजस्व कार्य रुक जाएंगे।
मीडिया प्रभारी का बयान!
फेडरेशन के मीडिया प्रभारी भानु प्रताप यादव ने लिखित जानकारी जारी कर कहा—
“यह आंदोलन किसी राजनीतिक दल के खिलाफ नहीं, बल्कि हमारे हक के लिए है। हमें उम्मीद है कि सरकार अंतिम समय में कर्मचारियों की समस्याओं को समझेगी और समाधान करेगी, लेकिन अगर ऐसा नहीं हुआ तो यह सिर्फ शुरुआत होगी।”
22 अगस्त को छत्तीसगढ़ के सरकारी दफ्तरों के दरवाजे बंद होंगे, फाइलें अलमारी में धूल खाएंगी, और कर्मचारी नारे लगाते सड़कों पर होंगे। सवाल सिर्फ इतना है—क्या ‘मोदी की गारंटी’ वाकई पूरी होगी, या फिर यह आंदोलन प्रदेश की राजनीति में एक नया मोड़ लाएगा?