Raipur/ छत्तीसगढ़ की बहुचर्चित रीपा (रुरल इंडस्ट्रियल पार्क) योजना एक बार फिर कठघरे में है। शासन‑स्तरीय विशेष जांच के बाद रायपुर संभागायुक्त ने मंगलवार देर शाम भड़के सूरज‑सी कार्रवाई करते हुए तीन पंचायत सचिवों को तत्क्षण निलंबित कर दिया जिसमें एक सचिव महासमुंद से है , जबकि तीन तत्कालीन जनपद पंचायत सीईओ को कारण‑बताओ नोटिस जारी कर 15 दिन के भीतर जवाब माँग लिया है। जंगल‑जहाँक सुनसान रात में धमाके की तरह आये इस आदेश ने न सिर्फ पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग बल्कि पूरे प्रशासनिक महकमे को झकझोर दिया है।
जाँच में खुली परत‑दर‑परत अनियमितताओं की किताब!
रीपा योजना का उद्देश्य था ग्रामीण युवाओं को गाँव में ही रोजगार, कुटीर उद्योगों को तकनीकी सहायता और आधुनिक मशीनें उपलब्ध कराना। मगर भंडार क्रय नियमों की धज्जियाँ उड़ाते हुए बिना किसी तकनीकी परीक्षण लाखों‑करोड़ों की मशीनें खरीदी गईं। शुल्क भुगतान भी ‘टुकड़ों में समोसा‑नुमा’ तरीके से हुआ ताकि निगरानी तन्त्र की पकड़ ढीली रहे। जाँच दल ने जब बिल‑बुक का पन्ना‑दर‑पन्ना पलटा, तो हर कोने से भ्रष्टाचार की सड़ाँध उठती मिली।
1.निलंबन की गूँज: ये रहे तीन ‘काली पोशाक’ वाले सचिव,
2.शंकर साहू — ग्राम पंचायत बिरकोनी, जनपद पंचायत महासमुंद,
3.खिलेश्वर ध्रुव — ग्राम पंचायत गिर्रा, जनपद पंचायत पलारी (बलौदाबाजार‑भाटापारा),
4.टीकाराम निराला — ग्राम पंचायत लटुआ, जनपद पंचायत बलौदाबाजार,
इन पर सार्वजनिक निधि से ‘बिना नाप‑जोख’ मशीन माँगने और भुगतान चिरौंजी‑छाल की तरह काट‑काट कर बाँटने का आरोप है। संभागायुक्त ने इन्हें तत्काल प्रभाव से निलंबित कर प्रकरण सतर्कता शाखा को सौंप दिया है।
1.शो‑कॉज़ नोटिस का चाबुक: तीन ‘जनपद शीर्ष’ भी घेरे में,
2.रोहित नायक — तत्कालीन सीईओ, जनपद पंचायत पलारी,
3.रवि कुमार — तत्कालीन सीईओ, जनपद पंचायत बलौदाबाजार,
4.लिख़त सुल्ताना — तत्कालीन सीईओ, जनपद पंचायत महासमुंद,
इन अधिकारियों से पूछा गया है कि “क्यों न आपके विरुद्ध विभागीय एवं दाण्डिक कार्रवाई की जाए?” नोटिस में साफ‑लफ्ज़ों में चेतावनी दी गई है: “उत्तर असंतोषजनक मिलने पर समझा जाए कि आरोप सिद्ध हैं और दण्ड स्वाभाविक है।”
‘रीपा’ का सपना या भ्रष्टाचार का बाज़ार?
रीपा योजना का वज़न राज्य सरकार के लिए उतना ही था जितना धान‑किसानों के लिए पहली बरसात। परन्तु मशीनों के स्पॉट‑टेस्ट तो दूर, लाईसेंस, जीएसटी पंजीयन, अनुभव प्रमाण—किसी की भी पूछ‑परख नहीं हुई। चौकाने वाली बात यह रही कि कई मशीनें एक ही फर्म‑कोड से तीन‑तीन बिल पर खरीदी गईं, जबकि नियम एक सप्लायर से अधिकतम 25 प्रतिशत सामग्री लेने की इजाज़त देते हैं।
‘कण‑कण पर नजर’ से क्यों फिसली विभागीय निगाह?
