“तिरंगा फहराने की सज़ा—नक्सलियों ने आदिवासी युवक मनेश को मौत के घाट उतारा”
Kanker/15 अगस्त का दिन… जब पूरा देश तिरंगे की शान में डूबा था, जब गांव-गांव, शहर-शहर आज़ादी का जश्न मन रहा था, उसी वक्त छत्तीसगढ़ के आदिवासी अंचल कांकेर जिले के पखांजुर के बिनागुंडा गांव में भी बच्चों की टोली ‘भारत माता की जय’ के नारों से आसमान गुंजा रही थी। गांव का युवा चेहरा मनेश नरेटी बच्चों और अभिभावकों के साथ मिलकर स्वतंत्रता दिवस मना रहा था।उसने नक्सलियों के स्मारक स्थल पर जाकर न सिर्फ तिरंगा फहराया बल्कि भारत माता के जयकारे लगाकर एक बड़ा संदेश दिया कि अब यह इलाका लाल आतंक से बाहर निकलना चाहता है।
लेकिन अफसोस… आज़ादी की यह खूबसूरत तस्वीर कुछ ही दिनों में खून से रंग दी गई।
मनेश का ‘गुनाह’—देशभक्ति और विकास की सोच!
मनेश नरेटी,वह साधारण युवक नहीं था। वह अपने गांव के विकास और बच्चों की शिक्षा को लेकर लगातार काम कर रहा था। गांव के लोगों में नई सोच भर रहा था कि अब बंदूक और बारूद की नहीं, किताब और कलम की ज़रूरत है। यही सोच शायद नक्सलियों को नागवार गुज़री।स्वतंत्रता दिवस के तीन दिन बाद नक्सलियों ने उसे ‘मुखबिरी’ का झूठा आरोप लगाकर जन अदालत में पेश किया और सरेआम उसकी हत्या कर दी।
वीडियो ने खोला सच!
अब इस पूरे घटनाक्रम का वीडियो सामने आया है। वीडियो में साफ दिख रहा है कि छोटे-छोटे मासूम बच्चों के बीच मनेश नरेटी तिरंगा फहरा रहा है। बच्चे और ग्रामीण उत्साह से ‘भारत माता की जय’ और ‘वंदे मातरम’ के नारे लगा रहे हैं।यही वीडियो नक्सलियों की बौखलाहट का कारण बन गया। उनके लिए यह सीधी चुनौती थी कि अब आदिवासी समाज भी उनके खौफ से निकलकर लोकतंत्र और विकास की ओर बढ़ रहा है।
जन अदालत बनी मौत का फरमान!
नक्सली जब गांव पहुंचे तो उन्होंने ग्रामीणों को इकठ्ठा किया। ‘जन अदालत’ लगाई गई और मनेश को सरेआम मार डाला गया। बैनर लगाकर इसकी जिम्मेदारी भी ली गई, मानो देशभक्ति करना कोई अपराध हो।ग्रामीण स्तब्ध हैं। जिस युवक ने गांव के बच्चों को आज़ादी का पाठ पढ़ाया, जिसने तिरंगा फहराकर उम्मीद की लौ जगाई, उसकी ज़िंदगी इतनी बेरहमी से छीन ली गई।
बस्तर में नक्सलवाद ढलान पर—फिर भी जिंदा है ‘खौफ’!
पिछले एक दशक में बस्तर में नक्सलियों की कमर लगभग टूट चुकी है। बड़े-बड़े एनकाउंटर हुए हैं, सैकड़ों नक्सली मारे गए हैं। माड़ इलाके में ही बीते साल 29 नक्सली ढेर किए गए थे। लेकिन यह घटना बता रही है कि थोड़े-बहुत बचे हुए नक्सली अब भी मासूमों पर कहर बरपा रहे हैं।
सवाल यह है कि जब आम जनता अब लोकतंत्र और विकास के साथ खड़ी है, तो इन नक्सलियों को जड़ से खत्म करने में देर क्यों?
ग्रामीणों की आवाज़—“हमें चाहिए सुरक्षा”!
गांव के लोगों ने पुलिस और प्रशासन से साफ कहा है कि वे लोकतंत्र और तिरंगे के साथ हैं। वे विकास चाहते हैं। लेकिन उनकी सबसे बड़ी मांग है—सुरक्षा। उनका कहना है कि अगर ऐसे हालात रहे तो युवा देशभक्ति दिखाने से पहले दस बार सोचेंगे।
अधिकारियों का बयान!
पखांजुर एसडीओपी रविकुमार कुजूर ने कहा कि “हत्या तिरंगा फहराने के कारण हुई है, ऐसा दावा सामने आया है लेकिन अभी इसकी पुष्टि नहीं की जा सकती। फिलहाल पुलिस अपने संपर्क सूत्रों से जानकारी जुटा रही है। परिजनों ने भी अभी औपचारिक शिकायत दर्ज नहीं कराई है।”
भले ही यह बयान आधिकारिक सतर्कता का प्रतीक हो, लेकिन पूरा गांव जानता है कि मनेश को देशप्रेम की कीमत अपनी जान देकर चुकानी पड़ी है।
लोकतंत्र की सबसे खूबसूरत तस्वीर पर खून का धब्बा!
15 अगस्त का वह दृश्य लोकतंत्र की सबसे खूबसूरत तस्वीर था—छोटे-छोटे बच्चों की आंखों में चमक, अभिभावकों के चेहरों पर गर्व और मनेश की मुस्कान, जब उसने तिरंगे को सलामी दी। लेकिन उसी तस्वीर पर अब खून का धब्बा लग गया है।यह केवल एक युवक की हत्या नहीं, बल्कि आज़ादी और लोकतंत्र पर हमला है।
बड़ा सवाल—कब तक?
कब तक मासूमों का खून बहता रहेगा? कब तक ‘जन अदालत’ के नाम पर न्याय का मज़ाक उड़ाया जाएगा? कब तक देशप्रेम और विकास की सोच को गोलियों से कुचला जाएगा?सरकार और सुरक्षा बलों ने बस्तर में बहुत काम किया है, लेकिन अब वक्त आ गया है कि बचे-खुचे नक्सलियों का भी पूरी तरह सफाया कर दिया जाए।
मनेश नरेटी अब इस दुनिया में नहीं है, लेकिन उसकी शहादत व्यर्थ नहीं जानी चाहिए। वह उन आदिवासी युवाओं का प्रतीक बन चुका है, जो बंदूक की जगह किताब और विकास की राह चुनना चाहते हैं।बस्तर की धरती पर तिरंगा हमेशा लहराता रहे, इसके लिए अब सिर्फ शब्दों नहीं, ठोस कार्रवाई की ज़रूरत है।
“लोकतंत्र की यह खूबसूरत तस्वीर अब एक दर्दनाक गाथा बन चुकी है। तिरंगे के सम्मान में जान देने वाले मनेश को आज पूरा बस्तर सलाम कर रहा है।”