“टीकाकरण के नाम पर करोड़ों की लूट:मस्तूरी से कोटा तक अफसरों की करतूत बेनकाब – संघ ने CMHO को दी अंतिम चेतावनी”
Bilaspur/कोविड-19 महामारी से लड़ाई के दौरान जिस योजना को जीवन रक्षक माना गया, उसी योजना में करोड़ों की अनियमितता उजागर होना राज्य की स्वास्थ्य व्यवस्था के चेहरे से नकाब हटाने जैसा है। प्रोत्साहन राशि भुगतान में हुई ₹1,57,46,000 (एक करोड़ सत्तावन लाख छियालिस हजार) की कथित अनियमितता ने अब तूल पकड़ लिया है।
बिलासपुर जिला के मस्तूरी, बिल्हा, तखतपुर, कोटा और शहरी कार्यक्रम प्रबंधक पर लगे गंभीर आरोपों के बाद अब यह मामला सीधा राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के मिशन संचालक और आयुक्त स्वास्थ्य सेवाएं छत्तीसगढ़ के दरवाजे पर दस्तक दे चुका है। संघ ने एक बार फिर CMHO बिलासपुर को पत्र लिखते हुए स्पष्ट कर दिया है कि अब चुप्पी नहीं, कार्यवाही चाहिए – नहीं तो जवाबदेही तय होगी।
कैसे फूटा टीकाकरण में भ्रष्टाचार का बम?
छत्तीसगढ़ में कोविड-19 टीकाकरण को सफल बनाने के लिए सरकार द्वारा फ्रंटलाइन स्वास्थ्यकर्मियों को प्रोत्साहन राशि, यात्रा भत्ता और आवश्यक सामग्री के क्रय हेतु लाखों रुपए की राशि दी गई थी। यह धनराशि नियमानुसार उन कर्मचारियों के लिए थी, जिन्होंने टीकाकरण अभियान में सक्रिय रूप से कार्य किया।
लेकिन मस्तूरी, बिल्हा, तखतपुर, कोटा और शहर में पदस्थ खंड चिकित्सा अधिकारियों और शहरी कार्यक्रम प्रबंधक ने इस राशि के वितरण में जबरदस्त अनियमितता बरती। पात्र कर्मचारियों को उनके हिस्से की राशि नहीं दी गई, वहीं कई ऐसे “आपात्रों” को धनराशि थमा दी गई, जिनका टीकाकरण कार्य से कोई लेना-देना ही नहीं था।
इसके अलावा यात्रा भत्ता के नाम पर अवैध भुगतान और सामग्री क्रय में भी मनमानी की गई – मानो ये रकम सरकारी योजना की नहीं, निजी तिजोरी की हो।
जांच समिति की रिपोर्ट ने खोली पोल!
जब इस मामले की शिकायत की गई, तो तत्कालीन मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी (CMHO), बिलासपुर ने एक जांच समिति का गठन किया। समिति ने अपनी रिपोर्ट में इन अनियमितताओं की स्पष्ट पुष्टि की और साफ कहा कि दोषी अधिकारियों और कर्मचारियों के विरुद्ध नियमानुसार सख्त कार्यवाही की जाए।
परंतु रिपोर्ट आने के बाद भी तत्कालीन CMHO द्वारा ना तो किसी दोषी पर कार्यवाही की गई, ना ही पीड़ित कर्मचारियों को उनका हक मिल सका।
संघ की चेतावनी – अब चुप नहीं बैठेंगे!
इस लापरवाही और भ्रष्टाचार को लेकर स्वास्थ्य कर्मचारी संघ ने राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के मिशन संचालक और आयुक्त स्वास्थ्य सेवाएं को शिकायत प्रस्तुत की थी।मिशन संचालक ने इस शिकायत को गंभीरता से लेते हुए 25 नवंबर 2022 को CMHO बिलासपुर को पत्र लिखकर पूछा कि जांच रिपोर्ट के आधार पर क्या कार्यवाही की गई है, इसका अभिमत पत्र तत्काल भेजें।
लेकिन इतने लंबे अंतराल के बाद भी आज दिनांक तक CMHO बिलासपुर द्वारा कोई अभिमत पत्र नहीं भेजा गया है।
इस देरी से नाराज संघ ने एक बार फिर CMHO बिलासपुर को पत्र भेजते हुए साफ चेतावनी दी है!
“यदि आप भी पूर्व CMHO की तरह भ्रष्टाचारियों को संरक्षण देंगे, तो हम उच्चाधिकारियों से आपकी शिकायत करने को बाध्य होंगे।”
अब क्या चाहते हैं कर्मचारी संघ?
स्वास्थ्य कर्मचारी संघ की मांगें स्पष्ट हैं!
• दोषी अधिकारियों – खंड चिकित्सा अधिकारी मस्तूरी, बिल्हा, तखतपुर, कोटा एवं शहरी कार्यक्रम प्रबंधक के विरुद्ध विधिसम्मत दंडात्मक कार्यवाही की जाए।
• जिन कर्मचारियों को अन्यायपूर्वक प्रोत्साहन राशि से वंचित किया गया, उन्हें तत्काल उनका हक मिले।
• भ्रष्टाचार को संरक्षण देने वाले तत्कालीन CMHO की भूमिका की जांच की जाए।
• मिशन संचालक/आयुक्त स्वास्थ्य सेवाएं को यथाशीघ्र अभिमत पत्र भेजा जाए।
कहां फंसा है पेंच?
सवाल ये उठता है कि जब जांच रिपोर्ट तैयार हो चुकी है, दोष सिद्ध हो चुके हैं, फिर अभिमत पत्र भेजने में इतनी देरी क्यों?
•क्या CMHO बिलासपुर जानबूझकर समय निकाल रहे हैं?
•या फिर वे भी इस पूरे नेटवर्क का हिस्सा हैं?
•संघ का आरोप है कि “यह चुप्पी, यह देरी – कहीं ना कहीं भ्रष्टाचारियों को बचाने की कोशिश हो सकती है।”
जनता का भरोसा डगमगाया, सिस्टम सवालों के घेरे में
एक ओर सरकार स्वास्थ्य सेवाओं को मजबूत बनाने के दावे करती है, वहीं जमीनी स्तर पर ऐसे भ्रष्टाचार के मामले जनता के भरोसे को पूरी तरह डगमगा देते हैं।
कोविड काल में जहाँ स्वास्थ्यकर्मी अपनी जान जोखिम में डालकर काम कर रहे थे, वहीं कुछ अफसर बढ़ती मौतों के बीच लाखों की बंदरबांट में व्यस्त थे।
अब आगे क्या?
अब गेंद फिर से CMHO बिलासपुर के पाले में है।
या तो वे दोषियों पर कार्यवाही कर रिपोर्ट मिशन संचालक को भेजें, या फिर खुद शिकायत के घेरे में आने को तैयार रहें।
स्वास्थ्य कर्मचारी संघ ने स्पष्ट कहा है –
“अब यह मामला दबेगा नहीं, न्याय की लड़ाई आखिरी दम तक लड़ी जाएगी।”
कोविड-19 के अंधेरे में जलने वाली उम्मीदों की लौ को भ्रष्टाचार की हवाओं से बुझाया नहीं जा सकता।
यह मामला सिर्फ ₹1.57 करोड़ की अनियमितता का नहीं, यह सिस्टम की आत्मा पर लगे कलंक का सवाल है।
अब देखना है कि क्या स्वास्थ्य विभाग की शीर्ष इकाइयां इस पर निर्णायक कदम उठाती हैं या फिर फाइलों में सच की चीखें गुम होती रहेंगी…