“महासमुन्द भू – अभिलेख शाखा प्रभारी अधिकारी डिप्टी कलेक्टर आशीष कर्मा का ‘नया कानून’,,,,,,, प्रशासनिक नियमों को दरकिनार कर अपनाए निजी फरमान”
महासमुन्द/जिले के भू-अभिलेख शाखा में पदस्थ डिप्टी कलेक्टर आशीष कर्मा एक बार फिर विवादों में घिरते नजर आ रहे हैं। प्रशासनिक जिम्मेदारियों के बीच अपने निजी नियम-कानूनों के चलते वे चर्चा का केंद्र बने हुए हैं। मामला उस समय गरमा गया जब उन्होंने जमीन से संबंधित एक प्रकरण में पक्षकार द्वारा भेजे गए प्रतिनिधि (दूत) को प्रकरण दस्तावेज दिखाने से मना कर दिया। यह निर्णय न केवल नियमों के विरुद्ध माना जा रहा है, बल्कि इससे आम जनता और अधिवक्ताओं के बीच भी असंतोष फैल गया है।
प्रशासनिक नियमों से इतर चलता डिप्टी कलेक्टर का ‘स्वशासन’:- आमतौर पर राजस्व कार्यालयों में यह सामान्य प्रक्रिया है कि किसी भी भूमि विवाद, पूर्व में चले भूमि संबंधित प्रकरण, मिशल, नामांतरण जैसे मामलों में पक्षकार स्वयं उपस्थित नहीं हो पाने की स्थिति में अधिकृत प्रतिनिधि भेज सकते हैं। ऐसे प्रतिनिधियों को दस्तावेज दिखाकर प्रक्रिया को पारदर्शिता प्रदान की जाती है। वह दस्तावेज पब्लिक दस्तावेज है लेकिन महासमुन्द में पदस्थ डिप्टी कलेक्टर आशीष कर्मा द्वारा इस परंपरा को नकारते हुए, प्रतिनिधियों को दस्तावेजों का अवलोकन करने से रोक दिया गया।
पक्षकार प्रतिनिधि उनसे उनके चैंबर में स्वयं पूछने गया कि आपने किसके आदेश के पब्लिक दस्तावेज दिखाने के लिएं मना किया है उनके जवाब द्वारा स्पष्ट कहा कि केवल पक्षकार ही दस्तावेज देख सकते हैं, और कोई प्रतिनिधि या अधिवक्ता इस कार्य में दखल नहीं दे सकता। उनके इस रवैये से कई मामलों में अनावश्यक देरी हो रही है, और दूर-दराज से आने वाले ग्रामीणों को कई बार चक्कर लगाने पड़ रहे हैं।
किसानों के लियें बना बड़ा मुद्दा :- महासमुन्द जिले का 150 कि. मी. तक का क्षेत्र है जिससे किसानों को आने और जाने में बहुत तकलीफों का सामना करना पड़ता है जिससे किसान अपने कोई प्रतिनिधि या वकीलों के माध्यम से दस्तावेजों को प्राप्त कर लेता है अगर इसी तरह नियम चला तो किसानों को अपने दस्तावेज ले ही नहीं पायेगा जिससे उसके राजस्व कार्यों में बाधा उत्पन्न होगी इसकी जवाब देही किसकी होगी!
नियमों की अनदेखी या अनुशासन का दिखावा?
आलोचकों का मानना है कि डिप्टी कलेक्टर का यह कदम एकतरफा और गैरकानून है। छत्तीसगढ़ भू-राजस्व संहिता एवं प्रशासनिक प्रक्रिया नियमों के अनुसार, अधिकृत प्रतिनिधि को दस्तावेज दिखाना या सूचना देना न केवल वैध है बल्कि कई मामलों में अनिवार्य भी हो जाता है। ऐसे में कर्मा का यह फैसला एक तानाशाही रवैये की ओर इशारा करता है, जिसे प्रशासनिक अनुशासन के नाम पर लागू किया जा रहा है।
वहीं, उनके समर्थकों का कहना है कि यह कदम फर्जीवाड़े और दलालों की घुसपैठ को रोकने के लिए उठाया गया है। कर्मा का यह प्रयास राजस्व प्रक्रिया में पारदर्शिता और जिम्मेदारी को बढ़ाने वाला है।
जनता और वकीलों में रोष:- कलेक्टोरेट परिसर में अब इस मुद्दे को लेकर चर्चा जोरों पर है। कुछ अधिवक्ता महासमुन्द ने इस मामले पर विरोध दर्ज करने की बात कही है। कई वकीलों ने आरोप लगाया है कि यह निर्णय कार्य प्रणाली को बाधित कर रहा है और इससे न्याय प्रक्रिया में विलंब हो रहा है।
एक वकील ने बताया, “अगर कोई किसान या ग्रामीण खुद आने में असमर्थ है और उसका अधिकृत दूत दस्तावेज देखना चाहता है, तो उसे मना करना मौलिक अधिकारों का हनन है।
रोचक तथ्य:- महासमुन्द भू अभिलेख शाखा का प्रिंटर मशीन का नया कार्यनाम आय दिन खराब होने कि कहानी बनती रहतीं हैं जिससे दूर दराज से आये पक्षकारो को खाली हाथ जाना पड़ जाता है इस मामले में एक दिलचस्प बात यह भी है कि 1100 गांव के लिये नकल बनाने का दायित्व सिर्फ एक कर्मचारी द्वारा कराया जा रहा है कर्मचारी की कमी के कारण दूर दराज से आयें किसानों को खाली हाथ जाना पड़ जाता है 15 दिन का समय अवधि नकल प्राप्ति को दी जाती है जबतक पक्षकार अभिलेख शाखा नहीं जाता हैं तब तक नकल नहीं बनती है इससे भ्रष्टाचार परिलक्षित होता है शेष बचे हुऐ अब आवेदनों का ऑनलाईन निराकृत कर दिया जाता है।
प्रशासन की चुप्पी, सवालों के घेरे में कार्यशैली:-
अब तक जिला प्रशासन की ओर से इस पूरे प्रकरण पर कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है। लेकिन आंतरिक सूत्रों का कहना है कि इस फैसले से प्रशासनिक गलियारों में भी असहमति है। कई अधिकारी मानते हैं कि ऐसे निर्णयों से जनता का विश्वास शासन व्यवस्था से डगमगाता है।
नाटकीय मोड़ की ओर बढ़ता विवाद:
अब यह देखना रोचक होगा कि क्या डिप्टी कलेक्टर अपने इस निर्णय पर पुनर्विचार करते हैं या फिर यह मुद्दा उच्च स्तर तक जाएगा। वकीलों का कहना है कि यदि आवश्यक हुआ तो वे राज्य प्रशासन के पास शिकायत दर्ज कर मामले की जांच की मांग करेंगे।
कुल मिलाकर, महासमुन्द में भू-अभिलेख शाखा अब नियमों की जगह ‘निजी फरमान’ से संचालित होता दिखाई दे रहा है, जहां एक अधिकारी ने पूरे प्रशासनिक ढांचे को अपने नियमों के अनुसार मोड़ दिया है।
क्या जिला जिला कलेक्टर किसान हित के इस विषय को संज्ञान लेंगे या भू अभिलेख शाखा के इस मुद्दे को दरकिनार करेंगे?