विशेषज्ञों के अनुसार, सेंट्रलाइज्ड ई‑प्रोक्योरमेंट पोर्टल से बाहर जाकर ऑफ़‑लाइन निविदाएँ ली गईं, जिससे बिड‑ट्रैकिंग गायब रही। आज जब QR कोड‑स्कैन से दूध तक का हिसाब रखा जाता है, वहाँ करोड़ों की मशीनों का आँकड़ा ‘कंप्यूटर अनुपलब्ध’ बताकर छिपा लिया गया!
परछाइयों में कसमसाते सवाल!
• क्या वन‑टाइम सेटलमेंट नहीं, फ़ुल‑टाइम इंस्टालमेंट बना भुगतान तंत्र?
• तकनीकी परीक्षण के बग़ैर किस माइक्रो‑एंटरप्राइज़ की उड़ान संभव?
• पंचायत सचिव और सीईओ के बीच की ‘संशय‑मैत्री’ का असली सूत्रधार कौन?
राजनीतिक गलियारों में लगी आग!
“‘रीपा’ अब ‘री पा’— यानी ‘रीबैलेंस पैसे’ बन गई है। योजनाएँ नहीं, जेबें भारी करने की दुकान खुली है।” “कार्रवाई इस बात का साक्ष्य है भारतीय जनता पार्टी की सरकार भ्रष्टाचार को बर्दाश्त नहीं करती; दोषी चाहे छोटा हो या बड़ा, बख्शा नहीं जाएगा।”
गाँव वाले बोले—‘सपना टूटा, पर भरोसा जिंदा’
गिर्रा की महिला स्व‑सहायता समूह ने मायूसी जताई, “हमने सोचा था सिलाई‑कढ़ाई की मशीन आएगी तो घर बैठे कमाई होगी, लेकिन अब सब अटका पड़ा है।” बिरकोनी के युवा संगठन का ग़ुस्सा फूटा, “मशीनें तो आईं, पर दो महीने में ही बंद हो गईं; न मरम्मत, न ट्रेनिंग, सब पैसा हवा में।”
आगे क्या?
संभागायुक्त ने साफ़ संकेत दिया, “जाँच का दायरा और बढ़ेगा; जिनके दस्तख़त‑मार्ग से पैसों की दुग्गी‑सुग्गी निकली है, वे शिकंजे से नहीं बचेंगे।” सूत्र बताते हैं कि भंडार क्रय नियम‑2002 के उल्लंघन पर लोकायुक्त को भी फ़ाइल सौंपी जा सकती है। यदि आरोप प्रमाणित हुए तो सचिवों के लिए बर्खास्तगी और सीईओ के लिए सेवा‑समाप्ति से लेकर रिकवरी तक के दरवाज़े खुलेंगे।
जड़ें काटे बिना पेड़ नहीं बचेगा!
रीपा योजना का ध्येय ग्रामीण भारत में ‘मिट्टी से सोना’ उगाना था। परन्तु जब मिट्टी ही दलदल बना दी जाए, तो बीज कैसे फूटे? आज की कार्रवाई महज़ पहला प्रहार है, असली परीक्षा तब होगी जब दोषियों को नैतिक‑वित्तीय दोनों मोर्चों पर दण्ड मिलेगा। दूर‑दराज़ गाँवों में बैठा वह युवा, जिसने भविष्य का ताना‑बाना इस योजना से जोड़ा था, उसी की आँखों में विश्वास का बीज फिर से बोया जाना चाहिए।
आख़िरकार, रीपा नहीं, किसान‑कारीगर‑नारी का सपना तंत्र है; यदि प्रशासन ने समय पर गंदगी का रेशा‑रेशा अलग न किया तो अगली फसल में पत्तियाँ भले हरी दिखें, जड़ें अंदर से सड़ चुकी होंगी। अब गेंद शासन के पाले में है—क्या वह सड़े हिस्से काट कर वृक्ष को नया जीवन देगा, या ‘फाइल‑फुलेरा’ बना तान देगा?